मंगलवार, सितंबर 21, 2010

राकेश साहनी कैसे हो गए बेदाग!


मामला 1770 करोड़ की बिजली खरीदी घोटाला



जबलपुर। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी के कार्यकाल में बिना टेंडर के हुई 1770 करोड़ रुपए की बिजली खरीदी का मामला तब और जोर पकडऩे लगा है, जब श्री साहनी ने विद्युत मण्डल के चेयरमेन से इस्तीफा देकर मप्र विद्युत नियामक आयोग की आसंदी पर बैठने की जुगत जमा ली। हालाकि यह पूरा मामला लोकायुक्त के समक्ष विचाराधीन है और इसमें तीनों विद्युत वितरण व पावर टे्रडिंग कंपनियों की कार्यप्रणाली को ही जांच के दायरे में लिया गया है। वहीं प्रदेश में प्रशासनिक हल्कों के मुखिया होने के नाते राकेश साहनी की भूमिका का कहीं उल्लेख न होना और उन्हे इस प्रकरण में बेदाग रखने के मामले ने कई तरह के संदेहों को जन्म दे रखा है।

उल्लेखनीय है कि विद्युत मण्डल ने वर्ष 2005-08 के दौरान विद्युत की मांग के अनुरुप बिजली की उपलब्धता कम होने पर बिना टेंडर निकाले ही 1770 करोड़ रुपए की बिजली खरीद डाली थी, जिसमें बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता की शिकायतें सामने आईं थी। यह मामला तब सामने आया था जब विद्युत मण्डल ने म प्र विद्युत नियामक आयोग को इतने बड़े पैमाने में की गई बिजली खरीदी की सूचना एक पत्र के माध्यम से देकर इसकी स्वीकृति चाही। आयोग ने अविलंब इसे निरस्त करते हुए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग किया और एक याचिका (सूमोटो पिटीशन) के माध्यम से बिना टेण्डर के खरीदी गई बिजली का जबाव मांगा। लेकिन विद्युत मण्डल की कंपनियां इस पर जबाव देने में अक्षम साबित हुईं।

उपभोक्ता मंच ने की थी शिकायत : बड़े पैमाने में नियमों का उल्लंघन कर की गई बिजली खरीदी के प्रकरण पर उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ पी जी नाजपाण्डे ने मप्र विद्युत नियामक आयोग के आदेश को आधार बनाकर इसकी शिकायत लोकायुक्त को कर दी । लोकायुक्त ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जबलपुर में ही इसकी सुनवाई नियत की। फिलहाल 16 अगस्त 2010 को इसकी पहली सुनवाई हो चुकी है। जबकि आगे की तिथियों में यह पूरी प्रक्रिया विचाराधीन रखी गई है।



सीएस व चेयरमैन रहे साहनी : जिस समयावधि में 1770 करोड़ रुपए की बिजली खरीदी हुई थी तब राकेश साहनी प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ मप्रराविमं. के चेयरमैन भी रहे। लेकिन इस पूरे प्रकरण में तीनों विद्युत वितरण कंपनी और पावर टे्रडिंग कंपनी की कार्य प्रणाली को ही जांच के दायरे में लिया गया है।



बिग बॉस के बिना संभव नहीं खरीदी : प्रशासनिक हलकों से मिली जानकारी के अनुसार विद्युत मण्डल की ओर से इतने बड़े पैमाने में खरीदी गई बिजली का निर्णय केवल जबलपुर स्थित मुख्यालय शक्तिभवन में बैठे अधिकारी मिल कर नहीं ले सकते। ऐसा करना उनके लिए तब तक संभव नहीं जब तक प्रदेश का मुख्य अधिकारी इसकी इजाजत न दे या उसे सूचित न किया जाए। इन परिस्थितियों में बिजली खरीदी के मामले में साहनी की भूमिका को कहीं भी नहीं दर्शाया जाना कई तरह के सवालों को जन्म देता है।

शनिवार, सितंबर 11, 2010

मप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव हो सकते हैं चार सौ बीसी में गिरफ्तार


भोपाल के दो थानों में शिकायत दर्ज

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव आनंदकुमार पयासी के खिलाफ भोपाल के दो थानों में शिकायत दर्ज कर उनके खिलाफ धारा 420 के तहत प्रकरण दर्ज करने की मांग की गई है। भोपाल के दो सामाजिक कार्यकर्ता संजय नायक व धनराज सिंह ने जहांगीरबाद थाने में की गई शिकायत में पयासी पर कूटरचित दस्तावेतों के आधार पर नौकरी करने एवं बाग मुगालिया थाने में शिक्षा की फर्जी डिग्रियां हासिल करने का आरोप लगाया गया है। शिकायत पर कार्रवाई हुई तो एके पयासी कभी भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं।

