शुक्रवार, मार्च 19, 2010
मिस्टर विधायक ... यह चोरी है
विधायकों के फर्जी यात्रा देयकों पर करोड़ों का भुगतान
जांच हुई तो छिन सकती है सदस्यता, हो सकती है जेल
रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के विधायक धडल्ले से विधानसभा सचिवालय में फर्जी यात्रा देयक लगाकर राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं, लेकिन सब कुछ जानते हुए इस फर्जीवाडे को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है। इस संबंध में एक पूर्व हाईकोर्ट जज का कहना है कि - इस मामले की गंभीरता से जांच हुई तो न केवल मप्र के सौ से अधिक विधायकों की सदस्यता समाप्त हो सकती है, बल्कि उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है।
विधानसभा में सौ से अधिक विधायक विधानसभा सत्र के दौरान भोपाल आने जाने की यात्रा ट्रेन से करते हैं और उसी तिथि में अपने वाहन से आने जाने का फर्जी देयक बनाकर विधानसभा सचिवालय से सड़क मार्ग से आने का भी भुगतान ले लेते हैं। इनमें ग्वालियर चंबल संभाग एवं रीवा सतना के विधायकों की संख्या सबसे अधिक है। राज एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय से जानकारी निकाल कर इस फर्जीवाडे को उजागर करने का प्रयास किया है।
क्या है नियम : मप्र में विधायकों को विधानसभा सत्र के दौरान बैठकों में शामिल होने भोपाल आने जाने के लिए रेल अथवा वाहन भत्ते की पात्रता है। वाहन से आने विधायकों के लिए मप्र विधान मंडल यात्रा भत्ता नियम 1957 है एवं रेल से आने वालों के लिए मप्र विधानसभा सदस्य रेल द्वारा निशुल्क अभिवहन नियम 1978 प्रभावशील है। पहले वाहन से आने वालों के बारे में चर्चा करते हैं। विधायक यदि सत्र में सम्मलित होने के लिए स्वयं के वाहन से आते हैं तो उन्हें आने एवं जाने के लिए 6 रुपए किलोमीटर की दर से यात्रा भत्ता पाने का हक है, लेकिन इसमें स्पष्ट है कि उक्त वाहन सदस्य के नाम रजिस्टर्ड होना चाहिए। इसी प्रकार रेल यात्रा के संबंध में सभी विधयकों को राज्य के अंदर असीमित एवं राज्य के बाहर एक वर्ष में अधितम 6000 किलोमीटर यात्रा की पात्रता है।
क्या कर रहे हैं विधायक : मप्र के लगभग आधे विधायक विधानसभा के सत्र के दौरान रेल से यात्रा करके भोपाल पहुंचते हैं तथा विधानसभा सचिवालय में वाहन से आने का यात्रा देयक बनाकर वाहन किराया वसूल लेते हैं। नियम में साफ लिखा है कि - वाहन भत्ता उसी वाहन का दिया जाएगा जो विधायक के स्वयं के नाम रजिस्टर्ड हो। लेकिन सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के अनुसार अनेक विधायकों ने दूसरे के वाहन का नंबर देकर देयह तैयार कराए हैं और विधानसभा सचिवालय ने भी बिना जांच किए भुगतान कर दिया।
सचिवालय की भूमिका संदिग्ध : इस संबंध में विधानसभा सचिवालय की भूमिका भी संदिग्ध है। नियमों में स्पष्ट लिखा है कि विधायक के निजी वाहन पर ही यात्रा भत्ते की पात्रता है, ऐसे में सचिवालय बिना जांच किए कैसे यात्रा भत्ते का भुगतान कर रहा है? इसके अलावा प्रमुख सचिव के बिना जांच के यह भुगतान कैसे कर रहे हैं। नियमों में लिखा है कि विधायक अनी यात्रा का विवरण प्रमुख सचिव को देगा। इसके बाद विधानसभा सचिवालय देयकों की दो प्रति तैयार कर उन दोनों पर विधायक के हस्ताक्षर कराएंगा तथा एक प्रति पर प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर के बाद भुगतान किया जाएगा। यहां बता दें कि विधानसभा सचिवालय के लगभग सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को जानकारी है कि - विधायक वाहन व रेल का किराया एक साथ ले रहे हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है उन्हें ऐसा करने से रोकने दें।
