शनिवार, अप्रैल 17, 2010

आईएएस अंजू सिंह बघेल के
खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत 







उदयपुर के दिव्या मार्बल को लाभ पहुंचाने का मामला

रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारियों पर लोकायुक्त का शिकंजा कंसता जा रहा है। शनिवार को प्रदेश की आईएएस अधिकारी अंजूसिंह बघेल के खिलाफ लोकायुक्त में एक शिकायत दर्ज हुई है।  उन पर कटनी में कलेक्टर के पद रहते सुप्रीम कोर्ट के आदेश के स्थगन के बाद भी वन भूमि में मार्बल व्यपारियों को उत्खनन की अनुमति देकर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया गया है। अंजूसिंह बघेल भ्रष्टाचार के आरोप में पहले से ही निलंबित हैं।
    शिकायतकर्ता कटनी निवासी अरुण अग्रवाल ने शुक्रवार को लोकायुक्त के समक्ष शपथ पत्र के साथ की शिकायत में कहा है कि - कटनी की तत्कालीन कलेक्टर अंजूसिंह बघेल, खनिज निरीक्षक क्यूए रहमान, तत्कालीन नायब तहसीलदार सीएस मिश्रा तथा राजस्व निरीक्षक प्रभाष बागरी, पटवारी अशोक खरे ने राजस्थान के खनिज व्यापारी और दिव्या मार्बल के पार्टनर शांतिलाल सिंघवी उदयपुरवालों से करोड़ों रुपए रिश्वत लेकर कटनी जिले की बोहरीबंद तहसील के ग्राम निमास के खसरा क्रमांक 220 की वनभूमि में अवैध उत्खनन करवाकर शासन करोड़ों रुपए का अनुचित लाभ लेकर शासन को राजस्व का नुक्सान पहुंचाया है।
    सूत्रों के अनुसार लोकायुक्त ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया है। लोकायुक्त के निेर्दश पर ही उक्त शिकायत पंजीकृत की गई है। उक्त शिकायत में दावा किया गया है कि - प्रतिबङ्क्षधत क्षेत्र में मार्बल व्यापारियों ने अफसरों की मिलीभगत से लगभग दो करोड़ रुपए का मिनरल उत्खनन किया है। इस शिकायत के साथ प्रमाण के रुप में 38 दस्तावेज संलग्र किए गए हैं।
156 (3) का काटा पानी नहीं मांगता
    मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों धारा 156 (3) का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। यह धारा विरोधियों को निपटाने के लिए एक अच्छा उपकरण सिद्ध हुई है। आम पाठक की विधिक निरक्षरता का फायदा लेकर इस धारा के सहारे तत्काल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को पटकनी दी जा सकती है। अभी हाल में कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला जिस राजनीतिक ऊहापोह में फँसे हैं, उसके पीछे भी यही धारा है और इसके पहले म.प्र. के पूर्व डीजीपी स्वराजपुरी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान, पूर्व लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ङ्क्षसह, नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी तक के विरुद्ध यह धारा काम में लाई गई है। इनमें से श्री पुरी के हाथों से डीजीपी का पद जाता रहा। मुख्यमंत्री के सामने भी एक बड़ा राजनीतिक संकट आ खड़ा हुआ। पूर्व लोकायुक्त श्री दयाल को भी पता लगा कि यह कड़वी गोली उन्हें भी निगलनी पड़ सकती है।
धारा 156 (3) है क्या?
    भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार कोई मजिस्ट्रेट, जिसे धारा 190 में इस हेतु स़ाक्त किया गया हो, 156 (3) के तहत जांच के आदेश दे सकता है। यह प्राइव्हेट कंप्लेंट की तरह है जिसके तहत मजिस्ट्रेट पुलिस को विवेचना के लिए निर्देशित करता है। धारा 156 (3) के तहत न तो मजिस्ट्रेट को कोई सुविस्तृत आदेश देना होता है, न उसे अपने आदेश के कारण बताने होते हैं। यह मजिस्ट्रेट के भीतर निहित दृष्टिकोण है कि वह ऐसा करता है या नहीं। इसके तहत वह मामले का संज्ञान भी नहीं लेता। इसलिए हुआ यह है कि धारा 156 (3) मैकेनिकल कार्यवाही हो गई है। यह सिर्फ शिकायत को पुलिस के पास प्रेषण-अग्रेषण करने के काम आ रही है।
