रविवार, फ़रवरी 21, 2010

लोकायुक्त संगठन में यह कैसा जातिवाद !

दलित व आदिवासी नेताओं पर होती है कार्यवाही

प्रभावशाली बच जाते हैं


रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले छह वर्षों का लोकायुक्त संगठन का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। इस कार्यकाल में लोकायुक्त ने प्रदेश के जिन दो मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों के खिलाफ चालान पेश किया उनमें एक आदिवासी तथा एक दलित वर्ग का है। जबकि राज्य के कई प्रभावशाली मंत्रियों के खिलाफ जितनी भी शिकायतें लोकायुक्त संगठन में की गईं उन्हें या तो जांच के नाम से लंबित रखा गया अथवा क्लीन चिट दे दी गई है।
लोकायुक्त संगठन ने सूचना के अधिकार के तहत 10 जुलाई 2007 को बताया था कि लोकायुक्त संगठन में प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित 13 मंत्रियों के खिलाफ शिकायतें मिली हैं। इनमें से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जुगलकिशोर बागरी एवं ओमप्रकाश धुर्वे के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आपराधिक प्रकरण कायम किया गया है। जबकि अजय विश्रोई, बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा, जयंत मलैया, हिम्मत कोठारी, चौधरी चन्द्रभान सिंह, कमल पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा, मोती कश्यप के खिलाफ शिकायतों की जांच की जा रही है। लोकायुक्त संगठन ने दलित गर्व के जुगल किशोर बागरी को रीवा में शिक्षाकर्मी चयन समिति के सदस्य के रूप में गलत नियुक्तियों का आरोप लगाकर उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर दिया। चालान पेश होने के तत्काल बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बागीरी से त्यागपत्र मांग लिया।

ओमप्रकाश धुर्वे :  इसी प्रकार ओमप्रकाश धुर्वें जब प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे तब राज्य सरकार ने उन्हें मप्र नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष भी बना दिया था। निगम में अनाज के परिवहन की दरों को लेकर धुर्वे पर आरोप लगा था कि उन्होंने जानबूझकर परिवहन ठेके संबंधी फाइल अपने पास रखी, ताकि नए ठेकेदार के बजाय पुराना ठेकेदार ही परिवहन का काम कर सके। नए ठेकेदार ने परिवहन की दरें कम थीं। जिससे निगम को लाखों रुपए का नुक्सान हुआ। धुर्वे के मामले में जिस तरह लोकायुक्त संगठन ने रूचि ली वह चौंकाने वाली है। जिस लोकायुक्त संगठन में मंत्रियेां के खिलाफ वर्षों से जांच लंबित है, वहां ओमप्रकाश धुर्वें के मामले में प्रारंभिक जांच करने के बाद 4 मई 2006 को उनके खिलाफ प्रकरण कायम किया गया और 10 जनवरी 2007 को कोर्ट में उनके खिलाफ चालान पेश कर दिया गया।

धुर्वें से मांगे थे पांच लाख : ओमप्रकाश धुर्वें ने भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में लिखित शिकायत में आरोप लगाया था कि तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के बेटे के पीए के नाम से एक अज्ञात व्यक्ति ने उन्हें फोन करके उक्त मामले को निबटाने के लिए पांच लाख रुपए मांगे थे। लेकिन उन्होंने यह राशि नहीं दी। यद्यपि पुलिस ने धुर्वें की शिकायत को जांच के बाद खारिज कर दिया था।

मुख्यमंत्री पर कार्यवाही नहीं :  लोकायुक्त संगठन में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी पत्नी साधना सिंह के खिलाफ 15 नवम्बर 2007 को भोपाल जिला न्यायालय के आदेश पर प्रकरण कायम किया गया था। लगभग ढाई साल बाद भी अभी तक इस प्रकरण में मुख्यमंत्री अथवा उनकी पत्नी को बयान देने के लिए भी लोकायुक्त संगठन नहीं बुलाया गया है। बताया जाता है कि नए लोकायुक्त की नियुक्ति के बाद संगठन के एक अधिकारी ने मुख्यमंत्री निवास पहुंचकर मुख्यमंत्री एवं उनकी पत्नी के बयान दर्ज करने की औपचारिकता पूरी कर ली है तथा शीघ्र ही मुख्यमंत्री को इस मामले में क्लीन चिट देने की तैयारी है।

प्रहलाद को लिया साथ : मुख्यमंत्री ने रूठे अपने पुराने मित्र पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को मुख्यमंत्री भाजपा में शामिल करके डम्पर प्रकरण को ठंडा कर लिया है। भाजपा में शामिल होने से पहले प्रहलाद पटेल ने ही सबसे पहले यह मामला उठाया था।

अहसान में मिली कुर्सी : लोकायुक्त संगठन में मुख्यमंत्री की जांच को ढाई साल तक दबाकर रखने वाले लोकायुक्त संगठन भोपाल के पुलिस अधीक्षक केके लोहानी को भोपाल का उप पुलिस महानिरीक्षक का पद देकर उपकृत किया गया है।

: कब से लंबित है जांच :

मंत्री- शिकायत दिनांक - एवं आरोप

1 - शिवराज सिंह चौहान 15 नवम्बर 07 डम्पर कांड
2 - शिवराज सिंह चौहान 29 अप्रेल 08 दवा खरीदी में घोटाला
     अजय विश्रोई








3 - बाबूलाल गौर 30 जून 07 खनिज लीज घोटाला
      लक्ष्मीकांत शर्मा








4 - लक्ष्मीकांत शर्मा 25 जुलाई 05 खनिज लीज घोटाला









5 - जयंत मलैया 31 मार्च 08 बिल्डर को 20 करोड़ का लाभ पहुंचाया
6 - जयंत मलैया 2 मई 08 श्रीराम बिल्डर को अवैध लाभ पहुंचाया
7 - जयंत मलैया 19 मार्च 07 पद का दुरूपयोग
8 - जयंत मलैया 9 जून 08 पद का दुरूपयोग








9 - अजय विश्रोई 23 जुलाई 07 नर्सिंग कॉलेज में पद का दुरूपयोग
     जयंत मलैया
10 - हिम्मत कोठारी 14 मई 07 मोरों के दाना पानी में घपला
11 - चौधरी चन्द्र भान सिंह 25 जनवरी 08 पद का दुरूपयोग कर सम्पत्ति एकत्रित करना
12 - कमल पटेल 26 नवम्बर 07 भू माफिया को 25 करोड़ का लाभ पहुंचाया








13 - कैलाश विजयवर्गीय 20 जून 07 ट्यूबवेल खनन में पद का दुरूपयोग
14 - कैलाश विजयवर्गीय 10 अप्रेल 07 बीओटी स्कीम में पद का दुरूपयोग







15 - अनूप मिश्रा 3 अप्रेल 07 जल संसाधन में ठेकेदारों को अनुचित लाभ
16 - मोती कश्यप 4 जून 05 मछली ठेकेदारों को पांच करोड़ का लाभ

इनके खिलाफ  हुआ चालन पेश

17 - जुगल किशोर बागरी 29 सितम्बर 1998 शिक्षाकर्मी की भर्ती में घपला
18 - ओम प्रकाश धुर्वे 4 मई 06 अनाज परिवहन में ठेकेदार को लाभ पहुंचाया

बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

सीबीआई जांच के लिए सरकार की अनुमति जरूरी नही


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट लोकसेवकों और राजनीतिक पहुंच रखने वाले समाज विरोधी तत्वों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए व्यवस्था दी है कि संबंधित राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बगैर भी हाईकोर्ट सीबीआई जांच का आदेश दे सकते हैं। शीर्ष कोर्ट के चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन नीत पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को यह अहम व्यवस्था दी।


शीर्ष कोर्ट ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार तथा राजनीति का अपराधीकरण रोकने की कोशिश के तहत अपनी व्यवस्था में कहा कि एक बार हाईकोर्ट को यह भरोसा हो जाए कि राज्य की जांच एजेंसियां किसी मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष काम नहीं कर रही हैं तथा मुजरिम को बचाने की कोशिश में हैं, तो राज्य के विरोध के बावजूद वह सीबीआई को मामले की जांच का आदेश दे सकता है।

बेंच ने कहा कि इन शक्तियों का राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय महत्व के अपवादस्वरूप व असाधारण मामलों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अन्यथा सीबीआई के पास रोजमर्रा के मामलों का ढेर लग लग जाएगा।

शीर्ष कोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक हैं। प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच का हक है। राज्य को अपराध या अधिकारों के दुरुपयोग का शिकार बने व्यक्ति को ऐसी जांच के जरिए न्याय पाने से वंचित करने का हक नहीं है।

बेंच ने यह व्यवस्था पश्चिम बंगाल सरकार तथा अन्य द्वारा पेश याचिकाओं पर दी। इन याचिकाओं में कहा गया था कि दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के प्रावधानों के तहत किसी राज्य में सीबीआई तभी जांच कर सकती है जब संबंधित सरकार उसे पूर्व अनुमति दे।

शीर्ष कोर्ट ने इस व्यवस्था के मार्फत वह संरक्षण हटा लिया है जिसके तहत सत्तारूढ़ नेता सीबीआई का आग्रह ठुकरा कर अपने आदमियों को बचाने के लिए कथित रूप से अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं।

बादल मामला: प्रकाश सिंह बादल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि यदि किसी लोकसेवक पर भ्रष्टाचार और घूसखोरी के आरोप हैं तो उस पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत नहीं है क्योंकि आधिकारिक रूप से ड्यूटी पूरी करने और भ्रष्टाचार में कोई संबंध नहीं है।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएगा यह फैसला



             भोपाल के राजभवन में मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में शपथ लेते पी.पी. तिवारी


एतिहासिक फैसले के लिए याद किए जाएंगे पीपी तिवारी

रवींद्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी एक बार फिर से चर्चा में हैं। सोमवार को उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में एतिहासिक फैसला सुनाकर मप्र के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ दिया है। अब प्रदेश की निरंकुश नौकरशाही को अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा जनता के सामने रखना होगा। लेकिन तिवारी को हम केवल इस एतिहासिक निर्णय के लिए ही नहीं, बल्कि इस निर्णय से पहले स्वयं की सम्पत्ति का ब्यौरा मुख्य सूचना आयुक्त की बेवसाइट पर डालने के लिए उन्हें प्रणाम कर रहे हैं। तिवारी इससे पहले मप्र के तत्कालीन विवादस्पद लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल से विवादों के कारण चर्चा में आए थे। दयाल सूचना के अधिकार के तहत तिवारी द्वारा दिए जा रहे एक निर्णय को बदलवाने के लिए तिवारी के घर पहुंचे थे, लेकिन तिवारी ने उनकी शिकायत थाने में करके लोकायुक्त जैसे पद पर बैठे व्यक्ति के इन प्रयासों पर पानी फेरकर खूब वाहवाही लूटी थी।

क्या था मामला

मप्र कांग्रेस विधायक दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने राज्य मंत्रालय में सूचना के अधिकार के तहत प्रदेश के आईएएस व आईपीएस अधिकारियों की सम्पत्ति से संबंधित वह जानकारी मांगी थी, जो यह अधिकारी प्रतिवर्ष सरकार को उपलब्ध कराते हैं। जैसे कि उम्मीद थी, प्रदेश की नौकरशाही ने विधायक को जानकारी देने से यह कर इंकार कर दिया कि उक्त जानकारी देने से अधिकारियों की निजता का अतिक्रमण होगा। चौधरी ने मंत्रालय के अपीलीय अधिकारी के सामने अपील की, लेकिन उन्होंने भी चौधरी की अपील को खारिज कर दिया।
चौधरी ने मुख्य सूचना आयुक्त का दरवाजा खटखटाया। मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने इस संबंध में आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया। कई अधिकारियों ने अपनी सम्पत्ति के बारे में जानकारी देने पर आपत्ति की, लेकिन ओपी रावत जैसे आईएएस अधिकारी तो सुनवाई के दौरान ही अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा लेकर पहुंचे थे तथा उसे सार्वजनिक करने के लिए अपनी सहमति भी दे आए थे। इसी प्रकार पुलिस महानिदेशक एसके राउत ने भी सम्पत्ति का ब्यौरा देने की सहमति प्रदान कर दी थी। कुछ अधिकारियों ने इस संबंध में विरोध किया तो चौधरी ने एक ही तर्क दिया कि - जब जनप्रतिनिधियों को चुनाव लडऩे से पहले अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देना जरूरी है, तो लोकसेवक अपनी सम्पत्ति को कैसे छुपा सकता है।

उदारण बने तिवारी

इस सुनवाई के दौरान तिवारी ने महसूस किया कि मुख्य सूचना आयुक्त को भी अपनी सम्पत्ति को ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। तिवारी ने इस प्रकरण में फैसला सुनाने से पहले मुख्य सूचना आयोग की बेवसाइट पर पहले अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा डाला, इसके बाद 15 फरवरी 2010 को उन्होनें अपने एतिहासिक फैसले में न केवल सरकार को निर्देश दिए कि -आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की जानकारी विधायक राकेश चौधरी 15 दिन में को निशुल्क उपलब्ध कराएं, बल्कि उन्होंने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि - लोकसेवकों पर जनता की निगरानी के सभी लोकसेवकों की सम्पत्ति की जानकारी उनकी विभागीय बेवसाइट पर डाली जाए। तिवारी का फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रालय में आनन फानन में पत्रकार वार्ता बुलाकर घोषणा कर दी कि - प्रदेश के सभी मंत्री भी अपनी सम्पत्ति को ब्यौरा हर साल विधानसभा के पटल पर रखेंगे। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने सभी लोकसेवकों की सम्पत्ति को बेवसाइट पर डालने के आदेश भी जारी कर दिए। अब मप्र के तृतीय वर्ग तक के सभी अधिकारी कर्मचारियों को हर साल अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा अपने विभाग की बेवसाइट पर डालना होगी।