यह तो वर्षों से हो रहा है : इस संबंध में जब हमने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय में आवेदन लागया तो मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩे वाले एक वरिष्ठ विधायक हमें सलाह दी कि - ऐसा मत करो, क्योंकि यह तो वर्षों से हो रहा है। यदि पीछे पड़े मप्र विधानसभा के चुनाव दुबारा कराने पड़ेंगे, क्योंकि बहुत कम विधायक बचेंगे, जो यह घपला नहीं कर रहा है। कांग्रेस विधायक दल के सचेतक एनपी प्रजापति से इस संबंध में टिप्पणी के लिए अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि - केवल विधायकों के पीछे क्यों पड़े हो? मप्र के कई अधिकारी भी फर्जी यात्रा देयक ले रहे हैं।
भोपाल के विधायक भी पीछे नहीं : नियमों में साफ लिखा है कि भोपाल से आठ किलोमीटर दूर से आने वाले वाहन यात्रा भत्ता पाने के हकदार हैं, लेकिन भोपाल के सभी विधायकों ने विधानसभा से मनचाहा वाहन भत्ता वसूल किया है। जनवरी से दिसम्बर 2009 तक भोपाल के विधायकों ने वाहन भत्ते के रुप में हजारों रुपए लिए व हजारों रुपए के रेल कूपन भी लिए।
विधायक वाहन भत्ता रेल कूपन राशि
1 - ब्रम्हानंद रत्नाकर बैरसिया 23780 18,000
2 - आरिफ अकील 27200 18,000
3 - विश्वास सारंग 32000 94,000
4 - उमाशंकर गुप्ता 48968 2,68,000
5 - ध्रुवनारायण सिंह 14000 66,000
6 - जितेन्द्र डागा 22800 36,000
जानकारी मिली तो करूंगा कार्यवाही : इस संबंध में स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने कहा कि विधायक ऐसा कर रहे हैं, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। यदि कोई इस संबंध में सप्रमाण शिकायत मिली तो मैं सख्त कार्यवाही करुंगा।
सभी पर कार्यवाही होना चाहिए : नेता प्रतिपक्ष जमुनादेवी का कहना है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए और सभी दोषी विधायक वे चाहे किसी भी दल के हों, उनके विरूद्ध सख्त कार्यवाही होना चाहिए।
एक वर्ष में सबसे ज्यादा वाहन भत्ता लेने वाले विधायक
विभा क्षेत्र क्रमांक विधायक रेल राशि वाहनों का राशि
3 सुरेश चौधरी 1,66,792 95,684
7 शिवमंगल सिंह तोमर 1,98,000 99,660
18 लाखन सिंह यादव 2,00,000 93,600
62 जुगलकिशोर बागरी 1,88,000 1,10,004
67 रामलखन सिंह 1,10,000 1,03,628
71 लक्ष्मण तिवारी 1,43,150 1,31, 684
72 गिरिश गौतम 2,70,000 1,18,304
78 विश्वमित्र पाठक 1,32,000 1,20,000
80 राम लल्लू वैश्य 70,000 91,280
81 रामचरित्र 86,000 97,799
87 बिसाहूलाल सिंह 1,26,000 1,12,588
94 निथिश पटेल 1,86,000 1,66,299
226 राधेश्याम पाटीदार 48020 96,740
229 खुमानसिंह शिवाजी 18,000 95,832
230 ओमप्रकाश सचलेचा 1,38,000 1,24,500
मंगलवार, मार्च 16, 2010
किसानों के नाम पर 200 करोड़ का घोटाला
राज्य सरकार ने इस घोटाले में 2200
कर्मचारियों को दोषी करार दिया
रवीन्द्र जैन
भोपाल । लीजिए मप्र में एक और बड़ा घोटाला हाजिर है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की ऋण माफी के नाम पर 114 करोड़ का घोलमाल होना स्वीकार कर लिया है। लेकिन अभी जांच जारी है और घपला दो सौ करोड़ से अधिक हो सकता है। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया है। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने अभी तक केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की है।