    इसके विरुद्ध किसी तरह की राहत नहीं है। यहां होता यह है कि आदेश एक न्यायालय द्वारा किया जाता है। प्राय: शिकायत के दिन ही आदेश हो जाता है। संबंधित पक्ष को सुने बिना ही हो जाता है। उनकी पीठ पीछे ही। इकतरफा होने के बाद भी इससे आहत होने वाला पक्ष चूं नहीं कर पाता। न्यायालयीन आदेश होने से पूरा मीडिया इसकी ओर दौड़ पड़ता है और आहत पक्ष को भारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिष्ठा की क्षति उठानी पड़ती है।
    कई प्रकरणों में उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट तक ने बार-बार यह अभिनिर्धारित किया है कि धारा 156 मजिस्ट्रेट को निर्देश की जो शक्ति देती है, वह शक्ति न्यायोचित तरह से इस्तेमाल होनी चाहिए, यांत्रिक तरीके से नहीं। लेकिन आज तक कभी भी 'न्यायोचितÓ और 'यांत्रिकÓ का फर्क एकदम स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं किया जा सका। लिहाजा 156 (3) तुरंत दान महाकल्याण की तरह चलती है। चूंकि भारत में अदालतों की सामाजिक प्रतिष्ठा काफी ऊंची है, वे 'संप्रभुÓ का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए उनका आदेश भले ही वह बिना गुण दोष पर विचार किए दिया गया हो और आहत पक्ष के पीठ पीछे दिया गया हो। अपनी तरह की एक 'प्रभाÓ अर्जित कर लेता है और सबको लगता है, कोई बड़ी चीज हो गई। अदालत ने आदेश दिया है तो कुछ सोच-समझ कर ही दिया होगा। अदालत ने आदेश दिया है तो जरूर कोई बात होगी। वैसे भी राजनेताओं और उच्च पदस्थ अधिकारियों के विरुद्ध एक तरह का सिनिसिज्म तो चलता ही है। वे कितनी ही मेहनत करें, लेकिन सोच यही है कि मजा करते हैं।
    न इस प्रकरण में कोई गुण-दोष ण्वमऱ्ा हुआ है, न स्वराज पुरी के मामले में हुआ था, न दिग्विजय ङ्क्षसह या शिवराज ङ्क्षसह चौहान के, लेकिन चोट सभी को लगी। कम या ज्यादा पर विवाद हो सकता है। अदालतों के 'निर्णयÓ की वी.आई.पी. - विजिबिलिटी ज्यादा है। इससे तो बेहतर है कि अधिकारी और राजनेता अपने विरुद्ध एफ.आई.आर. प्रशासनिक तरीके से ही हो जाने दिया करें। कम से कम उनसे इतना बड़ा ड्रामा तो नहीं क्रिएट होगा। या फिर ठंडे मन से धारा 156, दंड प्रक्रिया संहिता में पंजाब जैसे राज्यों की तरह राज्य-संशोधन लाने पर विचार किया जाए ताकि इस धारा के माध्यम से सार्वजनिक छवियों के ये युद्ध रोके जा सकें। मीडिया को कोसने का अब बहुत ज्यादा अर्थ रह नहीं गया है क्योंकि उन्होंने तो सनसनी बेचने को अपना नैतिक अधिकार ही नहीं, पैतृक धंधा बना लिया है। लेकिन फस्र्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट को फस्र्ट इंपल्स रिपोर्ट बनने से रोकना ही होगा। जो प्रकटत: निर्दोष-सा दिखने वाला आदेश 156 (3) के मामलों में दिया जाता है कि पुलिस जांच करे और दोषी पाए तो कार्रवाई करे, नहीं पाए तो रिपोर्ट करें, वह इतना मासूम भी नहीं होता और हँसी-हँसी में किसी की इज्जत की सरे-बाजार, बीच चौराहे इज्जत उतार ली जाती है। कैलाश विजयवर्गीय आज इसे भुगत रहे हैं, किन्तु कल इसे भुगतने वाले आप भी हो सकते हैं।