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

प्रदेश में आईपीएस से ज्यादा भ्रष्ट हैं आईएएस





मप्र में भ्रष्ट आईएएस अफसरों की संख्या बढ़ी



रवीन्द्र जैन


भोपाल। मध्यप्रदेश में भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी हो गई है। प्रदेश में लगभग तीन दर्जन आईएएस अधिकारी लोकायुक्त की जांच के दायरे में हैं। सात ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अरोप में कार्यवाही की गई है। मप्र में पहली बार आईएएस अधिकारियों के घरों से करोड़ों रूपए नगद बरामद हो रहे हैं। लोग दबी जुबान कहने लगे हैं कि मुख्यसचिव राकेश साहनी के कार्यकाल में आईएएस अधिकारियों ने भ्रष्टाचार के सभी रिकोर्ड तोड़ दिए हैं। जबकि प्रदेश में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के अपेक्षाकृत कम हैं।
मप्र के लोकायुक्त ने पिछले दिनों सुचना के अधिकार के तहत ऐसे आईएएस अधिकारियों की सुची उपलब्ध कराई थी जिनके खिलाफ भ्रष्आचार की जांच की जा रही है। इस सूची में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यसचिव राकेश साहनी सहित तीन दर्जन आईएएस अफसरों के नाम शामिल थे। इनमें कुछ अफसरों को लोकायुक्त क्लीन चिट दे दी है।

मार्च 2009 में लोकायुक्त द्वारा जारी सूची


के अनुसार प्रदेश के दागी आईएएस


अफसरों के नाम व आरोप


अधिकारी का नाम - मनीष श्रीवास्तव
आरोप - त्रैमासिक अर्धवार्षिक परीक्षा के मुद्रण कार्य में घेटाला

अधिकारी का नाम - अरूण पांडे
आरोप - खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना

अधिकारी का नाम - प्रभात पाराशर
आरोप - वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार

अधिकारी का नाम - गोपाल रेड्डी
आरोप - कालोनाईजरों को अनुचित लाभ पहुंचाना, शासन को आर्थिक हानि पहुंचाना

अधिकारी का नाम - अनिता दास
आरोप - ऊन तथा सिल्क साडिय़ों के क्रय में भ्रष्टाचार

अधिकारी का नाम - दिलीप मेहरा
आरोप - कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - मोहम्मद सुलेमान
आरोप - कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना

अधिकारी का नाम - टी राधाकृष्णन
आरोप - दवा खरीदी में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - एसएस उप्पल
आरोप - पांच लाख रूपए लेकर भूमाफियाओं को अनुज्ञा दी

अधिकारी का नाम - अस्ण भट्ट
आरोप - भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली

अधिकारी का नाम - निकुंज श्रीवास्तव
आरोप - पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें

अधिकारी का नाम - एमके सिंह
आरोप - तीन करोड़ रूपए का मुद्रण कार्य आठ करोड़ रूपए में कराया

अधिकारी का नाम - एमए खान
आरोप - भ्रष्टाचार एवं वित्तिय अनियमितताएं, तीन शिकायतें

अधिकारी का नाम - संजय दुबे
आरोप - शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - रामकिंकर गुप्ता
आरोप - इंदौर योजना क्रमांक 54 में निजी कंपनी को सौ करोड़ रूपए का अवैध लाभ पंहुचाया

अधिकारी का नाम - एमके वाष्णेय
आरोप - सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि

अधिकारी का नाम - आरके गुप्ता
आरोप - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - एन्टोनी डिसा
आरोप - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - केदारलाल शर्मा
आरोप - सेन्ट्रीफयूगल पम्प क्रय में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - शशि कर्णावत
आरोप - पद का दुरूपयोग, दो शिकायतें

अधिकारी का नाम - केके खरे
आरोप - पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार

अधिकारी का नाम - विवेक अग्रवाल
आरोप - 21 लाख रूपए की राशि का मनमाना उपयोग

अधिकारी का नाम - एसके मिश्रा
आरोप - खनिज विभाग में एमएल, पीएल आवंटन में भ्रष्टाचार

अधिकारी का नाम - राकेश साहनी
आरोप - पुत्र को 5 लाख रूपए कम में विमान प्रशिक्षण दिलाया

अधिकारी का नाम - महेन्द्र सिंह भिलाला
आरोप - 75 लाख रूपए की खरीदी में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - अल्का उपाध्याय
आरोप - भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए

अधिकारी का नाम - सोमनाथ झारिया
आरोप - 4 वर्षों से भ्रष्टाचार एवं पद का दुरूपयोग करना

अधिकारी का नाम - डा. पवन कुमार शर्मा
आरोप - बगैर रोड़ बनाए ठेकेदार को पांच लाख का भुगतान करना


आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो कर


रहा है 25 आईएस की जांच


अफसरों के नाम व आरोप


अधिकारी का नाम - पी नरहरि
आरोप - सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - तरूण गुप्ता
आरोप - फर्जी यात्रा देयक

अधिकारी का नाम - आरके गुप्ता
आरोप - इंदौर में मैंकेनिक नगर में गलत तरीके से लीज

अधिकारी का नाम - डीके तिवारी
आरोप - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - एवी सिंह
आरोप - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - एसएस अली
आरोप - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्र्वे सामग्री एवं कम्प्युटर खरीदी

अधिकारी का नाम - एमके अग्रवाल
आरोप - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्र्वे सामग्री एवं कम्प्युटर खरीदी

अधिकारी का नाम - राजेश मिश्रा
आरोप - फर्जी दस्तावजों के आधार पर आचार सत्कार शाखा में गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - शिखा दुबे
आरोप - अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता

अधिकारी का नाम - जीपी सिंघल
आरोप - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप

अधिकारी का नाम - टी धर्माराव
आरोप - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप

अधिकारी का नाम - योगेन्द्र कुमार
आरोप - शराब की दूकान बंद कराने की धमकी देकर लाईसेंसधारियों से अवैध वसूली

अधिकारी का नाम - आरएन बैरवा सेनि
आरोप - अनुसूचित जाति के छात्रों के भोजन बजट में गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - मनीष रस्तोगी
आरोप - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता

अधिकारी का नाम - विवेक पोरवाल
आरोप - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता

अधिकारी का नाम - हरिरंजन राव
आरोप - रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई

अधिकारी का नाम - अंजू सिंह बघेल
आरोप - नरेगा में भुगतान की गडग़ड़ी

अधिकारी का नाम - एसएस शुक्ला
आरोप - बाल श्रमिक प्रशिक्षण में आठ करोड़ रूपए का दुरूपयोग

अधिकारी का नाम - सीबी सिंह
आरोप - बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व बिक्रय

अधिकारी का नाम - प्रमोद अग्रवाल
आरोप - औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं

अधिकारी का नाम - आशीष श्रीवास्तव
आरोप - एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला

अधिकारी का नाम - संजय गोयल
आरोप - नरेगा में कुंआ निर्माण में अनियमितता

अधिकारी का नाम - निकुंज श्रीवास्तव
आरोप - रेडक्रास सोसाइटी में आर्थिक गड़बड़ी

अधिकारी का नाम - एसएन शर्मा
आरोप - ट्रांसफर के बाद बंगले पर फाइलें बुलाकर आम्र्स लायसेंस स्वीकृत किए

अधिकारी का नाम - मनीष श्रीवास्तव
आरोप - चार शिकायतें, शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन


नोट : नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप भिण्ड के तत्कालीन कलेक्टर सुहेल अली पर भी लगे, लेकिन कांग्रेस विधायक डा. गोविन्द सिंह का आरोप है कि - राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी के साथ सुहेल अली के जीजा-साले के संबंध होने के कारण उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई।


एक वर्ष में चार आईएएस अफसरों
भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित हुए

अधिकारी का नाम - केपी राही
आरोप - नरेगा में जमकर माल कूटा

अधिकारी का नाम - अंजू सिंह बघेल
आरोप - कटनी भूमि घोटाला

अधिकारी का नाम - अरविन्द जोशी
आरोप - आयकर छापे में घर से तीन करोड़ नगद बरामद

अधिकारी का नाम - टीनू जोशी
आरोप - आयकर छापे में घर से करोड़ों रूपए बरामद व लॉकर में मिले सोने चांदी के बर्तन


चरित्रहीनता के आरोप में भी निलंबन
मप्र के इतिहास में पहली बार किसी आईएएस अधिकारी को चरित्रहीनता के आरोप में निलंबति किया गया। भोपाल जिला पंचायत के सीईओ पाटिल को एक युवक के साथ उनके अफ्तर में ही संदिग्ध हालत में पकड़ा गया। इस दृश्य को स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टीवी पर देखा और पाटिल को निलंबित कर दिया गया। मुख्यसचिव राकेश साहनी ने पाटिल को बचाया और बहाल कराया।

इन पर भी मिली करोड़ों की सम्पत्ति

अधिकारी का नाम - अरविन्द जोशी
अधिकारी का नाम - टीनू जोशी

इनने नहीं दिया सम्पत्ति का ब्यौरा :

मप्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा के सभी अधिकारियों को अखिल भारतीय सेवा आचरण नियम 1968 के अंतर्गत प्रत्येक कलेन्डर वर्ष के लिए चल अचल सम्पत्ति का ब्यौरा शासन को प्रस्तुत करना चाहिए, लेकिन मप्र में 44 आईएएस अधिकारी ऐसे हें जिन्होंने वर्ष 2008 के लिए अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा प्रस्तुत नहीं किया है।


सम्पत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले आईएएस अधिकारी

- दिलीप मेहरा
- गोपाल प्रसाद सिंघल
- एमएम उपाध्याय
- राकेश अग्रवाल
- सेवाराम
- केपी सिंह
- प्रवीर कृष्ण
- संजय बंदोउपाध्याय
- विनोदकुमार
- कोमलसिंह
- पीके पाराशर
- एसएन मिश्रा
- प्रमोद अग्रवाल
- एमके वाष्णेय
- रघुवीर श्रीवास्तव
- केएम गौतम
- अनिरूद्ध मुखर्जी
- वीणा घाणेकर
- मनीष रस्तोगी
- सूरज डामोर
- विवेक अग्रवाल
- एमएस भिलाला
- डीपी अहिरवार
- भरत कुमार व्यास
- राजकुमार पटेल
- जेटी एक्का
- शिवानंद दुबे
- उमाकांत उमराव
- जगदीश शर्मा
-केके खरे
- मधु खरे
- मनीष सिंह
- सुखवीर सिंह
- राजेश प्रसाद मिश्रा
- मुकेश चंद्र गुप्ता
- एसएस अली
- अनिल यादव
- विवेक पोरवाल
- शोभित जैन
- चंद्रशेखर बोरकर
- गीता मिश्रा
- शशि कर्णावत
- राहुल जैन
- मनोहर दुबे

रविवार, फ़रवरी 14, 2010

क्या अवधेश बजाज के यह शब्द ठीक  है !

राकेश साहनी और

इकबाल सिंह

के सामने

शिवराज सिंह

की कई औकात नहीं है .......































पत्रकार अवधेश बजाज की कलम ने फिर आग उगली है. इस  बार उन्होंने बिच्छू डोट कॉम में यहाँ तक लिख दिया है की राकेश सहनी और इकबाल सिंह के सामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोई औकात ही नहीं है.  हमने बजाज के लेख  को इसलिए लिया है ताकि आप पड़कर तय कर सके की क्या बजाज ने सही लिखा है !