क्या है योजना : केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे।
कैसे आई राशि : केन्द्र सरकार ने नाबार्ड के माध्यम से कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना 2008 के तहत यह राशि मप्र राज्य सहकारी बैंक को दी तथा मप्र राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को राशि की थी।
कैसे हुई गड़बडिय़ां : जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से जिस किसान का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए।
कैसे हुआ खुलासा : मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाइ्र 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर
ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।
अब तक 114 करोड़ का घपला : 10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उन्होंने इन अनियमिततओं के लिए जिला सहकारी बैंकों के 218 अधिकारियों, 395 कर्मचारियों को दोषी बताते हुए कहा कि प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी भी इसके लिए दोषी हैं। उन्होंने कहा कि 2201 दोषी अधिकारी कर्मचारियों में से प्राथमिक सहकारी समिति के केवल 10 कर्मचारियों को सेवा से पृथक कर दिया गया है।
रिकार्ड ही गायब : सहकारिता मंत्री ने विधानसभा में यह कहकर सबको चौंका दिया कि सीधी जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक से इस घपले का रिकार्ड गायब कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस रिकार्ड को जप्त करने की कार्यवाही की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि इसकी जांच में अभी तीन महिने से ज्यादा लग सकते हैं, जब घपले की राशि का सही सही अनुमान लगाया जा सकता है।
भिण्ड में 17 करोड़ का घपला : भिण्ड जिले में इस योजना के तहत सबसे ज्यादा राशि का गोलमाल किया गया है। सहकारिता मंत्री के अनुसार भिण्ड में 16.73 करोड़ की अनियमितता पाई गई है।
सीहोर में लीपापोती के प्रयास : सीहोर जिले में लगभग साठ लाख का घपला है, लेकिन बताया जाता है कि बैंक के अधिकारी कर्मचारी मिलकर इसे दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
एक नजर में
- योजना का नाम : कृषि ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना 2008
- कुल आंवटित राशि : 916 करोड़ रुपए
- सरकार द्वारा स्वीकार घपला : 114.81 करोड़
- कुल घपला : लगभग 200 करोड़
- दोषी अधिकारी : 218
- दोषी कर्मचारी : 395 बैंक के
- दोषी कर्मचारी : 1507 प्राथमिक सहकारी समिति के
- देाषी कर्मचारी सेवा से पृथक : मात्र 10 प्राथमिक समितियों के
- यह मप्र के इतिहास में किसानों के नाम पर किया गया अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। राज्य सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे उसकी नीयत पर भी शक हो रहा है। कांग्रेस पार्टी इस घपले की विस्तृत शिकायत केन्द्र सरकार से करने जा रही है।
डा. गोविन्द सिंह, विधायक
राज्य सरकार ने इस घोटाले में 2200
कर्मचारियों को दोषी करार दिया
रवीन्द्र जैन
भोपाल । लीजिए मप्र में एक और बड़ा घोटाला हाजिर है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की ऋण माफी के नाम पर 114 करोड़ का घोलमाल होना स्वीकार कर लिया है। लेकिन अभी जांच जारी है और घपला दो सौ करोड़ से अधिक हो सकता है। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया है। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने अभी तक केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की है।