थाना बागमुगालिया में की गई शिकायत में आरोप लगाया है कि पयासी की पीएचडी की तीनों डिग्रियां फर्जी हैं। जबकि उन्होंने इन फर्जी डिग्रियों के आधार पर स्वयं को डा. एके पयासी लिखना शुरू किया और विधानसभा सचिवालय से दो वेतन वृद्धियां प्राप्त कर ली हैं। शिकायतकर्ताओं ने इसके कई प्रमाण संलग्र करते हुए दावा किया है, इससे संबंधित कुछ नस्तियां विश्वविद्यालय से गायब कर दी गईं हैं। पयासी की हायर सेकेन्ड्री की मार्कशीट को लेकर भी आज तक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने बार बार मांगने पर भी अभी तक अपनी उक्त मार्कशीट सचिवालय को उपलब्ध नहीं कराई है। स्वयं स्पीकर पयासी को कई बार मार्कशीट उपलब्ध कराने के निर्देश दे चुके हैं, ताकि मार्कशीब्ट के आधर पर उनकी सेवा निवृत्ति की तिथि तय की जा सके, लेकिन पयासी ने उक्त मार्कशीट उपलब्ध नहीं कराई है। पयासी की एलएलबी की डिग्री को लेकर भी भ्रम की स्थिति है, क्योंकि उनकी एलएलनबी की उिग््राी के अनुसार उन्होंने 1971 से 1975 तक सतना के कॉलेज से नियमित छात्र के रुप में एलएलबी की पढ़ाई की, जबकि इसी अवधि में उनके द्वारा सीधी जिले सिंहावल के सरकारी स्कूल में शिक्षक रुप में भी नौकरी की है। सिंहावल व सताना में दो सौ किलोमीटर का अंतर है।

भोपाल के जहांगीराबाद थाने में की गई शिकायत में कहा गया है कि - पयासी का लगभग पूरा सेवाकाल कूटरचित दस्तावजों पर आधारित है। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में सबसे जिम्मेदार पद पर बैठे पयासी ने अपने पद का दुरूपयोग करके अधिकांश स्थानों से रिकार्ड गायब करा दिया है। फिर भी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किए गई दस्तावजों से जाहिर होता है कि पयासी ने नगर पंचायत के सीएमओ के पद से रीवा नगर निगम में उपायुक्त का पद पाने के लिए कूटरचित दस्तावजों का सहारा लिया है। रीवा नगर निगम के जिस संकल्प के आधार पर उन्होंने अपनी सेवाएं नगर निगम में उपायुक्त के पद संविलियन कराईं वह संकल्प कूटरचित है, यह दस्तावेज लोक सेवा आयोग को दिया गया था। बाद में जब पयासी को पता चला कि संविलियन का अधिकार केवल राज्य सरकार को है तो उन्होंने एक और कूटरचित दस्तावेज तैयार कर लिया। नगर निगम रीवा ने इस फर्जी कार्रवाई को रद्द करने पीएससी को चार पत्र लिखे हैं, लेकिन शातिर दिगमा पयासी ने यह पत्र रीवा नगर निगम ही नहीं पहुंचने दिए। पयासी रायपुर व भोपाल नगर निगम में उपायुक्त रहे, लेकिन उनकी सांठगांठ की इससे ही अंदाज लगाया जा सकता है कि बिना सेवा पुस्कित प्राप्त किए पयासी इन नगर निगमों से मनचाहा वेतन प्राप्त करते रहे। बाद में उन्होंने अपना संविलियन विधानसभा में उप सचिव के रुप में कराया और अपने शातिर दिमाग से बिना किसी योग्यता के प्रमुख सचिव के पद तक पहुंच गए।

इनका कहना है :
जिले के दो थानों में पयासी के खिलाफ शिकायत प्राप्त हुई है। पुलिस इसकी जांच कर रही है। जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
                                             शैलेन्द्र श्रीवास्तव, आईजी भोपाल

शुक्रवार, सितंबर 10, 2010

मध्यप्रदेश में अंकल जजों को लेकर महाभारत

गुटों में बंटे वकील व जज

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र में पिछले तीन दिन से अंकल जजों को हटाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। यदि मप्र बार कौंसिल की ग्वालियर शाखा की इस मांग पर कार्रवाई की गई तो देश भर में लगभग सौ हाईकोर्ट जजों को अपना बोरिया बिस्तर बांधना पड़ सकता है। दरअसल अंकल जज ऐसे जजों को नाम दिया गया है जो जिस कोर्ट में वर्षों वकालत करने के बाद उसी कोर्ट में जज बन जाते हैं। इन अदालतों में इन जजों के पुत्र, भाई व अन्य रिश्तेदार भी वकालत करते हैं। भारत के विधि आयोग ने देश के कानून मंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में ऐसे जजों को अंकल जज कहा है और इन्हें इन अदालतों से हटाने की सिफारिश भी की है।