रवींद्र जैन

बिच्छु डोट कॉम में अवधेश बजाज का लेख -

शिव की गौशाला में पल हे हैं कई महानंदी














अवधेश बजाज

जब शिवराज की अपनी ही गौशाला में इतने महानंदी (बिगबुल्स) हों तो उन्हें बाहर ताकने की जरूरत नहीं है। जनता को बेवकूफ बनाने की बजाय बेहतर होता कि शिवराज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदमों का अनुसरण करते, लेकिन करते कैसे? जब व्यक्ति का अंत:करण ही बेईमान हो तो वह ईमानदारी की बात कैसे कर सकता है? मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा पांखडी चरित्र हो तो सच का सामना कैसे किया जा सकता है? शिवराज ने अपने इर्द-गिर्द ऐसे अफसरान बैठा रखे हैं, जिनसे उन्हें खांसने और छींकने की भी परमिशन लेना पड़ती है।


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी यात्राओं में भ्रष्टाचार खत्म करने का ऐलान करते रहते हैं और उन्हीं की सत्ता-साकेत में दागी अफसरान बैठे हैं। भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा कर रहे शिवराज ने भ्रष्टों को क्यों पाल रखा है? भ्रष्टाचार पर इस दोहरी नीति का क्या अर्थ है? हम शुरू से ही शिवराज को चेता रहे हैं कि भ्रष्टों पर अंकुश लगाओ, किंतु भोले भंडारी शिव आंखें मूंदे रहते हैं। या तो वे सब जानते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे से घबराते हैं या वे भ्रष्टाचारियों के सामने नतमस्तक हैं। मुख्यमंत्री निवास में बैठे हुए तीन अफसरों के पास दो हजार करोड़ से ज्यादा की प्रापर्टी है। ये वे ही अधिकारी हैं, जो मुख्यमंत्री निवास से हुए हर फैसले पर अपनी मुहर लगाते हैं। ऐसे भ्रष्ट अफसरों ने मुख्यमंत्री की ऐसी कौन-सी नब्ज पकड़ रखी है जिसे चाह कर भी मुख्यमंत्री अपनी मन की बात नहीं कह सकते हैं। यह यक्षप्रश्न है। सबसे बड़ा सवाल तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कार्यपद्धति पर आता है। जब उन्होंने 750 करोड़ रुपए की बिना टेंडर किए हुए बिजली खरीदी के आरोपी पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी को पुनर्वास दे दिया। ऐसे क्या कारण थे जब राकेश साहनी को पुनर्वास देने की जरूरत पड़ गई? कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री निवास के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस ने शिवराज की कोई नब्ज दबा रखी है। वह चाहे मुख्यसचिव के चयन का मामला हो अथवा राकेश साहनी को पुनर्वास देने का। जो निर्णय होते हैं वह सब इकबाल ही तय करते हैं।

मेरा मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि जब अपरोक्ष रूप से वे भ्रष्टाचार को एवं भ्रष्टाचारियों को शिष्ट व्यक्तियों के रूप में देखना चाहते हैं तो उन्हें बहुरूपिया नहीं बनना चाहिए। सार्वजनिक तौर पर भोली-भाली जनता को 'कैपिटल सी' बनाने की बजाय खुलेतौर पर स्वीकार करना चाहिए कि वे भ्रष्टों के संरक्षणदाता हैं। पांच साल सरकार चलाने के लिए वोट बटोरू शिवराज अब जनता के बीच में यह कह रहे हैं कि बिजली देना मेरा काम नहीं है, पानी देना मेरा काम नहीं है, जो कुछ करना है वो आपको करना है। इससे बड़ा फरेब मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में कभी नहीं हुआ। अगर ऐसा ही करना था तो वे जनता के बीच में नहीं जाते। अब जनता को ही सब कुछ करना है तो फिर शिवराज जी आपकी क्या जरूरत है? मध्यप्रदेश के इस लिजलिजे रीढ़विहीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मेरा आग्रह है कि वे इनवेस्टर्स मीट के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपया क्यों बर्बाद कर रहे हैं? मेरा उन्हें सुझाव है कि जब उनके राजनीतिक पिंड ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मान लिया है तो उन्हें देश के किसी भी उद्योगपति से प्रदेश में निवेश की भीख नहीं मांगना चाहिए। बेहतर हो कि वे ईमानदार और अतिनैतिक इकबाल सिंह बैंस और राकेश साहनी के माध्यम से मप्र के तमाम भ्रष्टतम अधिकारियों से एक-एक अरब रुपया उद्योग लगाने के लिए मांगें। यह भीख मांगना प्रदेश के लिए बहुत बेहतर होगा। जब प्रदेश में भिखमंगे राजनेता और अफसर हों तो बहुत सहूलियत होगी। दरअसल हमारी राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था भिखमंगी ही है। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाओं में विराजे समस्त महानुभावों से मेरा निवेदन है कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से सलाह न लें, न उनकी बात मानें, बल्कि वे सीधे-सीधे इकबाल सिंह बैंस और राकेश साहनी जो कहें, वह करें। इससे प्रदेश को 'शिष्ट भ्रष्टोंÓ से अच्छा इनवेस्टमेंट मिलेगा।

जब शिवराज की अपनी ही गौशाला में इतने महानंदी (बिगबुल्स) हों तो उन्हें बाहर ताकने की जरूरत नहीं है। जनता को बेवकूफ बनाने की बजाय बेहतर होता कि शिवराज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदमों का अनुसरण करते, लेकिन करते कैसे? जब व्यक्ति का अंत:करण ही बेईमान हो तो वह ईमानदारी की बात कैसे कर सकता है? मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा पांखडी चरित्र हो तो सच का सामना कैसे किया जा सकता है? शिवराज ने अपने इर्द-गिर्द ऐसे अफसरान बैठा रखे हैं, जिनसे उन्हें खांसने और छींकने की भी परमिशन लेना पड़ती है। ऐसे हालात में तस्वीर बदलना नामुमकिन है। वह चाहे नीतीश कुमार हों या नरेंद्र मोदी। ये हिंदुस्तान की राजनीति के ऐसे केंद्रबिंदु हैं जिन्होंने जो ठाना वो किया। नीतीश कुमार ने बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी मुहिम छेड़ी है जो भारतवर्ष में अविस्मरणीय है। वे बिहार विशेष न्यायालय विधेयक 2009 लेकर आए हैं, जिसमें भ्रष्ट अफसरों को जेल भेजने से लगाकर भ्रष्टाचार से बनी हुई संपत्तियों का अधिग्रहण करने तक का अधिकार है। उन्होंने एक विकास यात्रा निकाली थी, जिसमें उन्होंने पाया कि ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार गले-गले तक है। तब उन्हें जाकर यह निर्णय लेना पड़ा। अब हालात ये हैं कि बिहार प्रगतिशील प्रदेशों में दूसरे नंबर पर है। नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। उनके अपने राजनैतिक सहयोगी उनका साथ छोड़ रहे हैं, लेकिन उनमें एक ईमानदार नेता की इच्छाशक्ति है, जो शिवराज जी तुम में नहीं है, क्योंकि तुम इकबाल सिंह बैंस, राकेश साहनी के हस्तिनापुर से बाहर नहीं निकल पा रहे हो। तुम्हारी औकात इन लोगों के सामने दो कौड़ी की है। यह मैं इसलिए कह सकता हूं, क्योंकि तुमने राकेश साहनी का पुनर्वास करके यह साबित कर दिया कि तुम स्वयं भ्रष्टों के संरक्षणदाता हो। तुमने जो आओ मध्यप्रदेश बनाएं आंदोलन शुरू किया है, यह आंदोलन आपके अंत:करण के पाखंड को उजागर करता है।

अगर वाकई आप मध्यप्रदेश बनाना चाहते हैं तो पहले-पहल आपको भ्रष्टाचारियों को कोड़े लगाना होंगे। वरना वह दिन दूर नहीं जब आपकी यह यात्रा आपकी अंतिम यात्रा होगी। आप यह सोच रहे हैं कि आप अटलबिहारी वाजपेयी, डॉ. शंकरदयाल शर्मा और शिवभानु सिंह सोलंकी की परंपरा के संवाहक हैं। दरअसल ये तीनों नेता पढ़े-लिखे थे। इसीलिए जनता को दिग्भ्रमित करने में सफल रहे। इन्होंने जीवनभर किसी भी आदमी की व्यक्तिश: मदद नहीं की। वैसे आप भी वैसे ही हैं। आप काम किसी का करते नहीं और मना भी किसी को नहीं करते। बौद्धिक स्तर पर चूंकि आपका कद इन तीनों नेताओं के बराबर नहीं है, लिहाजा आप बहुत जल्दी नीचे आ सकते हो। हालांकि भाग्य आपका साथ दे रहा है, लिहाजा आप चलायमान हैं। लेकिन झूठ, फरेब, पाखंड का कालखण्ड ज्यादा दिन तक नहीं चलता है। ये जनता है सब जानती है। जिन वादों पर आप सत्तासीन हुए उन्हीं वादों पर आप जनता से वह कार्य करने का कह रहे हैं। इससे बड़ा पाखंड क्या हो सकता है। हाल ही में वरिष्ठ आईएएस दंपति अरविंद जोशी और टीनू जोशी के यहां पड़े आयकर विभाग के छापे ने जाहिर कर दिया है कि नौकरशाही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। राज्य मंत्रालय में छह आईएएस ऐसे हैं, जिन पर आयकर विभाग की नजर है। इनमें से तीन अफसर सीएम हाउस में बैठे हैं, जो फावड़े और बोरों से घरों में नोट भर रहे हैं। भ्रष्टाचार पर शिवराज सरकार का दोहरा रवैया इससे भी जाहिर होता है कि 750 करोड़ का बिजली घोटाला करने वाले अफसर को उन्होंने अपनी गौशाला में पाल लिया। भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प क्या भ्रष्ट अफसरान से घिर कर पूरा होगा? विधानसभा में कांग्रेस दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने जब अफसरान की संपत्ति सार्वजनिक करने का मामला उठाया तो नौकरशाही आड़े आ गई। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाही तो जानकारी नहीं दी गई। यह मामला राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष विचाराधीन है।

इसी बीच केंद्र सरकार ने निर्देश दे दिए कि अफसरान की संपत्ति सार्वजनिक की जाए, पर नौकरशाह नहीं मान रहे हैं। इस पर सरकार की खामोशी क्या यह जाहिर नहीं करती कि वह भ्रष्टों और भ्रष्टाचार का बचाव कर रहे हैं? राज्य सूचना आयुक्त ने जब अफसरान को नोटिस देकर संपत्ति की जानकारी देने को कहा तो उन्होंने असहमति जताई। इनमें अरविंद-टीनू जोशी भी शामिल हैं। सवाल यह है कि जब न्यायाधीश और राजनेता अपनी संपत्ति का खुलासा करते हैं तो नौकरशाह इससे सहमत क्यों नहीं हैं? इसका जवाब यही है कि वे भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति का खुलासा नहीं करना चाहते हैं। अरविंद-टीनू के यहां पड़े छापे में करोड़ों रुपए मिलना इसका प्रमाण है।

स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सब्जबाग दिखाने वाले शिवराज सिंह इन भ्रष्टों के आगे नतमस्तक क्यों हैं? लोकायुक्त ने 18 भ्रष्ट आईएएस के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति मांगी है। सरकार यह अनुमति क्यों नहीं दे रही है? आर्थिक अपराध अनसुंधान ब्यूरो ने तो एक हजार भ्रष्ट अफसरान की सूची सौंपी है, जिस पर सरकार कुंडली मार कर बैठी है। क्या इसी तरह भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प पूरा होगा? शिवराज सिंह के साथ दिक्कत यह है कि उन्हें उनके पैर के माप से बड़ा जूता दे दिया गया है, इसलिए लंगड़ा कर चलना उनकी आदत में शुमार हो गया है। यही वजह है कि वे मंत्रालय में बैठकर प्रशासन पर नकेल कसने की बजाय डमरू लिए मदारी की तरह जगह-जगह घूमते फिरते हैं। इधर नौकरशाह बेलगाम होकर वही काम कर रहे हैं, जिनसे उनके हित जुड़े हैं।

नौकरशाहों की हरामखोरी प्रवृत्ति का यह आलम है कि 67 हजार 887 करोड़, 24 लाख रुपयों की केंद्रीय मदद का कोई उपयोग नहीं हो सका। इसी तरह 1 हजार 515 करोड़, 72 लाख की भारी भरकम राशि सरकार ने केंद्र को यह कहते हुए लौटा दी कि वह इसे खर्च करने में असमर्थ है। शिवराज सरकार की पंचायतों, इन्वेस्टर्स मीट और कागजी योजनाओं पर इतना धन फूंका गया कि खजाना तो खाली हो ही गया, ऊपर से 58 हजार करोड़ का कर्ज भी हो गया। प्रदेश को आर्थिक रूप से दिवालिया कर प्रशासन में बैठे अफसरान अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और मुख्यमंत्री चंद अफसरान की कठपुतली बनकर 'अपना मध्यप्रदेश' बना रहे हैं।

इतने जिम्मेदार पद पर बैठे शिव को यह समझ में क्यों नहीं आ रहा कि गांव में खटिया पर बैठकर अमरूद काटने, बच्चों को योग सिखाने और झाड़ू लगाने से प्रदेश का विकास नहीं होगा? प्रदेश के विकास के लिए भ्रष्ट नौकरशाही पर अंकुश लगाना पहली शर्त होना चाहिए और यहीं शिव कमजोर पड़ जाते हैं। इसी कारण प्रदेश गर्त में जा रहा है और शिव नीरो की तर्ज पर बंसी बजाते घूम रहे हैं। अगर अब भी शिव का तीसरा नेत्र नहीं खुलता है तो इस प्रदेश का बंटाढार होना तय है।