क्या है योजना : केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे।
कैसे आई राशि : केन्द्र सरकार ने नाबार्ड के माध्यम से कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना 2008 के तहत यह राशि मप्र राज्य सहकारी बैंक को दी तथा मप्र राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को राशि की थी।
कैसे हुई गड़बडिय़ां : जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से जिस किसान का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए।
कैसे हुआ खुलासा : मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाइ्र 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर
ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।
अब तक 114 करोड़ का घपला : 10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उन्होंने इन अनियमिततओं के लिए जिला सहकारी बैंकों के 218 अधिकारियों, 395 कर्मचारियों को दोषी बताते हुए कहा कि प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी भी इसके लिए दोषी हैं। उन्होंने कहा कि 2201 दोषी अधिकारी कर्मचारियों में से प्राथमिक सहकारी समिति के केवल 10 कर्मचारियों को सेवा से पृथक कर दिया गया है।
रिकार्ड ही गायब : सहकारिता मंत्री ने विधानसभा में यह कहकर सबको चौंका दिया कि सीधी जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक से इस घपले का रिकार्ड गायब कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस रिकार्ड को जप्त करने की कार्यवाही की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि इसकी जांच में अभी तीन महिने से ज्यादा लग सकते हैं, जब घपले की राशि का सही सही अनुमान लगाया जा सकता है।
भिण्ड में 17 करोड़ का घपला : भिण्ड जिले में इस योजना के तहत सबसे ज्यादा राशि का गोलमाल किया गया है। सहकारिता मंत्री के अनुसार भिण्ड में 16.73 करोड़ की अनियमितता पाई गई है।
सीहोर में लीपापोती के प्रयास : सीहोर जिले में लगभग साठ लाख का घपला है, लेकिन बताया जाता है कि बैंक के अधिकारी कर्मचारी मिलकर इसे दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
एक नजर में
- योजना का नाम : कृषि ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना 2008
- कुल आंवटित राशि : 916 करोड़ रुपए
- सरकार द्वारा स्वीकार घपला : 114.81 करोड़
- कुल घपला : लगभग 200 करोड़
- दोषी अधिकारी : 218
- दोषी कर्मचारी : 395 बैंक के
- दोषी कर्मचारी : 1507 प्राथमिक सहकारी समिति के
- देाषी कर्मचारी सेवा से पृथक : मात्र 10 प्राथमिक समितियों के
- यह मप्र के इतिहास में किसानों के नाम पर किया गया अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। राज्य सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे उसकी नीयत पर भी शक हो रहा है। कांग्रेस पार्टी इस घपले की विस्तृत शिकायत केन्द्र सरकार से करने जा रही है।
डा. गोविन्द सिंह, विधायक
बुधवार, मार्च 03, 2010
परिवहन विभाग, यानि
सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार
अवैध कमाई को लेकर दो अफसरों में खींचतान शुरू
आयकर विभाग कर सकता है बड़ी कार्यवाही