बुधवार, अप्रैल 14, 2010

  भ्रष्ट कलेक्टरपर कार्यवाही क्यों नहीं?


 
    रवीन्द्र जैन

    भोपाल। शिवपुरी के महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक को कौन बचा रहा है? उन्हें बचाने के लिए फोन कौन कर रहा है? आईएएस अफसर की जांच के लिए नॉन आईएएस अधिकारियों को झाबुआ भेजने का निर्णय किसने और किसके इशारे पर लिया? जांच रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के प्रमाण सामने आने के बाद भी अभी तक किसी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई? उन सप्लायरों के खिलाफ आज तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई जिन्होंने आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर पांच करोड़ की शिक्षा सामग्री सप्लाई किए बिना ही भुगतान डकार लिया। सारे प्रमाण होने के बाद भी आखिर क्या बात है कि आईएएस अधिकारी राजकुमार पाठक ठप्पे से कुर्सी पर बैठकर पूरी सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं? आईएएस अधिकारी केपी राही और अंजूसिंह बघेल को निलंबित करने में जिस सरकार के हाथ नहीं कांपे, उस सरकार के हाथ पाठक के खिलाफ कार्यवाही करने से क्यों कांप रहे हैं? इस पूरे मामले में मप्र की शिक्षामंत्री अर्चना चिटनिस की रहस्यमय चुप्पी भी आश्चर्यजनक बनी हुई हैं।
    कांग्रेस पार्टी ने राजकुमार पाठक के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करा दी है। पार्टी के प्रवक्ता केके मिश्रा ने शपथ पत्र के साथ की शिकायत में 102 पेज के वे दस्तावेज संलग्र किए हैं जो पांच करोड़ के भ्रष्टाचार के प्रमाण हैं। यह प्रकरण वर्ष 2007 का है। झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान की राशि के पांच करोड़ निकालकर झाबुआ ब्लाक में जमा कराए। फिर अपने हाथ से ही इंदौर, भोपाल, धार के सप्लायरों को शिक्षा सामग्री क्रय करने के सीधे आदेश दिए। जबकि सर्वशिक्षा अभियान में शिक्षा सामग्री क्रय करने का अधिकार पालक शिक्षक संघ को ही हैं। कलेक्टर जैसे अधिकारी ने इस बात की भी परवाह नहीं की कि 25 हजार से अधिक का सामान क्रय करने के लिए निवदाएं आंमत्रित की जाती हैं। सप्लायरों ने कलेक्टर की योजना के अनुरूप साधे कागज पर बिल बनाकर सीधे कलेक्टर को दिए और कलेक्टर ने इन बिलों के साथ अपना कवरिंग लेटर लगाकर खंड स्त्रोत समन्वयक को भुगतान के निर्देश देते हुए यह भी लिखा कि - यह भुगतान पांच करोड़ की राशि में से किया जाए। यानि कलेक्टर ने उक्त पांच करोड़ की राशि जानबूझकर ब्लाक में जमा कराई थी, ताकि कम लोगों की नजर इस पर पड़े। भोपाल में बैठे आईएएस अधिकारी इस पर आपत्ति न करें, इसलिए इसी राशि में से भोपाल में आईएएस एसोसिएशन द्वारा आयोजित फिल्म समारोह के लिए भी पच्चीस हजार रुपए दे दिए गए।
    सूत्र बताते हैं कि - ऐसा केेवल झाबुआ में ही नहीं हुआ, बल्कि बड़वानी, धार, खरगौन में भी हुआ है। आदिवासी विभाग के दो अधिकारी बीजी मेहता व संतोष शुक्ला को ऐसे कारनामों का मास्टर माइंड माना जाता है। मेहता ने शाजापुर में करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति बना ली है। इन अफसरों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। तत्कालीन खंड स्त्रोत समन्वयक जीवनलाल शर्मा अचानक फरार हो गया है। आदिवासी विभाग के इस कर्मचारी को निलंबित करने की फाइल तैयार हो चुकी है।