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

भ्रष्ट विधानसभा अफसरों पर

क्यों नहीं होती कार्यवाही






रवीन्द्र जैन
भोपाल। आंध्रप्रदेश विधानसभा के विशेष सचिव विधानसभा के गोपालकृष्णा के यहां पड़े एंटी करेप्शन ब्यरो के छापों में बीस करोड़ रूपए की सम्पत्ति पकड़े जाने के बाद मप्र विधानसभा के तीन अधिकारियो का मामला फिर से गर्म हो गया है। पिछले साल मप्र विधानसभा के तीन अधिकारियों के यहां इंकम टैक्स विभाग ने छापा मारा था, जिसमें लगभग सौ करोड़ रूपए की अवैध सम्पत्ति मिली थी। इस संबंध में इंकम टैक्स विभाग ने स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी को लिखित में रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन स्पीकर ने आज तक इन अफसरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है।
इंकम टैक्स विभाग ने विधानसभा के अतिरिक्त सचिव सत्यनारायण शर्मा,अवर सचिव कमलाकांत शर्मा एवं निज सचिव केपी द्विवेदी के यहां 23 जुलाई को छापा मारा था। इन अधिकारियों के यहां इंकम टैक्स को किलो में सोना व लाखों रूपए के अलावा करोड़ों रूपए की सम्पत्ति मिली थी। सतयनारायण शर्मा ने इंकम टैक्स विभाग के देखकर अपने घर में रखे दस्तावजों में आग भी लगा दी थी तथा इंकम टैक्स विभाग को किसी प्रकार का सहयोग देने से इंकार कर दिया, जिसकी रिपोर्ट इंकम टैक्स ने पुलिस विभाग में की थी। पुलिस सत्यनारायण शर्मा को गिरफ्तार भी किया था। इतना होने के बाद भी स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने इन अधिकारियों के खिलाफ यह कहते हुए कार्यवाही नहीं की कि - इंकम टैक्स विभाग की रिपोर्ट आने के बाद वे कार्यवाही करेंगे। तीन महिने पहले इंकम टैक्स विभाग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में इन तीनों अधिकारियों के घरों से करोड़ों रूपए की अनुपातहीन सम्पत्ति मिलने की जानकारी विधानसभा सचिवालय को दे दी है।
इंकम टैक्स की रिपेार्ट आने के बाद स्पीकर रोहाणी ने विधानसभा के प्रमुख सचिव एके पयासी को इन अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे, लेकिन पयासी ने यह कहकर कार्यवाही करने से इंकार कर दिया कि विभाग की अंतरिम रिपोर्ट पर कार्यवाही नहीं की जा सकती। वे अंतिम रिपोर्ट आने के बाद ही कार्यवाही करेंगे। सूत्रों के अुनसार पिछले दिनों स्पीकर ने महसूस किया कि प्रमुख सचिव जानबूझकर भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं तो उन्होंने निर्देश दिए कि कार्यवाही संबंधी फाइल विधानसभा के एक अन्य सचिव को भेजी जाए एवं सचिव के द्वारा इस संबंध में कानूनी जानकारी लेकर र्कावाही की जाए,लेकिन प्रमुख सचिव एके पयासी ने गुरूवार तक उक्त फाइल सचिव के पास नहीं भेजी है।
लोकायुक्त ने क्यों नहीं की कार्यवाही : मप्र के आईएएस अरविन्द जोशी व टीनू जोशी के मामले में अखबारों की कटिंग के आधार पर प्रकरण कायम करने वाले लोकायुक्त संगठन पर उंगली उठ रही है। सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि लोकायुक्त ने विधानसभा के तीन अफसरों पर लगभग सौ करोड़ रूपए मिलने के मामले में प्रकरण कायम क्यों नहीं किया?


इनका कहना है :



इस संबंध में कार्यवाही का निर्णय स्पीकर को करना है। पिछले दिनों स्पीकर ने उक्त फाइल मुझ से मंगा ली है। फाइल स्पीकर के पास है, वे जो निर्देश देंगे, हम वह कार्यवाही करेंगे।

एके पयासी
प्रमुख सचिव, मप्र विधानसभा





अवर सचिव कमलाकांत शर्मा की सम्पत्ति
- विधानसभा के अवर सचिव कमलाकांत शर्मा ने सरकारी नौकरी में रहते भ्रष्टाचार की कमाई से लगभग दस करोड़ रूपए कमाए हैं।
- कमलाकांत ने भोपाल के स्वामी विवेकानंद कॉलेज में अवैध कमाई से तीन करोड़ रूपए निवेश किए हैं। कॉलेज के दस्तावेजों से इसकी पुष्टि की जा सकती है।
- कमलाकांत के पास भोपाल के ग्राम बरखेडी कलां में नब्बे लाख रुपए कीमत के खेत हैं।
- कमलाकांत ने अपनी दूसरी पत्नि के वंदना शर्मा के नाम से नेहरूनगर भोपाल में सी 110 नंबर का मकान खरीदा कीमत 40 लाख रुपए।
- कोटरा सुल्तानाबाद भोपाल की चित्रगुप्त कॉलोनी में वंदना शर्मा के नाम से ही प्लाट नंबर 20, कीमत 30 लाख रुपए।
- अपनी अवैध कमाई को एक नंबर की कीरने के लिए रीवा में वंदना शर्मा के नाम से डेयरी संचालन केवल कागज पर दिखाते रहे हैं।
- ढेकहा मोहल्ला रीवा में अपने ससुर महिमा शंकर पांडेय एवं सास विद्यावती पांडेय के नाम से पचास लाख रूपए का कमान बनवाया।
- कमलाकांत ने अवैध कमाई से ही रीवा के अरूणनगर में मकान बनवाया जिसे अभी 16 लाख रूपए में बेचा है।
- रीवा शहर के बाहर बनकुईयां राजस्व मंडल में स्वयं, पन्ति, बच्चों एवं सास ससुर के नाम से 35 एकड़ भूमि क्रय की है जिसकी कीमत 80 लाख रूपए है।
- विवेकानंद इंजीनियरिंग कॉलेज से साठ लाख रूपए अवैध तरीके से निकाले गए।
- कॉलेज की एक कार फर्जी हस्ताक्षर करके अपने रिश्तेदार के नाम कर ली है।
- कमाकांत ने तनिष्क मैनेजमेन्ट कंपनी बनाकर उसमें विभिन्न नामों से चालीस रूपए का निवेश किया।
- कमलाकांत, उनकी पन्ति वंदना शर्मा एवं उनके रिश्तेदारों ने विवेकानंद कॉलेज में वेतन के नाम से 2.80 करोड़ रुपए निकाले, इसमें से 1.80 करोड़ रूपए का गबन किया गया।
- अपनी एक महिला मित्र, जो कि महिला एवं बाल विकास विभाग में परियोजना अधिकारी है, के नाम से कॉलेज में बीस लाख रूपए का निवेश किया गया है।
- कमलाकांत ने महिला बाल विकास विभाग में प्रतिनियुक्ति पर रहने के दौरान भारी भ्रष्टाचार किया है इसकी भी जांच होना चाहिए।


निज सचिव केपी द्विवेदी की सम्पत्ति


- तत्कालीन विधानसभा स्पीकर श्री निवास तिवारी के निज सहायक रहे केपी द्विवेदी पर आरोप है कि उन्होंने विधानसभा से अनुमति लिए बिना करोड़ों रूपए विवेकानंद इंजीनियरिंग कॉलेज में निवेश किए हैं।
- केपी द्विवेदी ने भोपाल के बरखेडी कलां में विभाग को बिना बताए 32 लाख रूपए की एक एकड़ भमि खरीदी।
- के पी ने भोपाल के नयापुरा में पच्चीस हजार वर्गफीट का फार्म भी बिना विभाग को बताए खरीदा है।
- केपी ने भोपाल की आधुनिक गृह निर्माण समिति में दो प्लाटों के लिए राशि पांच लाख रूपए जमा की है।
- केपी की काली कमाई की जानकारी विधानसभा स्थित बैंक के खाता क्रमांक 01190041333 की डिटेल निकलवाने से मिल जाएगी।
- केपी ने 10 अप्रेल 09 को अपने उपरोक्त बैंक खाते से पच्चीस पच्चीस लाख के दस चेक जारी किए हैं। यह ढाई करोड़ रूपए की राशि उनके पास कहां से आई?
- केपी ने विधानसभा कर्मचारी सहकारी खास समिति के अध्यक्ष रहते अपने कॉलेज के लिए फर्जी तरीके से 1.21 करोड़ रूपए की एफडीआर बना ली, ताकि इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालन की अनुमति मिल सके।
- विवेकानंद कॉलेज संचालित करने वाली संस्था अक्षय शक्ति शिक्षा समिति में केपी द्विवेदी स्वयं अध्यक्ष रहे एवं पत्नि चंद्रकांती द्विवेदी को कोषाध्यक्ष एवं रिश्तेदार विवेकानंद द्विवदी को सचिव बनाकर करोड़ों रूपए का गबन किया है।
- केपी ने सत्य सांई सहकारी बैंक में जमा 35 लाख व 17 लाख रूपए की एफडीआर कॉलेज प्रबंधन की बिलना अनुमति के तुडवा लीं।
- केपी ने अपनी पत्नि के चद्रकांती द्विवेदी के नाम से साढ़े दस लाख रूपए की कीमत से 52 सीटर बस क्रमांक एमपी 04 एचबी 9189 खरीदी। यह पैसा उनके पास कहां से आया?
- केपी द्विवेदी ने अपनील पत्नि क नाम से भोपाल के पारस सिटी में एक फ्लेट खरदा एवं उसे बेचका साढ़े नो लाख रूपए कॉलेज में श्यामकली के नाम से निवेश कर दिया। चंद्रकांती एवं श्यामकली एक ही महिला है।
- केपी ने कॉलेज में फार्मेसी के भवन को दिखाकर बीएड की अनुमति प्राप्त की है।

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

 

राजेंद्र शुक्ल पर मेहरबानी क्यों?




 


भ्रष्टाचार पर सरकार की दोहरी

नीति शक के घेरे में

बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल। शुचिता का दंभ भरने वाली भाजपा सरकार की दोहरी नीति की इन दिनों राजनीतिक वीथिकाओं में खासी चर्चा है। आयकर विभाग द्वारा मारे गए छापे के बाद शिवराज मंत्रिमंडल से अजय विश्नोई को हटा दिया गया था, जबकि एक अन्य छापे के बावजूद खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल के आगे सरकार ढाल की तरह खड़ी हो गई है। सत्ता के गलियारों में सरकार के इस दोहरे रवैये पर आश्चर्य जताया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों आयकर विभाग ने खनिज राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के भाई विनोद शुक्ल के मेट्रो प्लाजा स्थित कार्यालय पर छापा मारा था। इसमें विनोद ने डेढ़ करोड़ की अघोषित आय स्वीकार की थी। छापे की इस कार्रवाई से राजनीतिक हलकों में सनसनी फैल गई। सूत्र बताते हैं कि मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने अपने इस भाई के एक दोस्त को एक खदान देकर उपकृत किया है। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अपने विभाग की पांच विवादास्पद फाइलों को भी आगे बढ़ा दिया है। हालांकि भाजपायी गलियारों में राजेंद्र शुक्ल को ईमानदार के रूप में माना जाता है, किंतु उनके विवादास्पद फैसलों और उनके भाई के यहां आयकर छापे ने उनकी असलियत बयान कर दी है। भाजपायी यह मान कर चल रहे थे कि छापे की कार्रवाई के बाद शुक्ल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया जाएगा, किंतु एंसा नहीं हुआ और सरकार उनके आगे ढाल बन कर खड़ी हो गई। गौरतलब है कि जब अजय विश्नोई के यहां आयकर विभाग का छापा पड़ा था, तब मुख्यमंत्री ने उन्हें तत्काल मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था, लेकिन राजेंद्र शुक्ल के मामले में शिवराज खामोश रह गए। मुख्यमंत्री की इस दोहरी नीति से भाजपायी हतप्रभ हैं। खास बात यह है कि प्रतिपक्ष की भूमिका में बैठी कांग्रेस भी इस मामले में खामोश है।
कहीं शिव पर इकबाल

का 'पूर्णग्रहण' न लग जाए 

















बिच्छू डॉट कॉम

सत्ता के गलियारों से लेकर प्रशासनिक वीथिकाओं तक एक ही सर्वशक्तिमान और दरबार के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस का नाम गूंज रहा है।

सत्ता के गलियारों से लेकर प्रशासनिक वीथिकाओं तक एक ही सर्वशक्तिमान और दरबार के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस का नाम गूंज रहा है। नाम क्यों गूंज रहा है? यह सवाल अहम है। कौन है यह इकबाल, जिसके बिना पूरे प्रदेश में पत्ता तक नहीं हिलता? क्यों नहीं हिलता? कोई भी काम, कोई भी फाइल इनके इशारे के बिना मूव नहीं होती। क्या 'कारण' है कि इकबाल से बिना पूछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह, उनके साले, भाई-भजीते कोई कदम नहीं उठाते? प्रशासनिक कार्य ही नहीं, कई महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले भी इकबाल सिंह की सहमति से ही होते हैं। आखिर शिव दरबार के इस दमनकारी में क्या खासियत है कि मुख्यमंत्री इसकी जेब में हैं? इसे जानिए... पहचानिए मुख्यमंत्री जी वरना आपके मंत्री और विधायक कहीं विद्रोह पर आमादा न हो जाएं। सत्ताई गलियों में फिजा बदलते समय नहीं लगता है।
शिव मंत्रिमंडल के अधिकतर मंत्री शिवराज का नाम सुनते ही छिटकते हैं। वे कहते हैं भाग्य कब तक साथ देगा। कुछ काम तो करना पड़ेगा। चंद अफसरों के साथ मीटिंग-मीटिंग खेलने से चुनावी नैया पार थोड़े होगी। एक मंत्री कहते हैं दिग्विजय सिंह कंधे पर हाथ रख कर निपटाते थे और शिवराज बातों-बातों में। शालीनता का लबादा ओढ़कर वे किसी काम के लिए किसी को 'ना' नहीं करते और काम किसी के करते नहीं।
प्रशासनिक वीथिकाओं में यह जुमला बड़ा प्रसिद्ध है कि शिवराज छींकने के लिए भी इकबाल सिंह की परमिशन लेते हैं। इकबाल सिंह के खिलाफ जो माहौल बन रहा है,  उसकी वजह  मंत्रियों, विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों की नाराजगी है। एक मंत्री का कहना है कि मैंने मुख्यमंत्री को सुझाव दिया है कि इकबाल सिंह के कमरे की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाएं। वे मंत्रियों, विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों से किस तरह का व्यवहार करते हैं, इसकी सच्चाई सामने आ जाएगी। शिवराज सिंह से प्रदेश के पचहत्तर फीसदी से ज्यादा अफसर इसलिए नाराज हैं, क्योंकि उन्होंने इकबाल सिंह को माथे पर बिठा रखा है। प्रदेश के सभी मंत्रियों को इस अफसर ने पिछले कई महीनों से रुला रखा है। कारण है मंत्रियों के निवास पर उनके पर्सनल स्टाफ की नियुक्ति। हर नियुक्ति को इस व्यक्ति ने रोके रखा। मंत्री हैरान-परेशान रहे, लेकिन हुआ वही जो इकबाल सिंह ने चाहा। मंत्री-विधायक मुख्यमंत्री से तो आसानी से मिल लेते हैं, लेकिन इकबाल से मिलना उनके लिए टेढ़ी खीर है।