प्रशासनिक संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश में एक सरकारी विभाग ऐसा भी है जिसमें सरकार के संरक्षण में ही भ्रष्टाचार होता है। स्वयं सरकार ने सभी जांच एजेंसियों को इस विभाग के भ्रष्टाचार की ओर मुंह उठाकर भी न देखने को कह दिया है। राज्य के परिवहन विभाग में चोरी छिपे नहीं डंके की चोट पर सरेआम भ्रष्टाचार किया जाता है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं जो इस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोल सके। मप्र में परिवहन विभाग के चेकपेास्टों पर खुलेआम होने वाले भ्रष्टाचार इस सीमा तक पहुंच गया है कि चेकपोस्टों पर सरकारी आय से ढाई गुना राशि भ्रष्टाचार के रास्ते आ रही है। यह पैसा मंत्री से लेकर अफसरों तक में बंटा जाता है।
मप्र परिवहन विभाग का भाग्य अच्छा है कि उसे तीन महिने बाद आयुक्त के रुप में एसएस लाल नसीब हो गए हैं। लाल साहब ने इस कुर्सी तक पहुंचने के लिए कितने पापड़ बेले, यह तो वे ही जानते हैं। लेकिन आखिर लाल साहब इस कुर्सी पर क्यों आना चाहते थे तथा इस विभाग के उपायुक्त ने अपने प्रभाव का उपयोग करके तीन महिने तक इस कुर्सी को खाली क्यों रखा? यह रोचक किस्सा है। पहले इतना जान लीजिए कि आयुक्त की नियुक्ति के बाद भी इस महकमे में उपायुक्त की ही चल रही है। फिलहाल आयकर विभाग के निशाने परिवहन विभाग के कई अधिकारी हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी की तरह अगले कुछ दिनों में परिवहन विभाग राज्य सरकार के लिए नया सिरदर्द बन जाए। सूत्रों के अनुसार विभाग के दो अफसरों में हर महिने आने वाली लगभग बीस करोड़ रुपए की कमाई के हिस्से को लेकर खींचतान शुरू हो गई है।
मप्र परिवहन विभाग के लगभग चालीस चेकपोस्ट हैं। पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार परिवहन विभाग की कुल 831 करोड़ रुपए की आय में 91 करोड़ रुपए चेकपोस्टों से आए थे। विभाग के सूत्रों के अनुसार बीते वर्ष इन चेकपोस्टों से 200 करोड़ से अधिक की अवैध कमाई की गई थी। अकेल नयागांव बैरियर से प्रतिमाह तीन करोड़ रुपए ऊपर बसूले जा रहे हैं, जो कायदे से सरकारी खाते में जमा होना चाहिए। इनके अलावा शाहपुरफाटा, मुल्ताई, खबासा, सोयत एवं खिलचीपुर बैरियरों से भी जमकर चांदी काटी जा रही है। इन बैरियरों से गुजरने वाले ट्रक 9 टन के स्थान पर 12 से 14 टन तक माल भरकर धडल्ले से निकल रहे हैं। खास बात यह है कि परिवहन विभाग के आधे से ज्यादा सिपाही एवं हवलदारों की नियुक्ति इन पांच बैरियरों पर कर दी गई है।
सेंधवा पर कमाई बंद : मप्र में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला बैरियर सेंधवा है जहां से राज्य सरकार को हर साल लगभग 25 करोड़ रुपए साल की आय होती है वहां पर्याप्त स्टाफ नहीं है, क्योंकि सेंधवा बैरियर पर इलेक्टॉनिक तौलकांटा लग जाने के कारण वहां अवैध कमाई पूरी तरह बंद है। परिवहन विभाग ने नयागांव व अन्य मलाईदार बैरियरों पर नियुक्त सिपाही हवलदारों को क्रम से सेंधवा पर छह माह में से एक माह नौकरी करने के निर्देश दिए हैं। विभाग के यह सिपाही एवं हवलदार हर छह महिने में मोटी रकम
देकर मलाईदार बैरियरों पर नियुक्ति कराते हैं। इन्हें मजबूरी में छह में से एक माह सेंधवा जाना पड़ता है जहां ऊपर की कमाई नहीं होती। लेकिन विभाग के अधिकारियों के पासव इसव बात कर जबाव नहीं है कि अन्य बैरियरों की तरह सेंधवा बैरियर जहां से सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त होता है, वहां सिपाही हवलदारों की सीधी नियुक्ति क्यों नहीं की जाती?