आगे बढऩे से पहले भारत के विधि आयोग की 230 वीं रिपोर्ट पर नजर डाल लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर लक्ष्मनन की अध्यक्षता में तैयार यह रिपोर्ट 5 अगस्त 2009 को विधि मंत्री को सौंपी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि - राज्यों के हाईकोटों में ऐसे जजों की नियुक्ति न की जाए जिन्होंने उसी कोर्ट में वर्षों तक वकालत की है और वर्तमान में उसी कोर्ट में उनके पुत्र व अन्य रिश्तेदार पे्रक्टिस कर रहे हैं। इनसे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। रिपोर्ट में कहा गया है कि - जहां वषो्रं तक काम करते हैं वहां मित्र व दुश्मन बनना स्वभाविक हैं। ऐसे में इन जजों को संबंधित कोर्ट से हटा देना चाहिए।

इस मुद्दे पर सबसे पहले मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच की बार एसोसिएशन ने पहल की और शुक्रवार को इसके अध्यक्ष प्रेमसिंह भदौरिया ने जबलपुर पहुंचकर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रफत आलम से मुलाकत मप्र हाईकोर्ट के ऐसे नौ जजों को हटाने की मांग कर डाली। भदौरिया ने अपने इस ज्ञापन की प्रति राष्ट्रपति एवं देश के काननू मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजेत हुए विधि आयोग की रिपोर्ट को तत्काल लागू करने की मांग की है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में इन जजों के बारे में कई चौंकाने वाली जानकारियां भी दी हैं। उन्होंने ग्वालियर में पदस्थ हाईकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि - वे शाम को दफतर से फ्री होकर अपने पुत्र के उस कार्यालय में बैठते हैं, जो वह वकील के रुप में सुबह शाम अपने क्लाइंटों से मुलाकात करता है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में ज्ञापन में इन सभी नौ जजों के उन रिश्तेदारों के नामों को भी उल्लेख किया है, जो उसी कोर्ट में वकालत करते हैं और उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से जज का रिश्तेदार होने का लाभ भी मिलता है। ,

खास बात यह है कि भदौरिया की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में वकीलों एवं मीडिया का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। पिछले तीन से जबलपुर, ग्वालियर एवं इंदौर हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर जबरदस्त बहस छिड़ गई है। इस मुद्दे जजों व वकीलों के गुट भी बन गए हैंञ जो जज गृह नगर में पदस्थ नहीं हैं, वे न केवल इस मुहिम को समर्थन कर रहे हैं, बल्कि पर्दे के पीछे से इस मुहिम को हवा भी दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इस मुहिम से जो जज प्रभावित हो सकते हैं, वे अपने समर्थक वकीलों के जरिए इस मुहिम को ठण्डा करने एवं मुहिम की हवा निकालने में लग गए हैं। सबकी नजर मप्र के मुख्य न्यायाधीश के निर्णय पर टिकी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि बेशक सभी जजों को एक साथ नहीं बदला जा सकता, लेकिन कुछ विवादस्पद जजों को कुछ दिनों में गृह नगर से हटाया जा सकता है।

अपनी मुहिम के पक्ष में भदौरिया का कहना है कि - पूरे प्रदेश के किसी भी थाने में पुलिस के एक अदने से आरक्षक को भी गृह नगर के थाने में इसलिए नहीं रखा जाता, क्योंकि गृहनगर में रहकर वह अपने कत्र्तव्य के साथ न्याय नहीं कर सकता। तो फिर यही नियम जजों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?

शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

मेडिकल कालेज के नाम पर घोटाला

-अस्पताल और कालेज निर्मित करने संस्था पर राशि नहीं

-बैंक से कर्जा लेने सरकारी भूमि को गिरमी रखने की तैयारी

सीताराम ठाकुर

भोपाल। यह मप्र के इतिहास में बड़े घोटाले के रुप में दर्ज किया जाएगा। भोपाल में जैन समाज के मेडीकल कॉलेज के नाम पर ली गई 25 एकड़ भूमि पर अब नेताओं और अफसरों की नजर लग गई है। दिगम्बर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के नाम बनने वाले इस मेडीकल कॉलेज से कथित स्वार्थी तत्वों ने जब आचार्यश्री का नाम हटा दिया तो जैन समाज इस कॉलेज से दूर हो गया। अब नेताओं व अफसरों ने सरकार ने एक रुपए में मिली भूमि को ही बैंक में गिरमी रखने की तैयारी कर ली है। अब यह कॉलेज सत्ता के गलियारों में प्रभावशाली अफसर और नेता के हाथ में पहुुंच गया है। बेशक मुख्यमंत्री के सचिव अनुराग जैन ने मेडीकल कॉलेज बनाने वाले ट्रस्ट से त्यागपत्र दे दिया है, लेकिन आज भी इस ट्रस्ट पर कब्जा उन्हीं का है।

भोपाल में जैन समाज का मेडीकल कॉलेज खोलने का सपना जैन संत आचार्यश्री विद्यागसार जी महाराज ने देखा था। भोपाल प्रवास के दौरान उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने मेडीकल कॉलजे खोलने का प्रस्ताव रखा था। सिंह ने जैन समाज को निशुल्क भूमि देने का भरोसा दिलाया था। लेकिन सिंह अपने कार्यकाल में भूमि नहीं दे पाए। इसके बाद उमा भारती, बाबूलाल गौर के समय में भी भोपाल में जैन समाज को मेडीकल कॉलेज के भूमि देने की बात होती रही, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में गांधी रोड़ पर राजीव गांधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के पास 25 एकड़ भूमि मेडीकल कॉलेज के लिए जैन समाज के लिए आरक्षित की गई। राज्य सरकार ने मात्र 3 एकड़ भूमि का आवंटन जैन समाज को करते हुए शर्त रखी थी कि यदि एक वर्ष में तीन सौ बिस्तर का अस्पताल तैयार होगा, तभी शेष 23 एकड़ भूमि जैन समाज को दी जाएगी। लेकिन लगभग चार वर्ष व्यतीत होने पर भी अभी तक वहां अस्पताल बनना तो दूर उसका ढांचा भी तैयार नहीं हुआ है।

आचार्यश्री हुए दूर : इस संबंध में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मेडीकल कॉलेज के लिए भूमि मिलते ही इस ट्रस्ट के कर्ताधर्ताओं ने सबसे पहले आचार्यश्री विद्यागसार मेडीकल कॉलेज का नाम बदलकर भगवान महावीर स्वामी मेडीकल कॉलेज कर दिया। इस निर्णय से ट्रस्ट के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायमूर्ति एनके जैन भी विचलित हुउए और उन्होंने ट्रस्ट के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। एक अन्य ट्रस्टी नरेन्द्र जैन वंदना ने भी स्वयं को ट्रस्ट से अलग कर लिया।

जमीन को गिरवी रखने की तैयारी : जैन समाज द्वारा हाथ खींचने के बाद जब मेडीकल कॉलेज के लिए चंदा नहीं मिला तरो ट्रस्टियों ने अनुराग जैन की मदद ली। जैन के प्रयास से राज्य सरकार ने नियमों को शिथिल करते हुए आदेश जारी किए कि जैन समाज के मेडीकल के लिए सभी विधायक अपनी निधि से पांच पांच लाख दान दे सकते हैं। लेकिन एक दर्जन विधायकों ने भी अपनी निधि से राशि नहीं दी तो ट्रस्टियों ने कॉलेज के पैसे एकत्रित करने नया फार्मूला निकाल है। राज्य सरकार की आरे से एक रुपए में मिली भूमि को ही बैंक में गिरमी रखकर ऋण लेने की तैयारी की गई है।

यह हैं ट्रस्टी : वर्तमान में मप्र के जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, जबकि प्रमुख सचिव डीके सिंघई, आईजी पवन जैन, उपसचिव राजेश जैन, पूर्व पुलिस महानिदेशक आरके दिवाकर, पत्रकार सनत जैन, मनोहरलाल टोंग्या, डा. राजेश जैन आदि ट्रस्टी हैं। अनुराग जैन भी अभी तक ट्रस्टी थे, लेकिन बताते हैं कि उन्होंने पिछले दिनों त्यागपत्र दे दिया है, लेकिन अनुराग जैन के बिना ट्रस्ट में पत्ता भी नहीं हिलता।

आचार्यश्री का नाम हटना दुर्भाग्य पूर्ण

इस मेडिकल कालेज से आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का नाम हटना दुर्भाग्य पूर्ण है। अब यह मेडिकल कालेज समाज का नहीं, बल्कि कुछ लोगों का ही रह गया है।

नरेन्द्र जैन वंदना

महामंत्री, ट्रस्टी