बिना शपथ का सीएम

सर्वशक्तिमान इकबाल सिंह ने भले ही पद एवं गोपनीयता की शपथ नहीं ली हो, लेकिन वे ही असली मुख्यमंत्री हैं। इकबाल कैबिनेट में भी कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), राज्यमंत्री, उपमंत्री से लेकर संसदीय सचिवों तक की भागीदारी है। आईए, हम बताते हैं आपको, कौन हैं इकबाल सिंह की काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स में-

1. अनुराग जैन : मृदुभाषी, सौम्य व्यवहार के धनी आईएएस अफसर अनुराग जैन वैसे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिव हैं, लेकिन वे असली जवाबदेह इकबाल सिंह बैस के प्रति हैं। इकबाल के कहने पर ही अनुराग पूरे समय मुख्यमंत्री को सिर्फ मीटिंग्स में उलझाए रखते हैं। चाहे मीटिंग स्वास्थ्य विभाग की हो, पंचायत की अथवा विकास के मुद्दे पर कोई भी विषय पर हो। मुख्यमंत्री को ये महाशय एक मीटिंग में घंटों व्यस्त कर देते हैं। मामला मंथन का ही क्यों न हो, आप खुद देख लें, सीएम ने अब तक कई घंटे उसमें खपा दिए। ये भी एक साजिश है। सीएम को मीटिंग में व्यस्त रखो और बाकी सारी फाइलें 'इकबाल भाई' निपटा लेंगे। कुल मिलाकर इकबाल की जादूगिरी के चलते ही अनुराग ने शिवराज को मीटिंग वाले मुख्यमंत्री बना दिया।

2. एसपीएस परिहार : परिहार साहब भी इकबाल सिंह के ही मेम्बर हैं। उनका भी वही दायित्व है सीएम को व्यस्त रखना। ये महाशय 24 घंटे सीएम को सिर्फ बिजली के मामलों में उलझाए रखते हैं। किसानों को भले बिजली के दर्शन न हो रहे हों, लेकिन परिहार साहब कागजों और मीटिंग में ऐसे आंकड़े पेश करते हैं कि लगता है प्रदेश  में बिजली का संकट नहीं है।

3. विवेक अग्रवाल : अब नए सचिव विवेक अग्रवाल को ही लें, इंदौर में कलेक्टर थे तो एक शराब ठेकेदार से रिश्वत में एक करोड़ का फ्लैट अपने नाम करवा लिया। भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड इंदौर में तोड़े और अब इकबाल भाई की कृपा से मुख्यमंत्री सचिवालय में पहुंच गए। वह भी ईमानदार और मेहनती अफसर की छवि लेकर। अब ये महाशय भी 'भाई' की रणनीति के तहत मुख्यमंत्री को लेपटॉप के जाल में उलझाए हुए हैं। लेपटॉप के रंगारंग में सीएम को सूखी फसल भी हरी-भरी नजर आ रही है। प्रदेश में इस समय फर्टिलाइजर के लिए किसान एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हैं। 40 हजार मीट्रिक टन फर्टिलाइजर की मांग के बदले प्रदेश के पास पांच हजार मीट्रिक टन फर्टिलाइजर नहीं है। पहले विवेक ने फर्टिलाइजर इम्पोर्ट करने के सपने दिखाए, फिर कहा कि यहां आते-आते तक तो फसल पकने का समय आ जाएगा। मंडी बोर्ड संभाल रहे इन महाशय पर ही खेती को लाभ का धंधा बनाने की जिम्मेदारी है।

राज्यमंत्री : ये तो 'भाई' के कैबिनेट मंत्री हैं। अब बात करते हैं राज्यमंत्री और स्वतंत्र प्रभार वालों की। स्वतंत्र प्रभार कौन संभाल रहा है। इसमें वे अफसर हैं जो मुख्यमंत्री अथवा मंत्रियों के इर्दगिर्द रहते हैं।

1. नीरज वशिष्ठ : इस चेहरे को शायद लोग नहीं जानते हों। ये महोदय 'इकबाल भाई' के सबसे करीबी लोगों में से एक हैं। नीरज मुख्यमंत्री के अवर सचिव हैं और उनके पीए का काम देखते हैं। यानी 24 घंटे सीएम साहब के साथ रहते हैं। नीरज का काम है कि 'भाई' को सारी खबर देना। सीएम कहां गए, किससे मिले, आदि... आदि। कुल मिलाकर नीरज 'भाई' के निर्देश पर ही सीएम से लोगों की बात करवाता है, मुलाकात करवाता है। वैसे तो नीरज वशिष्ठ को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का माना जाता है, लेकिन वे अब 'भाई' के रैकेट के अंग हैं। नीरज अब 'भाई' के साथ मिलकर चारों तरफ अपने लोगों को बिठा रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो नए मंत्रियों के यहां निजी स्टाफ किसी मंत्री की मर्जी से तय नहीं हुआ, बल्कि नीरज शर्मा और 'भाई' की मर्जी से स्टाफ नियुक्त हुआ। सरताज सिंह शिवराज कैबिनेट में मंत्री तो बनाए गए, लेकिन उनका विशेष सहायक 'भाई' ने तैनात कर दिया। सरताज चाहते थे उनकी पसंद का आदमी नियुक्त हो। इसके लिए उन्होंने नोटशीट भी भेजी, लेकिन हुआ क्या? मुख्यमंत्री सचिवालय के निर्देश पर दिलीप कापसे को सरताज का विशेष सहायक नियुक्त कर दिया गया। सामान्य प्रशासन विभाग ने बाकायदा इसकी प्रतिलिपि सीएम सेक्रेटरिज को भी दी, जिसमें कहा गया कि उनकी नोटशीट पर कापसे की सेवाएं सरताज सिंह के यहां सौंपी गई है। अब आप जानिए दिलीप कापसे कौन हैं। डिप्टी कलेक्टर रैंक के इस अफसर पर गरीबों के अनाज खाने पर हरदा थाने में एफआईआर दर्ज है, जांच जारी है, लेकिन इस दागी को नीरज का साथी होने के चलते सरताज के यहां बिठा दिया गया ताकि वन विभाग में 'भाई' की दुकान चलती रहे।

2. राकेश श्रीवास्तव : ये रेशम विभाग के अधिकारी हैं। कुछ समय पहले तक संस्कृति और जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के विशेष सहायक थे। यहां भी ये मंत्री की इच्छा के चलते पदस्थ नहीं किए गए थे, बल्कि मुख्यमंत्री सचिवालय ने जबरिया उन्हें थोप दिया था। इनकी भी 'भाई' से नजदीकियां चर्चा में हैं। जब 'भाई' एक जिले के कलेक्टर थे, तब ये जिला रेशम अधिकारी थे। तब के रिश्ते अब तक चल रहे हैं। 'भाई' अब इनका जल्दी ही पुनर्वास करवाने वाले हैं।

3. नरेश पाल : ये महाशय एडीशनल कलेक्टर कटनी के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले मंत्रालय में नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव जैसे मलाईदार पद पर रहे हैं। ये साहब भी 'भाई' के एकदम करीबी हैं, सो इस नजदीकी के चलते पाल साहब को स्वतंत्र प्रभार वाले पॉवरफुल राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल का विशेष सहायक बना दिया गया। मंत्री की निजी पदस्थापना के लिए सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी की, लेकिन विभागीय जांच से घिरे होने के बावजूद पाल को मंत्री का विशेष सहायक बना दिया गया। अब पाल के चलते 'भाई' की बिजली और माइनिंग दोनों महकमों में पकड़ बरकरार है।

4. राजेंद्र सिंह : ये महोदय परिवहन, जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक हैं, लेकिन 'भाई' की कृपा से। वैसे तो महोदय कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर राजपत्रित हुए हैं, लेकिन देवड़ा जी के यहां ये ही सर्वशक्तिमान हैं। इनके हाल ये हैं कि मंत्री जी के निर्देशों का भी राजेंद्र सिंह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि जब तक 'भाई' की हरी झंडी नहीं मिलती, कोई काम नहीं हो सकता है। परिवहन विभाग में एक साल में जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनका एक पैसा मंत्री को नहीं मिला, क्योंकि राजेंद्र को सारा हिसाब 'भाई' को देना पड़ता है।

5. अजय श्रीवास्तव : ये महोदय बाबूलाल गौर के विशेष सहायक हैं। कहने को तो गौर साहब कद्दावर नेता हैं, लेकिन उनकी जान अजय श्रीवास्तव में अटकी है और ये महाशय 'भाई' के खास आदमी हैं।

यूं तो नाम गिनाते-गिनाते हम थक जाएंगे और आप पढ़ते-पढ़ते थक जाएंगे, लेकिन इकबाल कैबिनेट खत्म नहीं होगी। 'भाई' इतना चतरा है कि शिवराज कैबिनेट के जितने देवड़ा टाइप मंत्री है उनके पास पॉवरफुल विभाग होने का सिर्फ और सिर्फ इतना कारण है कि वे विभाग 'भाई' के डायरेक्शन में चलते हैं।

और अंत में -

चेहरे बदलने का हुनर मुझ में नहीं,
दर्द दिल में हो तो हँसने का हुनर मुझ में नहीं,

मैं तो आईना हूँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करूं,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझ में नहीं।

चलते चलते थम जाने का हुनर मुझ में नहीं,
एक बार मिल के छोड़ जाने का हुनर मुझ में नहीं,