कमाई को विवाद शुरू : बताया जाता है कि परिवहन विभाग में बैरियरों से आने वाली अवैध कमाई में हिस्सें को लेकर दो अधिकारियों में विवाद शुरू हो गया है। परिवहन विभाग के तत्कालीन आयुक्त एनके त्रिपाठी के समय से ही विभाग के उपायुक्त ने अपनी चालाकी से बंटवारे में अपना हिस्सा बढ़ा लिया था। इस अधिकारी ने अपने खास संबंधों के आधार पर आयुक्त की कुर्सी को तीन महिने तक खाली रखवाने में भी सफलता पा ली थी, इस दौरान उन्होंने न केवल हर तीन महने में होने वाले रोटेशन को किया, बल्कि कुछ अधिकारियों की डीपीसी करके पदोन्नति भी कर डाली।
मंत्री व प्रमुखसचिव दूर : शायद किसी को विश्वारस न हो, लेकिन विभाग के सूत्रों का दावा है कि परिवहन विभाग की अवैध कमाई के बारे में अभी भी विभाग के प्रमुखसचिव राजन कटोच एवं मंत्री जगदीश देवडा को सही सही जानकारी नहीं है। मंत्री देवडा सरकार को चलाने वाली अदृश्य शक्तियों के इशारे पर काम करने को मजबूर हैं। विभाग में मंत्री से चांदी उनके निजी स्टाफ में पदस्थ अफसर काट रहे हैं। जबकि प्रमुख सचिव कटोच एकदम ईमानदार अफसर है। उनके सामने किसी की हिम्मत नहीं होती कि - चेकपोस्टों के बारे में चर्चा भी कर सकें।
लोकायुक्त में भी पहुंचता है हिस्सा : यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि मप्र में ईमानदार लोकायुक्त होने के बाद भी चेकपोस्टों से लोकायुक्त कार्यालय के कइ्र अधिकारियों ने महिना बांध रखा है। यहीं कारण है कि पिछले चार साल में लोकायुकत संगठन ने अभी तक मप्र के किसी चेकपोस्ट पर न तो छापा मारा है और न ही इस खुली लूट को लेकर कोई सख्त कार्रवाही की है। मजेदार बात यह है कि लगभग हर चेकपोस्ट पर चौबीस घंटे सड़क पर लूटपाट चलती रहती है, लेकिन लोकायुक्त संगठन सहित किसी एजेंसी की इस पर नजर क्यों नहीं पड़ती?
क्या हैं कटर : लगभग हर चेकपोस्ट पर कुछ कटर रखे जाते हैं जो अवैध कमाई को रखते हैं। यह एक तरह से प्राईवेट स्टाफ रहता है जो यदि किसी कारण से चेकपोस्ट पर छापा पड़ जाए तो यह बताया जा सके कि नगद रकम प्राइवेट आदमी के पास से बरामद हुई है। यह कटर कई वर्षों से बैरियरों पर जमे हुए हैं। अवैध कमाई के हिसाब की डायरी कटर ही मेंटेन करता है। कई जिलों में कलेक्टर, एसपी, सांसद, विधायक व स्थानीय नेताओं को भी हिस्सा पहुंचाने का काम कटर ही करते हैं।
तीन बसें जप्त, यात्री हुए पेरशान
परिवहन विभाग के विशेष जांच दल ने बुधवार को भोपाल में बड़ी कार्यवाही करते हुए इंदौर-भोपाल रोड़ पर तीन बसों को बिना परमिट के सवारियों को ढोते हुए पकड़ा। तीनों बसों को जप्त कर लिया
गया है। सूत्रों के अनुसार परिवहन आयुक्त एसएस लाल ने विशेष जांच दल को इंदौर भोपाल रोड़ पर अवैध बसों को पकडऩे के निर्देश दिए थे। दल के निरीक्षक संजय तिवारी ने फंदा के पास अचानक चैकिंग करके भोपाल से इंदौर जा रही तीन बसों को पकड़ा। इनमें एक बस पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर के रिश्तेदार की थी। बसें जप्त होने के कारण इनमें यात्रा कर रही सवारियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। तीनों बसों को खजूरी सड़क थाने में रखा गया है।
सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार
अवैध कमाई को लेकर दो अफसरों में खींचतान शुरू
आयकर विभाग कर सकता है बड़ी कार्यवाही