सबसे बड़ा सप्लायर : इंदौर अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि.ने इस घपले में महती भूमिका अदा की है। राज्य सरकार के हाथ अभी तक इस सप्लायर तक नहीं पहुंचे हैं। झाबुआ घोटाले में सवा दो करोड़ रुपए का भुगतान अकेले इस कंपनी ने लिया है, जबकि स्टॉक रजिस्टर के अनुसार सामान कुछ भी सप्लाई नही हुआ है। इस कंपनी ने साधे कागज पर बिल बनाए। इन बिलों पर न तो बिल नंबर हैं और न ही तिथि डाली गई है। सबसे गंभीर बात यह है कि प्रा. लि. कंपनी होने के बाद भी इस कंपनी के पास सेल्स टैक्स नंबर तक नहीं है, जबकि मप्र वैट अधिनियम के तहत जो सामान कंपनी ने सप्लाई किया है, उस पर 12.5 प्रतिशत बैट कर लगाया जाना है। सवा करोड़ की सप्लाई में 28 लाख की कर चोरी तो इसी कंपनी ने की है। दूसरी ओर खंड स्त्रोत समन्वयक को कायदे से टीडीएस काटकर ही इस कंपनी को भुगतान करना था, वह भी नहीं काटा गया। सूत्रों का कहना है कि - इस कंपनी ने किसी बैंक में अवैध खाता खुलवाकर उक्त राशि आहरित कर ली है।
सात सौ के स्थान सैंतीस सौ पचास : अबेकस प्रा. लि. मप्र के कई शहरों में बच्चों की क्लास भी संचालित करती है। अबेकस की अधिकृत वेबसाइट  के अनुसार उक्त क्लास में आने वाले बच्चों को कंपनी की ओर से अबेकस किट लेना अनिवार्य है। वेबसाइट पर अबेकस किट की कीमत 700 रुपए बताई गई है, जबकि इस कंपनी ने झाबुआ में अबेकस किट की सप्लाई सैंतीस सौ पचास रुपए में करते हुए भुगतान लेना बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने इस कंपनी को तत्काल ब्लैक लिस्टेट करने एवं इस कंपनी द्वारा मप्र शिक्षा विभाग में अभी तक की गई सप्लाई की जांच कराने की मांग की गई है। उन्होंने लोकायुक्त में की गई शिकायत में भी इस कंपनी को हुए भुगतान का ब्यौरा भी दिया है।
कहां गए कम्प्यूटर : भोपाल की स्वास्तिक एजेंसी को कम्प्युटर सप्लाई के नाम से साढ़े सात लाख का
भुगतान किया गया है। लेकिन इन कम्प्यूटरों का अभी तक पता नहीं है।
शिक्षामंत्री रहस्यमयी चुप्पी : एक अप्रेल को राज एक्सप्रेस में खबर छपने के बाद मप्र की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस एकदम हरकत में आईं। उन्होंने उसी दिन विभाग के अफसरों की आपात बैठक बुलाकर उन्हें राज एक्सप्रेस की प्रतियां थमाते हुए इस घपले के बारे में उनसे जबाव मांगा था। स्वयं शिक्षामंत्री ने राज एक्सप्रेस संवाददाता से चर्चा में कहा था कि - मैं इन धपलों को रोकने के लिए दीर्घकालीन योजना बना रहीं हूं, लेकिन सप्रमाण खबर छपने के पन्द्रह दिन हो गए हैं और शिक्षामंत्री ने रहस्यमय चुप्पी साध ली हैं। अबेकस ने अपनी बेवसाइट पर शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस का मुस्कारता हुआ चित्र डाल रखा है। यह चित्र राज्य की शिक्षा व्यवस्था को चिढ़ाता ैहुआ नजर आ रहा है।

गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

 कलेक्टर ने डकारे करोड़ों
    सर्वशिक्षा अभियान का सबसे बड़ा घोटाला

रवीन्द्र जैन
   
    झाबुआ/भोपाल। मध्यप्रदेश का आईएएस अधिकारी जो अपनी जड़े मुख्यमंत्री सचिवालय में बताता है, वह आदिवासी बहुल जिले झाबुआ की कलेक्टरी मिलते ही इतना भ्रष्ट कैसे हो जाता है कि गरीब आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए आने वाले सर्वशिक्षा अभियान की राशि में से पांच करोड़ की राशि नकली बिल लगाकर, अपने असली हस्ताक्षर करके कैसे निकाल लेता है? इतना ही नहीं यह कलेक्टर चार साल झाबुआ में कई गुल खिलाने के बाद शिवपुरी जैसे जिले में अपनी पदस्थापना भी करा लेता है। राज एक्सप्रेस की जाबांज रिपोटर्स की टीम ने इस महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक की काली करतूतों के पुख्ता प्रमाण हासिल कर लिए हैं।
    राजकुमार पाठक मप्र के प्रामोटी आईएएस अधिकारी हैं। मुख्यमंत्री के सचिव एसके मिश्रा उनके सगे साले हैं तो जाहिर है कि उन्हें बेहतर पोस्टिंग मिलनी ही हैं। राज कुमार पाठक लगभग चार तक झाबुआ में कलेक्टर रहे। उनकी नजर जिले के विकास पर कम और इस आदिवासी जिले के लिए केन्द्र व राज्य से आने वाली राशि पर ज्यादा टिकी रही। बताते हैं कि राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान के पैसे को अपने बुढ़ापे को सहारा बनाने के लिए जैसा चाहा, वैसा उपयोग किया। यहां बता दें कि पाठक अगले साल मई में सरकारी नौकरी से रिटायर हो जाएंगे, लेकिन झाबुआ में उन्होंने जो पाप किए हैं उनसे वे शायद अपनी अंतिम सांस तक छुटकारा न पा सकें।  यह तो रही खबर की भूमिका, अब असली मुद्दे पर आते हैं।
कैसे हुआ भ्रष्टाचार : हमने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत वर्ष 2007 एवं 2008 की जो जानकारी जुटाई है, वह आपके सामने पेश है। तत्कालीन कलेक्टर पाठक झाबुआ जिले के सर्वशिक्षा अभियान के पदेन मिशन संचालक भी थे। मार्च 2007 में सर्वशिक्षा अभियान की राशि में गोलमाल करने के नीयत से उन्होंने लगभग पांच करोड़ रुपए की राशि बीआरसी यानि खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ के खाते में जमा कराई ताकि जिले में इस भ्रष्टाचार के बारे में किसी को पता न चल जाए। इसके बाद इंदौर, भोपाल, धार आदि की फर्मों के नाम से कथित रुप से फर्जी बिल तैयार कराए गए और बिना सामान सप्लाई हुए करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया गया।
कैसे हुई सप्लाई : सबसे पहले इंदौर के अबेकस प्रा. लि. की फर्जी सप्लाई के बारे में जान लीजिए। गीता भवन चौराहा इंदौर की इस फर्म को कलेक्टर ने सीधे अबकस सप्लाई करने का ठेका दिया। अबेकस यानि छोटे बच्चों को गिनती सिखाने के लिए जिस छोटे से खिलौने का उपयोग किया जाता है, उसे अबेकस कहते हैं। भोपाल के मारवाडी रोड स्थित जय स्टेशनरी पर अबेकस किट की कीमत ढाई सौ रुपए है। लेकिन अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर ने अपने कथित फर्जी बिल में अबेकस किट की कीमत 3750 रुपए के अलावा किट के बैग की कीमत 792 रुपए दर्शाई है। उक्त बिल के अनुसार तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने अबेकस की 3600 किट गैग सहित सप्लाई का आदेश दिया था। अबेकस प्रा. लि. इंदौर ने बिना एक किट सप्लाई किए कलेक्टर पाठक के नाम दो बिल दिए। पहले बिल 95 लाख 38 हजार 200 रुपए का, दूसरा बिल 68 लाख 13 हजार रुपए का, साधे कागज पर बने इन बिलों पर न तो तारीख है और न ही बिल नंबर, सेल्स टेक्स नंबर आदि है। तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने इन बिलों को अपने कवरिंग लेटर के साथ खंड स्त्रोत समन्वयक को भेजते हुए सीधे भुगतान के निर्देश दे दिए। इस भुगतान के बारे में कैश बुक में स्पष्ट लिखा है कि कलेक्टर के निर्देश पर उक्त भुगतान किया गया। मजेदार बात यह है कि अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर के 68 लाख 13 हजार रुपए वाले बिल का भुगतान जिला सर्व शिक्षा केन्द्र से भी कराया गया है।
धड़ाधड़ छपवाए नकली बिल : केवल अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर इन फर्जी बिलों के आधार पर करोड़ों रुपए के भुगतान के बाद भी तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक का पेट नहीं भरा तो उन्होंने मप्र राज्य सहकारी उपभेक्ता संघ मर्यादित, इंदौर के कथित फर्जी बिलों के आधार पर एक करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। स्टॉक रजिस्टर के अनुसार संघ ने इस अवधि में कोई सामान ही सप्लाई नहीं किया है।