मैं तो दरिया हूँ, बहता ही रहा,
तूफान से डर जाने का हुनर मुझ में नहीं

सीएम हाउस और मंत्रालय में हुए खर्च का पर्दाफाश

सीएम हाउस और मंत्रालय

में हुए खर्च का पर्दाफाश










गज़ब का हाज़मा है इनका। एक साल में 1.86 करोड़ भोज की राजनीति पर खर्च। ढाई लाख का भोज कर गईं शिवराज की बहनें। सत्कार पर 32.48 लाख का खर्च। सीएम हाउस में दूध-घी की गंगा बही। मोबाइल, लैंडलाइन का खर्च बताने में आनाकानी।
महेश बागी
बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल । मध्यप्रदेश सरकार कर्ज में डूबी है। देनदारियां चुकाई नहीं जा रही हैं। केंद्रीय अनुदान की राशि दुगनी मिल रही है। फिर भी विकास कार्य ठप हैं। सरकार मितव्ययिता पर जोर दे रही है और इसी सरकार की नाक के नीचे तमाम नियम-कानूनों को ताक में रख कर आतिथ्य सत्कार और सरकारी बैठकों के नाम पर करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं। खास बात यह है कि जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार खत्म करने का राग अलापते हुए मितव्ययिता की बात कर रहे हैं, उन्हीं के निवास और सचिवालय में आतिथ्य सत्कार के नाम पर जन-धन फूंका जा रहा है। राज्य मंत्रालय में आतिथ्य सत्कार का एक घोटाला उजागर होने और उसके दफन होने के बावजूद सरकार की आंख नहीं खुली है।
किस बात की तनख्वाह लेते हैं सीएम
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार सभी जनप्रतिनिधियों को सरकारी खजाने से वेतनमान दिया जाता है, ताकि वे अपने घर-परिवार के दैनंदिनी खर्च वहन कर सकें। इस अधिनियम के अनुसार मुख्यमंत्री को भी एक निश्चित धनराशि दी जाती है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री निवास में आतिथ्य सत्कार के नाम पर जन-धन खर्च किया जाता है। अप्रैल 2004 से मार्च 2009 तक मुख्यमंत्री निवास में आगंतुकों के सत्कार पर 32,48,172 रुपए खर्च किए गए। ये आगंतुक कौन थे, उन पर खर्च करने की वजह क्या थी तथा उन पर किस मद में खर्च किया गया, इसकी जानकारी देने में मुख्यमंत्री सचिवालय मौन है। क्यों?
क्या कहते हैं नियम?
मप्र स्टेट गेस्ट रूल्स 1958 के अनुसार यदि मुख्यमंत्री निवास में कोई राजकीय अतिथि आता है तो उस पर सरकारी मद में सत्कार पर खर्च किया जा सकता है। इसी नियम में यह भी कहा गया है कि किसी भी निजी कारण से मिलने आने वाले पर सरकार सत्कार मद में कोई राशि खर्च नहीं करेगी। इसी नियम में यह भी प्रावधान है कि मुख्यमंत्री निवास में आने वाला व्यक्ति सरकारी टेलीफोन का उपयोग नहीं कर सकेगा और यदि वह ऐसा करता है तो रजिस्टर में इसका पूरा ब्यौरा भी देगा।
भोज की राजनीति
मुख्यमंत्री द्वारा 16 अगस्त 2008 से 23 जुलाई 2009 की अवधि में कुल छह भोज दिए गए। इसमें 25 जुलाई 2009 को नवनिर्वाचित विधायकों और 4 जुलाई 09 को लोकसभा अध्यक्ष के सम्मान में भोज दिए गए, जिनके लिए मुख्यमंत्री को पात्रता थी। शेष तीन भोज उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए दिए।
ढाई लाख का भोज कर गईं बहनें
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दिए गए भोजों में रक्षाबंधन पर दिए गया भोज उल्लेखनीय है। मुख्यमंत्री निवास में रक्षाबंधन पर राखी बांधने आईं बहनें 2,56,425 रुपए का भोज कर गईं। जन्माष्टमी के अवसर पर सीएम हाउस में फलाहारी भोज का आयोजन किया गया। जिस पर 4,82,662 रुपए खर्च हुए। उपरोक्त पांच भोजों की कैटरिंग होटल पलाश द्वारा की गई। इसी प्रकार होटल रंजीत की कैटरिंग में 4 जुलाई 09 को दिए गए भोज पर 7,19,688 रुपए खर्च आया। इन छह भोजों पर कुल 1 करोड़, 86 लाख, 534 रुपए व्यय हुआ।
32.48 लाख रुपए सत्कार पर खर्च
उपरोक्त भोजों के अलावा मुख्यमंत्री निवास में अप्रैल 2004 से मार्च 2009 तक 32 लाख, 48 हजार, 172 रुपए अतिथि सत्कार पर खर्च किए गए। गौरतलब तथ्य यह है कि इस अवधि में सीएम हाउस के हाउसकीपर ने समय-समय पर खरीदी की, इसके बावजूद इंडियन कॉफी हाउस, होटल पलाश, पर्यटन निगम, मनोहर डेरी, होटल द मार्क, सह्याद्रि किराना, होटल रंजीत, अजमेरा स्टोर्स, सांची पार्लर, प्रियदर्शिनी, होटल राजहंस, होटल मानसरोवर, लल्लन डेरी, जहांनुमा पैलेस, मोटल शिराज, छप्पनभोग, ब्रज इंटरप्राइजेस की सेवाएं लेकर उनका भुगतान किया गया।
कितने गैस कनेक्शन?
सीएम हाउस में कितने गैस कनेक्शन हैं और कितनी टंकियां हैं, यह भी शोध का विषय हो सकता है। सीएम हाउस से दिए गए खर्च के ब्यौरे में क्रमांक 78 पर 4605 रुपए आरके गैस डिस्ट्रीब्यूटर्स को देना बताया गया है। इस हिसाब से वहां कम से कम 13 गैस टंकियां तो हैं। क्या सीएम हाउस में एक साथ इतनी टंकियां रखी जाना न्यायसंगत और सुरक्षा की दृष्टि से उचित है?
दूध-घी की गंगा बही
खर्च के ब्यौरे के अनुसार 28 मई 2007 को 16510 रुपए का दूध-घी खरीदा गया। इसी दिन में लल्लन डेरी से 13680 रुपए की खरीदी की गई। एक दिन में 30190 रुपए की डेरी सामाग्री खरीदी जाना क्या संदेहास्पद नहीं लगता? आखिर इस दिन सीएम हाउस में ऐसे कितने अतिथि आए, जिन पर इतनी बड़ी धनराशि सिर्फ डेरी मद में खर्च की गई?
मोबाइल और लैंडलाइन का खर्च कहां?
सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री निवास के मोबाइल और लैंडलाइन टेलीफोन कनेक्शन पर किए गए खर्च का ब्यौरा भी मांगा गया था, किंतु सामान्य प्रशासन विभाग ने यह जानकारी नहीं दी। इस पर विभाग की उपसचिव अरुणा गुप्ता के समक्ष प्रथम अपील की गई तो उन्होंने अपीलार्थी को ही धमकाया। द्वितीय अपील में जब यह मामला राज्य सूचना आयोग में पहुंचा। तो सूचना आयुक्त ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर उप सचिव पर कार्यवाही करने को कहा, किंतु इस दिशा में आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
नौकरशाह भी पीछे नहीं
जब मुख्यमंत्री निवास अपने आगंतुकों पर धन लुटाने में लगा रहा तो नौकरशाह भला पीछे कैसे रहते। विभागीय अफसरान और मंत्रियों की राज्य मंत्रालय में होने वाली बैठकों के खर्च का ब्यौरा देख कर भी आश्चर्य होता कि ये लोग मंत्रालय में बैठ कर सरकारी कामकाज निपटाते हैं या चाय-नाश्ता ही करते रहते हैं।
3.80 करोड़ का चाय-नाश्ता
राज्य मंत्रालय में 1 फरवरी 2009 से 31 अगस्त 2009 तक की गई विभिन्न बैठकों में मंत्रियों-अधिकारियों के चाय-नाश्ते पर 3 करोड़, 80 लाख, 716 रुपए खर्च किए गए। मात्र सात माह में हुई बैठकों पर इतनी बड़ी धनराशि खर्च होना अपने आप में आश्चर्य का विषय है। खास बात यह है कि इतना जन-धन हजम करने के बावजूद तमाम अधिकारी और मंत्री लंच टाइम में अपने-अपने निवास भी जाते  रहे। आम जनता जिन लोगों को भरे पेट वाला समझती है,  वे वास्तव में कितने भूखे हैं, यह इस उदाहरण से समझा जा सकता है।
पानी पर पानी की तरह खर्च
राज्य मंत्रालय में होने वाली बैठकों में पानी पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। उदाहरण के लिए किसी एक बैठक में प्रमुख सचिव, सचिव, अतिरिक्त सचिव और उप सचिव स्तर के 12 अधिकारी शरीक हुए तो सभी के लिए एक-एक मिनरल वाटर बोतल खरीदी गई। अब बैठक में इन्होंने भले ही दो-चार घूंट पानी पीया हो, लेकिन खर्च तो पूरी बोतल का ही होता है। जिस प्रदेश में धनाभाव में विकास न हो पा रहा हो, कुपोषण से मौतें हो रही हों, किसान खून के आंसू रो रहे हों, वहां अफसरान की यह अय्याशी क्या शर्म का विषय नहीं है?
घोटाले की आशंका
राज्य मंत्रालय में शिवराज सरकार के ही कार्यकाल में सत्कार घोटाला प्रकाश में आ चुका है, जिसमें तत्कालीन सत्कार अधिकारी राजेश मिश्रा को संदिग्ध माना गया था। इस प्रकरण की गहन जांच के बाद भी पुलिस को विभागीय दस्तावेज हाथ नहीं लग पाए थे। इस कारण आरोपी पर कार्यवाही करना तो दूर, उसे पुन: सम्मानजनक पदस्थापना दे दी गई। इतना बड़ा घोटाला सामने आने और उसमें कुछ भी हासिल न होने के बावजूद मंत्रालय में बैठकों के नाम पर भारी खर्च किए जाने से एक और कांड होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
जानकारी लेकर रहेंगे
आरटीआई एक्टिविस्ट सुश्री शेहला मसूद ने मुख्यमंत्री निवास में हुए कथित अतिथि सत्कार की जानकारी लेना चाही तो उन्हें बहुत बार टरकाया गया और मोबाइल टेलीफोन की जानकारी तो फिर भी नहीं दी जा रही है। उनका कहना है कि राज्य सूचना आयुक्त के यहां दायर अपील के बाद सरकार को सब कुछ बताना होगा और हम यह जानकारी लेकर ही रहेंगे। अलबत्ता राज्य मंत्रालय के खर्च की जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे को मिल गई।


जोशी परिवार के लॉकर्स

से निकला सवा किलो सोना
























भोपाल. निलंबित आईएएस अधिकारी अरविंद जोशी के पिता सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर एचएम जोशी और उनकी पत्नी निर्मला जोशी के तीन लॉकर में करीब सवा किलो सोना और 10 किलो चांदी के जेवर मिले हैं। इसकी कीमत 20 लाख रुपए आंकी गई है। आयकर विभाग ने मंगलवार को रविशंकर नगर स्थित सद्गुरु नागरिक सहकारी बैंक में उनके तीन लॉकर खोले हैं। यहां एक लॉकर एसपी शर्मा के नाम से मिला है, जिसे जोशी परिवार का बताया जा रहा है। इस लॉकर को बाद में खोला जाएगा।

आयकर विभाग की टीम दोपहर करीब 12 बजे बैंक पहुंची। श्री जोशी की मौजूदगी में लॉकर खोलने का काम शुरू हुआ। इन लॉकरों में बोरी में भरकर जेवर रखे हुए थे। विभाग के अनुसार 1200 ग्राम सोना (18 लाख) और 10 किलो चांदी (दो लाख) के जेवर मिले हैं। अरविंद-टीनू जोशी के निवास पर छापे के दौरान सद्गुरु बैंक में किन्हीं एसपी शर्मा के नाम आवंटित एक लॉकर की चाबी व दस्तावेज मिले थे।

इस बारे में जोशी दंपति ने आयकर अधिकारियों को बताया है कि एसपी शर्मा उनके परिचित हैं और उन्होंने बैंक में केवल उनका परिचय कराया था। विभाग के अधिकारियों ने श्री शर्मा से संपर्क किया, वे अभी बड़ौदा में हैं। उनके भोपाल आने के बाद लॉकर को खोला जाएगा। एचएम जोशी सद्गुरु नागरिक सहकारी बैंक के संस्थापक सदस्य हैं वे बैंक के पहले संचालक मंडल में संचालक रह चुके हैं। (पेज 9 भी पढ़ें)

अब तक सामने आई काली कमाईअरविंद-टीनू जोशी के पासनकद : 3 करोड़ 3 लाखसोना : 6 लाख 65 हजारहीरा : 1 लाख 70 हजारविदेशी मुद्रा : 7 लाखएचएम जोशी के निवास परनकद : 1 लाख 75 हजारसोना : 6 लाख 27 हजारचांदी : 58 हजारटीनू जोशी के लॉकर में 21 लाख के आभूषणएचएम जोशी के लॉकर में 20 लाख के आभूषण

नोटों पर लगी बैंक सील ने खोली पोलनिलंबित आईएएस अधिकारी अरविंद-टीनू जोशी के निवास से जो तीन करोड़ रुपए की नकदी मिली है, वह तो सिर्फ छह महीने में ही जुटाई गई है। इस दंपति के पास इससे कहीं ज्यादा राशि हो सकती है। यह खुलासा किया है आयकर विभाग ने।

अब विभाग इस बात की तहकीकात कर रहा है कि जोशी दंपति ने किसी बैंक में कोई बेनामी खाता तो नहीं खोल रखा? दरअसल छापे में जोशी दंपति के घर से मिले नोटों पर लगी बैंक की सील के आधार पर कहा जा रहा है कि यह राशि पिछले छह महीने में ही जुटाई गई थी।

इसमें से कुछ पर तो पिछले महीने की ही सील लगी है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि इस हिसाब से जोशी दंपति के पास हर माह न्यूनतम 50 लाख रुपए आ रहे थे। अब तक जोशी दंपति के करीब 6 करोड़ रुपए के निवेश की जानकारी मिली है। विभागीय अधिकारी इस बात की तहकीकात कर रहे हैं कि कहीं इनके गोपनीय खाते तो नहीं हैं?