प्रशासनिक संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश में एक सरकारी विभाग ऐसा भी है जिसमें सरकार के संरक्षण में ही भ्रष्टाचार होता है। स्वयं सरकार ने सभी जांच एजेंसियों को इस विभाग के भ्रष्टाचार की ओर मुंह उठाकर भी न देखने को कह दिया है। राज्य के परिवहन विभाग में चोरी छिपे नहीं डंके की चोट पर सरेआम भ्रष्टाचार किया जाता है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं जो इस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोल सके। मप्र में परिवहन विभाग के चेकपेास्टों पर खुलेआम होने वाले भ्रष्टाचार इस सीमा तक पहुंच गया है कि चेकपोस्टों पर सरकारी आय से ढाई गुना राशि भ्रष्टाचार के रास्ते आ रही है। यह पैसा मंत्री से लेकर अफसरों तक में बंटा जाता है।
मप्र परिवहन विभाग का भाग्य अच्छा है कि उसे तीन महिने बाद आयुक्त के रुप में एसएस लाल नसीब हो गए हैं। लाल साहब ने इस कुर्सी तक पहुंचने के लिए कितने पापड़ बेले, यह तो वे ही जानते हैं। लेकिन आखिर लाल साहब इस कुर्सी पर क्यों आना चाहते थे तथा इस विभाग के उपायुक्त ने अपने प्रभाव का उपयोग करके तीन महिने तक इस कुर्सी को खाली क्यों रखा? यह रोचक किस्सा है। पहले इतना जान लीजिए कि आयुक्त की नियुक्ति के बाद भी इस महकमे में उपायुक्त की ही चल रही है। फिलहाल आयकर विभाग के निशाने परिवहन विभाग के कई अधिकारी हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी की तरह अगले कुछ दिनों में परिवहन विभाग राज्य सरकार के लिए नया सिरदर्द बन जाए। सूत्रों के अनुसार विभाग के दो अफसरों में हर महिने आने वाली लगभग बीस करोड़ रुपए की कमाई के हिस्से को लेकर खींचतान शुरू हो गई है।
मप्र परिवहन विभाग के लगभग चालीस चेकपोस्ट हैं। पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार परिवहन विभाग की कुल 831 करोड़ रुपए की आय में 91 करोड़ रुपए चेकपोस्टों से आए थे। विभाग के सूत्रों के अनुसार बीते वर्ष इन चेकपोस्टों से 200 करोड़ से अधिक की अवैध कमाई की गई थी। अकेल नयागांव बैरियर से प्रतिमाह तीन करोड़ रुपए ऊपर बसूले जा रहे हैं, जो कायदे से सरकारी खाते में जमा होना चाहिए। इनके अलावा शाहपुरफाटा, मुल्ताई, खबासा, सोयत एवं खिलचीपुर बैरियरों से भी जमकर चांदी काटी जा रही है। इन बैरियरों से गुजरने वाले ट्रक 9 टन के स्थान पर 12 से 14 टन तक माल भरकर धडल्ले से निकल रहे हैं। खास बात यह है कि परिवहन विभाग के आधे से ज्यादा सिपाही एवं हवलदारों की नियुक्ति इन पांच बैरियरों पर कर दी गई है।
सेंधवा पर कमाई बंद : मप्र में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला बैरियर सेंधवा है जहां से राज्य सरकार को हर साल लगभग 25 करोड़ रुपए साल की आय होती है वहां पर्याप्त स्टाफ नहीं है, क्योंकि सेंधवा बैरियर पर इलेक्टॉनिक तौलकांटा लग जाने के कारण वहां अवैध कमाई पूरी तरह बंद है। परिवहन विभाग ने नयागांव व अन्य मलाईदार बैरियरों पर नियुक्त सिपाही हवलदारों को क्रम से सेंधवा पर छह माह में से एक माह नौकरी करने के निर्देश दिए हैं। विभाग के यह सिपाही एवं हवलदार हर छह महिने में मोटी रकम
देकर मलाईदार बैरियरों पर नियुक्ति कराते हैं। इन्हें मजबूरी में छह में से एक माह सेंधवा जाना पड़ता है जहां ऊपर की कमाई नहीं होती। लेकिन विभाग के अधिकारियों के पासव इसव बात कर जबाव नहीं है कि अन्य बैरियरों की तरह सेंधवा बैरियर जहां से सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त होता है, वहां सिपाही हवलदारों की सीधी नियुक्ति क्यों नहीं की जाती?