असाई भी सस्पेंडआयकर छापों के सिलसिले में लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय भोपाल में पदस्थ अधीक्षण यंत्री दीपक असाई को मंगलवार को निलंबित कर दिया गया। 4 फरवरी को आईएएस दंपति अरविंद और टीनू जोशी के यहां छापों के दौरान श्री असाई के यहां भी छापा मारा गया था।

पूरे परिवार की है ये संपत्तिञ्चआज मेरी मां के लॉकर खुले हैं। उसमें से जो संपत्ति मिली है वो मेरी मां, भाभी और अमेरिका व इंग्लैंड में रहने वाली दो बहनों के नाम से है। जैसे ही वहां से अथॉरिटी लैटर आएगा, आयकर विभाग को सौंप दिया जाएगा। इसमें कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है। पत्नी टीनू जोशी के पास 110 ग्राम सोना मिला है।अरविंद जोशी, सस्पेंड आईएएस अधिकारी 



कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल सस्पेंड 


लॉकर से मिले 15 लाख रुपए


रायपुर. छत्तीसगढ़ के कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल को राज्य सरकार ने बुधवार को सस्पेंड कर दिया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर मामले को आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो को सौंपा जा रहा है। कहा जा रहा है कि श्री अग्रवाल को आयकर विभाग की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर निलंबित किया गया है।
उधर बाबूलाल अग्रवाल के लॉकर से आयकर विभाग की टीम ने बुधवार को 15 लाख नकद जब्त किए। अधिकारियों की मिलीभगत से उनके लॉकर के रिकॉर्ड में छेड़छाड़ का मामला सीबीआई को सौंप दिया गया है।
आयकर विभाग की टीम आज सुबह रायपुर में केके रोड स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा पहुंची और श्री अग्रवाल का लॉकर खोला। इस लॉकर में ठूंस-ठूंस कर नोट भरे हुए थे। टीम ने कुल 15 लाख रुपए जब्त किए हैं। बैंक के रिकॉर्ड के अनुसार यह लॉकर बाबूलाल अग्रवाल और आरडी गोयल के संयुक्त नाम से था।
इसे पिछले साल जुलाई में आरडी गोयल द्वारा ऑपरेट करना बताया गया है, जबकि गोयल की चार साल पहले मृत्यु हो चुकी है। इतना ही नहीं बाबूलाल अग्रवाल ने पुरानी तारीख में एक आवेदन देकर यह लॉकर अपने भाई पवन अग्रवाल (रायपुर) के नाम हस्तांतरित करवा लिया।

आवेदन में यह भी लिखा है कि इसमें रखा सामान भी उन्हीं का है। बैंक अधिकारियों ने लॉकर के रिकॉर्ड में से बाबूलाल अग्रवाल का नाम पेन से काट दिया। आयकर विभाग ने बैंक का रिकॉर्ड जब्त कर लिया है। इस पूरी कार्रवाई के दौरान सीबीआई की टीम भी मौजूद थी।

अग्रवाल के चार लॉकर किस बैंक में:
बाबूलाल अग्रवाल के निवास पर आयकर छापे के दौरान पांच लॉकर की जानकारी मिली थी। इनमें से एक को तो विभाग ने खोज लिया, लेकिन बाकी चार किस बैंक में हैं, इसकी खोजबीन जारी है। इन लॉकरों के निर्माता और चाबी नंबर के आधार पर पड़ताल की जा रही है। विभाग के अधिकारी के अनुसार यह लॉकर 1980 के आसपास बैंक में स्थापित हुए हैं। वे रायपुर की हर बैंक में इसकी जांच करेंगे।



5 अरब की बेनामी संपत्ति उजागर



भोपाल. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीन आईएएस अफसरों समेत विभिन्न जगह आयकर विभाग द्वारा की जा रही छापेमार कार्रवाई में अब तक करीब 500 करोड़ की बेनामी संपत्ति का पता चला है। इसमें 7.7 करोड़ की नकदी और ज्वैलरी भी शामिल है।
आयकर विभाग के मुताबिक 7.2 करोड़ रुपए की संपत्ति मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों व अन्य के यहां से जब्त की गई। इस दौरान ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं जिनमें मप्र और छत्तीसगढ़ के अफसरों के यहां करीब ५क्क् करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति होने की पुष्टि होती है। आयकर विभाग द्वारा दावा किया जा रहा है कि मप्र व छत्तीसगढ़ के तीनों आईएएस अफसरों के पास अकूत अवैध संपत्ति है।


 कृषि सचिव ने खपाई काली कमाई
रायपुर. कृषि सचिव बीएल अग्रवाल और उनके रिश्तेदारों के यहां मिली काली कमाई की रकम अनजान गांव वालों के नाम पर खपाई गई है। खरोरा और उसके आसपास के गांवों के लोगों के नाम से अनेक खाते खुलवाकर नंबर दो की कमाई की राशि इस्तेमाल की गई। किसी के नाम से 10 लाख तो किसी के नाम से पांच लाख रुपए बैंक में जमा किए गए। जिनके नाम से खाते हैं, उन्हें पता ही नहीं है कि वे लखपति हैं।

ये सब खाते असल में अग्रवाल और उनके लोग ही संचालित करते थे। इसी गोरखधंधे की पड़ताल करने के लिए आयकर अधिकारियों की टीम खरोरा पहुंच गई। आयकर अधिकारियों ने आज नोटरी के सामने शपथपूर्वक ग्रामीणों के बयान लिए। इसके साथ ही उनके बयानों की वीडियो शूटिंग भी कराई गई। उन्होंने ग्रामीणों के नाम से पैनकार्ड भी बनवाए ताकि किसी प्रकार कानूनी अड़चन काली कमाई को खपाने में न आए।

मुफ्त में बने पैनकार्ड
घोटालों की रकम को खपाने के लिए सीए सुनील अग्रवाल और उनके रिश्तेदार आलोक अग्रवाल ने ग्रामीणों के नाम से पैनकार्ड थोक में बनवाए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास अग्रवाल खुद आए थे और यह कहकर गए कि पैन कार्ड आप लोगों के काफी काम आएगा, बनवा लीजिए। उन्होंने यहां तक कहा कि वैसे तो 1500 रुपए पैनकार्ड बनाने के लिए लगते हैं, लेकिन आप लोगों से कोई रकम नहीं ली जाएगी। इस तरह ग्रामीणों के मुफ्त में पैनकार्ड बन गए।


राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाई
कृषि सचिव बीएल अग्रवाल और उनके रिश्तेदारों के यहां आयकर छापों में मिली 300 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति के मामले में राज्य सरकार एक-दो दिन में कड़ी कार्रवाई करेगी। राज्य शासन ने आयकर विभाग से छापों के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मुख्यमंत्री दो दिन से नईदिल्ली में हैं। उन्होंने नईदिल्ली से ही पूरे मामलों पर नजर रखी हुई है। उनके निर्देश पर राज्य शासन ने आयकर विभाग से कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है।
उनके कल रायपुर लौटने पर इस संबंध मंे निर्णय लिए जाने की संभावना है। मध्यप्रदेश में आईएएस दंपत्ति टीनू जोशी और अरविंद जोशी को निलंबित किया जा चुका है। इस कारण माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ शासन भी इसी तरह की कार्रवाई कर सकता है। फिलहाल इसका खुलासा नहीं किया जा रहा है कि कार्रवाई क्या हो सकती है। इस बीच अग्रवाल ने राज्य शासन को अपनी संपत्ति के संबंध में सफाई दी है।
अग्रवाल ने मुख्य सचिव पी. जॉय. उम्मेन को पत्र लिखकर और दूरभाष के माध्यम से अपना पक्ष रखा है। उन्होंने शासन से कहा है कि उनके घर से मात्र छह लाख पांच हजार रुपए मिले हैं। इस रकम के बारे में वे शासन को पहले ही जानकारी दे चुके हैं।

जांच में फंसे अफसर भी जाएंगे 





 
 

इंदौर। प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने कहा भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अफसर कोई भी हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसमें किसी को सरंक्षण नहीं दिया जाएगा। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में चल रहे प्रकरणों में भी जल्द कदम उठाए जाएंगे।

बुधवार को इंदौर में संभागीय अफसरों की बैठक लेने के बाद वैश्य ने कहा हमने भ्रष्टाचार उजागर होते ही दोषी अफसरों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की है। यही सख्ती जारी रहेगी। राष्ट्रीय आयोगों की सिफारिशें तक दरकिनार कर दिए जाने के सवाल पर उन्होंने स्वीकारा मेरी जानकारी में भी ऎसे मामले आए हैं। ऎसे प्रकरण नहीं लटकाए जाने चाहिए। अब इसे गंभीरता से लिया जाएगा। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के प्रकरणों में न्यायालयीन फैसलों का इंतजार नहीं होगा। इसमें जुर्म की गंभीरता देखते हुए ही प्रशासनिक रूप से समय रहते दंडित किया जाएगा। कार्रवाई सही समय पर होगी।

शासन द्वारा भ्रष्टाचार में फंसे अफसरों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होने के सवाल पर उन्होंने कहा आयकर विभाग के पास शक्तियां ज्यादा होती है। शासन के पास इतने अधिकार नहीं है। हम उनसे जरूरी जानकारी हासिल कर रहे हैं।

उन्होंने बताया, मेरा सबसे ज्यादा जोर शासन की नीतियों का सही समय पर पालन करवाने पर रहेगा। हालांकि अपराधों के बढ़ते ग्राफ पर उन्होंने कुछ कहने से इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों के डायरी नहीं भरने पर वे बोले समीक्षा कर रहे हैं।

"जमीन का दर्द" में जारी रहेगी कार्रवाई
सहकारी संस्थाओं द्वारा पात्र सदस्यों को भी प्लॉट नहीं दिए जाने संबंधी मामलों (जमीन का दर्द) पर उन्होंने कहा इसके दोषियों पर कार्रवाई जारी रहेगी। ऎसे मामलों में इंदौर में प्रभावी कार्रवाई हो ही रही है, जो जारी रहेगी।

ब्यूरोक्रेसी भी शर्मसार
भोपाल। आईएएस दंपति अरविंद और टीनू जोशी प्रकरण से शर्मसार अफसर आत्मालोकन में जुट गए हैं। बुधवार को आईपीएस एसोसिएशन ने भ्रष्टाचार से दूर रहने और इसके खिलाफ एकजुट होने का संकल्प पारित किया। अध्यक्ष नंदन दुबे की अध्यक्षता में बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया।
शिवराज का हुक्म भी

नहीं सुनते अफसर 




इंदौर। जनता से सीधे रूबरू होने और विभागीय काम-काज पर नजर रखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला अफसरों को हर महीने डायरी लिखने का आदेश दिया था। इस आदेश के छह महीने होने को आए, लेकिन डायरी के पन्ने खाली है। 46 विभागों में डायरी नहीं भरी जा रही। डायरी नहीं लिखने वालों में 54 आला अफसर सामने आए हैं।

हिदायत भी बेअसर

अफसरों की सहूलियत के लिए डायरी भरने की ऑनलाइन व्यवस्था की गई है। प्रमुख सचिव ने गत 22 जनवरी को फिर अफसरों को हिदायत भरा पत्र भेजकर बताया है कि मुख्यमंत्री खुद इस डायरी को पढ़ते हैं। मुख्यमंत्री के आदेश को भी तवज्जो नहीं देने वाले इन अफसरों की पोल सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष अजय दुबे की ओर से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी से खुली है।

हर विभाग में ऎसे साहब

मुख्यमंत्री ने जून महीने से मासिक डायरी भरने के निर्देश दिए थे। इसका आदेश तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी ने 30 जून को जारी किया था। अफसरों की मनमानी को लेकर 22 जनवरी 2010 को हिदायत भरा दूसरा आदेश सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव सुदेश कुमार को जारी करना पड़ा।

54 आला अफसरों ने नहीं मानी
गृह विभाग
डीजीपी, नगर सेना एवं नागरिक सुरक्षा एचके सरीन, संचालक लोक अभियोजन विनोदसिंह बघेल
जेल विभाग
महानिदेशक एवं जेल महानिरीक्षक संजय वी माने
वित्त विभाग
सचिव अश्विनी कुमार राय, कोष एवं लेखा प्रभाकर बंसोड़ (तत्कालीन), संचालनालय, अल्प, बचत एवं राज्य लॉटरीज मनीष सिंह
वाणिज्यिक कर विभाग
प्रमुख सचिव एपी श्रीवास्तव, आयुक्त प्रसन्ना कुमार दास, महानिरीक्षक, पंजीयन एवं अधीक्षक मुद्रांक विनोद चंद्र सेमवाल  
राजस्व विभाग: प्रमुख सचिव एमएम उपाध्याय, आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विनोद कुमार
परिवहन विभाग: सचिव अनिरूद्ध मुखर्जी, परिवहन आयुक्त एनके त्रिपाठी (तत्कालीन)
खेल एवं युवक कल्याण विभाग: संचालक, खेल एवं युवक कल्याण संजय चौधरी, खनिज संसाधन विभाग, संचालनालय भौमिकी तथा खनिकर्म आरके शर्मा
सहकारिता विभाग: सहकारिता आयुक्त विश्व मोहन उपाध्याय, पंजीयक सहकारी संस्थाएं एससी तिवारी
श्रम विभाग: प्रमुख सचिव कृष्णपाल सिंह, श्रमायुक्त वीरा राणा (तत्कालीन)
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग: सचिव सुधीरंजन मोहंती, संचालक डॉ. अशोक शर्मा
लोक निर्माण विभाग: प्रमुख सचिव प्रभु दयाल मीना, सचिव मो. सुलेमान, प्रमुख अभियंता शैलेंद्र शुक्ला
खाद्य, नागरिक आपूर्ति: प्रमुख सचिव एके दास, नियंत्रक, नाप तौल एसके जैन
जल संसाधन: प्रमुख अभियंता केसी प्रजापति
चिकित्सा शिक्षा: संचालक डॉ. वीके सैनी
(सूची 31 दिसंबर 2009 तक की है। इसमें से कुछ अफसर अब स्थानांतरित हो चुके हैं।)

अफसरों को डायरी भरने का मुख्यमंत्री के आदेश को मृतप्राय: कहा जाएगा, क्योंकि अफसर अपनी तिजोरी भरने में व्यस्त हैं। ऎसी सूरत में मासिक पत्रक भरने का न तो उन्हें शौक है, न मजबूरी। आयकर विभाग के छापों ने कांग्रेस के कथन को सिद्ध भी कर दिया है।- केके मिश्रा, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस

मुख्यमंत्री का प्रशासनिक नियंत्रण समाप्त हो गया है। अफसर हकीकत में आम जनता के बीच जा नहीं रहे हैं। इसलिए डायरी भरने में भी डरते हैं।- अजय दुबे, प्रदेशाध्यक्ष, सूचना अधिकार प्रकोष्ठ

इन्हें लिखनी थी
* अपर मुख्य सचिव
* प्रमुख सचिव
* सचिव  विभागाध्यक्ष

यह लिखना है
* महीने में विभाग में लिए गए खास फैसले। प्रमुख कार्योü का उल्लेख।
* विभाग की महीने में उल्लेखनीय उपलब्धि। कम से कम तीन का उल्लेख।
* प्रदेश के विभिन्न अंचलों और प्रदेश के बाहर के दौरों का संक्षिप्त विवरण।
* आकस्मिक छुट्टी, अर्जित अवकाश या चिकित्सा अवकाश की संख्या।
दस हजार की रिश्वत लेते

हवलदार गिरफ्तार
 

भोपाल। लोकायुक्त पुलिस ने बुधवार को पिपलानी थाने के एक हवलदार को जिला अदालत के बाहर आरोपियों से बख्शने के बदले 10 हजार रूपए की रिश्वत लेते दबोच लिया। हवलदार ने जैसे ही पांच-पांच सौ के ये नोट लिए, वैसे ही उसके हाथ लाल हो गए और वह हतप्रभ रह गया।

पिपलानी थाने की अयोध्या नगर चौकी में पदस्थ हवलदार रामसेवक शर्मा ने बलवे की एक घटना में नामजद आरोपियों के साथ 8-10 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज किया था। जांच करने पर आनंद शर्मा नामक युवक से कहा गया था कि उसका नाम भी अज्ञात में शामिल है। यदि वह और उसके साथी बचना चाहते हैं तो 10 हजार रूपए देने पड़ेंगे।
हवलदार ने उसे यह राशि बुधवार शाम चार बजे जिला अदालत के बाहर लेकर आने को कहा।

साथ ही कहा कि वह रूपए लेकर नहीं आया तो प्रकरण में नाम जोड़कर अदालत में केस डायरी पेश कर दी जाएगी। आनंद ने पूरे मामले की शिकायत लोकायुक्त पुलिस को कर दी। इस पर लोकायुक्त पुलिस ने उसे योजना बनाकर बताए गए स्थान पर भेजा और जो रूपए दिए जाने वाले थे, उन पर ट्रेपिंग कैमिकल लगा दिया। डीएसपी लोकायुक्त राजेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि आनंद जैसे जिला अदालत के बाहर पहुंचा तो हवलदार उसे लेकर निकट की चाय की दुकान पर पहुंचा और पूछा रूपए लाए हो। इसके बाद जैसे ही रिश्वत का लेन-देन हुआ, लोकायुक्त की टीम ने उसे दबोच लिया।
आईएएस दंपती मामले


की जांच सीबीआई को 





 
 

भोपाल। भोपाल के आईएएस अफसरों अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी के पास आय से अधिक संपत्ति मिलने के मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी जा सकती है। सूत्रों के अनुसार आयकर विभाग ने इस मामले की पूरी जानकारी सीबीआई को दी है। विभाग ने आईएएस दंपती के सारे राज खंगालने के लिए सीबीआई से मदद मांगी है। माना जा रहा है कि इस बारे में इनकम टैक्स विभाग राज्य सरकार से सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर सकता है।

लॉकर ने उगला सोना
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को आईएएस अरविंद जोशी के पिता पूर्व डीजीपी एच.एम. जोशी के लॉकरों ने भी सोना उगला। सदगुरू नागरिक सहकारी बैैंक लिमिटेड (ई 5/13) स्थित उनके तीन लॉकरों से एक किलो 200 ग्र्राम सोना व 10 किलो चांदी बरामद हुई। इनकी कीमत 22 लाख आंकी गई है। लॉकरों से चांदी की थालियां, गिलास और बड़े-बड़े जग निकले। जोशी परिवार के लॉकरों से अब तक तकरीबन आधा करोड़ रूपए के हीरे-जवाहरात, सोना-चांदी बरामद हो चुके हैं। विभाग बुधवार से सीमा जायसवाल के बचे तीन लॉकर खोलेगा।

लोकायुक्त जांच भी शुरू
आयकर विभाग के छापों के बाद अब आईएएस दंपती अरविंद जोशी और टीनू जोशी को लोकायुक्त जांच का भी सामना करना होगा। लोकायुक्त पीपी नावलेकर ने मामले पर संज्ञान लेते हुए मंगलवार को जोशी दंपती के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू करने के आदेश दिए। लोक निर्माण विभाग के निलंबित अधीक्षण यंत्री दीपक असाई के खिलाफ भी जांच शुरू की गई है।
लॉकर उगल रहे दौलत 






 
 

भोपाल।आयकर विभाग ने आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल की ब्रांच मैनेजर सीमा जायसवाल के लॉकर बुधवार को खोल दिए। इसमें दो लॉकर तोड़े गए, जिसमें आयकर विभाग के हाथ रसूखदारों के बेहद अहम दस्तावेज मिले हैं। ओवरसीज बैंक की एमपी नगर शाखा में भी एक लॉकर खोला गया, जिसमें 500 के नोटों की गडि्डयां मिली। आयकर ने 14.5 लाख रूपए नकद सीज किए।
उधर, छत्तीसगढ़ में बैंक ऑफ बड़ौदा में आईएएस बाबूलाल अग्रवाल से जुड़े एक लॉकर से 15 लाख रूपए और कुछ जवाहरात मिले हैं। बाबूलाल अग्रवाल और बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा बैंक के दस्तावेज के साथ छेड़छाड़ के मामले को सुलझाने के लिए विभाग ने सीबीआई की मदद ली है। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ सरकार ने बाबूलाल अग्रवाल को निलम्बित कर दिया है।

दीपक असाई ने दी आमद

इंजीनियर दीपक असाई बुधवार को आयकर विभाग पहुंचे। यहां अतिरिक्त आयकर निदेशक (अन्वेषण) अनूप कुमार दुबे ने उनसे पूछताछ की। बताया जा रहा है कि असाई की सास-ससुर और रिश्तेदारों के नाम से भी बेहिसाब संपत्ति है। इसकी जांच आयकर विभाग कर रहा है।

छत्तीसगढ़ में 15 लाख मिले

छत्तीसगढ़ में बैंक ऑफ बड़ौदा में बाबूलाल अग्रवाल से जुड़ा एक लॉकर (जी/135) खोला गया, जिसमें 15 लाख नगद और कुछ जवाहरात मिले हैं। आयकर विभाग का कहना है कि आखिरी बार यह लॉकर गत 13 जनवरी को संचालित किया गया था। इसके बाद से लॉकर नहीं खुला, लेकिन 1 फरवरी को बाबूलाल अग्र्रवाल द्वारा कहा गया कि लॉकर उसके रिश्तेदार के नाम हस्तांतरित कर दिया जाए। बिना लॉकर खोले उसे किसी और को देने के मामले में बैंक की मिलीभगत सामने आई है। बैंक रिकॉर्ड में बाबूलाल अग्रवाल के नाम को काटा गया है।

बैंकों से आयकर की अपील


आयकर विभाग ने सभी बैंकों से अपील की है कि दो गोदरेज कम्पनी और एक स्टील एज कम्पनी का लॉकर है, जिनके नम्बर क्रमश: 20/4010 और 2/4010 हैं। गोदरेज में 62 व 68 लॉकर नंबर हैं। ये जिस भी बैंक में हों, वे आयकर अधिकारी आकाश देवांगन से (9425603927) संपर्क कर सकते हैं। यह लॉकर 30 साल पुराना है।-

अशोक नंदा से तार जुड़े

पूर्व में डाले गए छापों में आयकर विभाग को अशोक नंदा के यहां से जो दस्तावेज मिले हैं, उनकी कड़ी छत्तीसगढ़ में सत्ता और नौकरशाही से जुड़ रही है। नंदा ने कई दस्तावेज में उल्लेख किया है कि किसको-कितने पैसे बांटे गए हैं। दो-दो लाख से लेकर करोड़ों तक का ब्योरा दस्तावेज में है। विभाग ये दस्तावेज सीबीआई को देने जा रहा है।

भ्रष्टाचार उजागर होते ही कार्रवाई

इंदौर। प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने कहा कि लोकायुक्त और ईओडबल्यू में भ्रष्टाचार से सम्बंधित चल रहे मामलों में भी जल्द कदम उठाए जाएंगे। इंदौर में सम्भागीय अफसरों की बैठक लेने के बाद उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार उजागर होते ही हमने दोषी अफसरों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की है। इसी तरह की सख्ती जारी रहेगी। उन्होंने विभिन्न जांच आयोगों की अनुशंसा के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होने के मसले पर कहा कि इन्हें माना जाना चाहिए।

लोकायुक्त और ईओडबल्यू के प्रकरणों में न्यायालयीन फैसलों का इंतजार नहीं होगा। इसमें जुर्म की तुलना में प्रशासनिक रूप से समय पर दंड दिया जाएगा। मुख्य सचिव ने भ्रष्टाचार में फंसे अफसरों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होने के सवाल पर कहा आयकर विभाग के पास शक्तियां ज्यादा होती हैं। शासन के पास इतने अधिकार नहीं है।

खंडवा नगर निगम कमिश्नर निलंबित

भोपाल। सूखा राहत कार्य में अनियमितताओं के चलते बुधवार को खंडवा नगर निगम आयुक्त रामवीर सिंह को निलंबित कर दिया गया। उनके स्थान पर खंडवा की संयुक्त कलेक्टर अनुराधा सक्सेना को खंडवा नगर निगम कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। नगरीय प्रशासन विभाग को शिकायत मिली थी कि खंडवा नगर निगम में आयुक्त के पद पर पदस्थ रामवीरसिंह यादव ने सूखा राहत के लिए दी गई राशि से नियमों का उल्लंघन करते हुए अपने चहेते पुराने ठेकेदारों को ही काम सौंपे।

यादव ने इसके लिए निविदा आमंत्रित करने की जरूरत भी नहीं समझी और निगम परिषद से भी विधिवत स्वीकृति नहीं ली। इन कार्योü में आर्थिक अनियमितता की शिकायत भी नगरीय प्रशासन विभाग को मिली थी, जो जांच में प्रमाणित हो गई। उनका मुख्यालय नगरीय प्रशासन विभाग संचालनालय भोपाल रहेगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आईपीएस एकजुट

भोपाल । आईएएस दंपती अरविंद जोशी और टीनू जोशी प्रकरण से शर्मशार राज्य के आला अफसर आत्मालोकन में जुट गए हैं। आईपीएस ऑफीसर्स एसोसिएशन की बुधवार शाम एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नन्दन दुबे की अध्यक्षता में बैठक में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।
सदस्यों को पिछले दिनों की मुख्यमंत्री की बैठक का ब्योरा देते हुए बताया गया कि मुख्यमंत्री अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से बेहद चिंतित हैं और चाहते हैं कि ऎसा आचरण करें कि लोगों को भरोसा बना रहे। एसोसिएशन के सचिव संजीव शमी ने एक संकल्प पढ़कर सुनाया, जिसका मजनून कुछ इस तरह था-"संघ के सदस्य भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित हैं और इसके खिलाफ संषर्घ के प्रयासों में नैतिक, सदाचार को दोहराते हैं।
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हम अपने आपको पुनस्र्थापित करते हैं। भ्रष्टाचार के निवारण के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर विचार किया जाना चाहिए ताकि अच्छे प्रशासन को रेखांकित किया जा सके।" लगभग एक घंटे तक चली इस बैठक में 30 से ज्यादा आईपीएस अफसरों ने विचार भी व्यक्त किए। लगभग सभी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सुर में बोला। कुछ आईपीएस अधिकारियों ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए सुझाव भी दिए।

2.5 करोड़ का फर्जी होम लोन घोटाला

भोपाल। सीबीआई ने बुधवार को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अरेरा हिल्स स्थित कार्यालय और दो बिल्डरों के यहां छापे की कार्रवाई कर लगभग ढाई करोड़ रूपए के फर्जी होम लोन घोटाले से सम्बंधित दस्तावेज जब्त किए। मामले में बैंक के वरिष्ठ प्रबंधक केके चौरसिया और सहायक प्रबंधक बसंत पावसे सहित राजधानी कंसट्रक्शन के ब्रजेश सिंह यादव और शालीमार कंसट्रक्शन से जुडे बादशाह खान के खिलाफ हाल ही एफआईआर दर्ज की गई थी। इन लोगों ने फर्जी नाम और पहचान से जुडे दस्तावेज और बैंक के कतिपय अधिकारियों से मिलीभगत कर ढाई करोड़ रूपए का गृह ऋण स्वीकृत करा लिया था।कार्रवाई देर शाम तक जारी रही।

सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बैंक से गृह ऋण घोटाले से संबंधित दस्तावेज बरामद कर लिए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि भारी-भरकम ऋण स्वीकृत करने में किस तरह अनियमितताएं बरती गई हैं। दस्तावेज की छानबीन में चौंका देने वाले खुलासे भी सामने आ सकते हैं।

लॉकर एक ही व्यक्ति 

भोपाल में लॉकर खोले जाने का सिलसिला बुधवार को भी जारी रही। आयकर विभाग ने गौतम नगर स्थित बैंक ऑफ महाराष्ट्र तथा इंद्रपुरी स्थित साउथ इंडियन बैंक का लॉकर चाबी के अभाव में तोड़ा। ये लॉकर अलग-अलग क्रमश: संतोष जायसवाल और मनोज जायसवाल के नाम से हैं। आयकर विभाग को शक है कि ये दोनों व्यक्ति एक ही हैं। तीसरा लॉकर सीमा जायसवाल के नाम एमपी नगर की ओवरसीज बैंक शाखा में था, जिसमें 14.5 लाख की नकदी मिली।