कमाई को विवाद शुरू : बताया जाता है कि परिवहन विभाग में बैरियरों से आने वाली अवैध कमाई में हिस्सें को लेकर दो अधिकारियों में विवाद शुरू हो गया है। परिवहन विभाग के तत्कालीन आयुक्त एनके त्रिपाठी के समय से ही विभाग के उपायुक्त ने अपनी चालाकी से बंटवारे में अपना हिस्सा बढ़ा लिया था। इस अधिकारी ने अपने खास संबंधों के आधार पर आयुक्त की कुर्सी को तीन महिने तक खाली रखवाने में भी सफलता पा ली थी, इस दौरान उन्होंने न केवल हर तीन महने में होने वाले रोटेशन को किया, बल्कि कुछ अधिकारियों की डीपीसी करके पदोन्नति भी कर डाली।
मंत्री व प्रमुखसचिव दूर : शायद किसी को विश्वारस न हो, लेकिन विभाग के सूत्रों का दावा है कि परिवहन विभाग की अवैध कमाई के बारे में अभी भी विभाग के प्रमुखसचिव राजन कटोच एवं मंत्री जगदीश देवडा को सही सही जानकारी नहीं है। मंत्री देवडा सरकार को चलाने वाली अदृश्य शक्तियों के इशारे पर काम करने को मजबूर हैं। विभाग में मंत्री से चांदी उनके निजी स्टाफ में पदस्थ अफसर काट रहे हैं। जबकि प्रमुख सचिव कटोच एकदम ईमानदार अफसर है। उनके सामने किसी की हिम्मत नहीं होती कि - चेकपोस्टों के बारे में चर्चा भी कर सकें।
लोकायुक्त में भी पहुंचता है हिस्सा : यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि मप्र में ईमानदार लोकायुक्त होने के बाद भी चेकपोस्टों से लोकायुक्त कार्यालय के कइ्र अधिकारियों ने महिना बांध रखा है। यहीं कारण है कि पिछले चार साल में लोकायुकत संगठन ने अभी तक मप्र के किसी चेकपोस्ट पर न तो छापा मारा है और न ही इस खुली लूट को लेकर कोई सख्त कार्रवाही की है। मजेदार बात यह है कि लगभग हर चेकपोस्ट पर चौबीस घंटे सड़क पर लूटपाट चलती रहती है, लेकिन लोकायुक्त संगठन सहित किसी एजेंसी की इस पर नजर क्यों नहीं पड़ती?
क्या हैं कटर : लगभग हर चेकपोस्ट पर कुछ कटर रखे जाते हैं जो अवैध कमाई को रखते हैं। यह एक तरह से प्राईवेट स्टाफ रहता है जो यदि किसी कारण से चेकपोस्ट पर छापा पड़ जाए तो यह बताया जा सके कि नगद रकम प्राइवेट आदमी के पास से बरामद हुई है। यह कटर कई वर्षों से बैरियरों पर जमे हुए हैं। अवैध कमाई के हिसाब की डायरी कटर ही मेंटेन करता है। कई जिलों में कलेक्टर, एसपी, सांसद, विधायक व स्थानीय नेताओं को भी हिस्सा पहुंचाने का काम कटर ही करते हैं।
तीन बसें जप्त, यात्री हुए पेरशान
परिवहन विभाग के विशेष जांच दल ने बुधवार को भोपाल में बड़ी कार्यवाही करते हुए इंदौर-भोपाल रोड़ पर तीन बसों को बिना परमिट के सवारियों को ढोते हुए पकड़ा। तीनों बसों को जप्त कर लिया
गया है। सूत्रों के अनुसार परिवहन आयुक्त एसएस लाल ने विशेष जांच दल को इंदौर भोपाल रोड़ पर अवैध बसों को पकडऩे के निर्देश दिए थे। दल के निरीक्षक संजय तिवारी ने फंदा के पास अचानक चैकिंग करके भोपाल से इंदौर जा रही तीन बसों को पकड़ा। इनमें एक बस पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर के रिश्तेदार की थी। बसें जप्त होने के कारण इनमें यात्रा कर रही सवारियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। तीनों बसों को खजूरी सड़क थाने में रखा गया है।
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