      



     भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी
    - राजकुमार पाठक तत्कालीन कलेकटर झाबुआ
    - बीजी मेहता, तत्कालीन जिला योजना समन्वयक
    - जीवनलाल शर्मा, खंंड स्त्रोत समन्वयक झाबुआ

    इन फर्मों को भुगतान किया गया, लेकिन सामान सप्लाई नहीं हुआ
    - अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर                    68,01,077.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर                     95,38,2000.00 दिनांक 23 अप्रेल 07
    - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर   47,68,838.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर   78,23,040.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - स्वास्तिक एजेंसी, मारवाडी रोड इंदौर                   7,67,306.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - होलीपेथ इंटरनेशनल प्रा. लि. भोपाल                   7,86,800.00  दिनांक 16 अप्रेल 07
    - महावीर प्रिटिंग प्रेस, धार                                     5,54,700.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
    - द रिपब्लिकन प्रेस इलाहबाद                                 28,29,048.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
    - गोयनका आफसेट प्रिंटिंग, इंदौर                         8,95,600.00 दिनांक 18 मई 07

    अफसरों का कहना है
    - उस समय जिला योजना समन्वयक का चार्ज बीजी मेहता के पास था और वे प्रथम श्रेणी अधिकारी हैं। इसलिए उन्हें मेरे समक्ष समस्त दस्तावेज सतर्कता व सावधानी से प्रस्तुत करना चाहिए था। कलेक्टर के पास कार्यग् की अधिकता होती है अत: प्रथम श्रेणी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर हस्ताक्षर करते समय ज्यादा गहराई में नहीं जाते हैं।
    राजकुमार पाठक
    तत्कालीन कलेक्टर


    - मुझे जैसा कलेक्टर का लिखित निर्देश मिलता गया मैं भुगतान करता गया। सामग्री खरीदने के न तो मैंने आदेश दिए और न ही मैंने खरीदी है। कलेक्टर के निर्देश पर मेरे कार्यालय के खाते में पांच करोड़ रुपए जमा किए गए थे, और उनके निर्देश पर ही उक्त राशि व्यय की गई।
    - जीवनलाल शर्मा
       खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ

   
    - जिला योजना समन्वयक हमसे डीडी बनवाकर अपने पास बुला लेते थे। इसके बाद किसे भुगतान कर रहे हें किसे नहीं हमें कुछ नहीं मालूम।
    - राजेश वागरेचा
       लेखापाल, बीआरसी, झाबुआ

   
    - मेहता नदारत
    जिला योजना समन्वयक बीजी मेहता इस संबंध में किसी से बात करने को तैयार नहीं है, इस बारे में पूछने पर वे अपना मोबाईल बंद कर लेते हैं। यहां बता दें कि मेहता मूलरुप से आदिवासी विकास विभाग से हैं तथा उनकी छवि जादूगर की है जो उल्टा सीधा करके करोड़ों रुपए बनाना जानते हैं। बताते हैं कि इस नौकरी में मेहता ने लगभग तीस करोड़ से अधिक की सम्पत्ति जुटा ली है।

     वर्तमान अधिकारी परेशान
    - झाबुआ में पदस्थ वर्तमान जिला योजन समन्वयक बी सुभाष त्रिवेदी से जब अबेकस सप्लाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि अबेकस क्या होता है। उन्होंने इसका नाम ही पहली बार सुना है। त्रिवेदी का कहना है कि वर्ष 2007 में जो राशि बीआरसी में जमा की गई थी, वह शिक्षकों के वेतन की राशि थी।
    - खंढ स्त्रोत समन्वयक झाबुआ पद पर वर्तमान में पदस्थ बीआरसी सोमसिंह भूरिया ने बताया कि - उनकी जानकारी एवं स्टॉक रजिस्टर के अनुसार 2007 में जिस सामान का भुगतान किया गया है वह सामान विभाग में आया ही नहीं। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत आप भी स्टॉक रजिस्टर लेकर चेक कर सकते हैं।

     राज्य सरकार को मालूम है :
    संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा चांचोलकर का कहना है कि आडिट में उक्त गउग़डी पकड़ ली गई थी तथा इस गंभीर आर्थिक अनियमितता की शिकायत राज्य सरकार तक पहुंचा दी गई है।
   
  यह भी संदेह के दायरे में
        तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक के निर्देश पर संविदा शिक्षकों के मानदेय के नाम पर 6 अप्रेल 07 को डेढ़ करोड़ की राशि बीआरसी से निकाली गई है। यह भी संदेह के दायरे में है।


    संविदा शिक्षक वर्ग 2

    विकास खंड       शिक्षकों की संख्या             राशि
    जोबट                      20                         4,90,000
    अलीराजपुर             27                          6,15,000
    भाभरा                     25                          7,00,000
    थांदला                     22                          5,14,000
    कुल राशि                                         23,66,000

    संविदा शिक्षक वर्ग 3
    विकास खंड       शिक्षकों की संख्या             राशि
    पेटलावद               102                      18,55,000
    रामा                      8                          40,000
    उदयगढ़                116                      18,32,500
    जोबट                  151                       24,20,000
    अलीराजपुर              88                       14,25,000
    भाभरा                   95                       16,57,500
    सोण्डवा                 89                       14,17,500
    थांदला                 122                       20,05,000
    कुल राशि                                        1,26,525,00
   

          - सर्वशिक्षा अभियान योजना में शत प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार से मिलती है। इसके योजना के संचालन का जिम्मा सरकार ने कलेक्टरों को सौंपा है।
        - कलेक्टर भी इस योजना की राशि का दुरूपयोग न कर सकें, इसलिए इस योजना की राशि से सामग्री क्रय करने का अधिकार पालन शिक्षक संघ को दिया गया है।
        - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित को केवल 25 आयटम ही सप्लाई करने का अधिकार है। लेकिन उसके कथित फर्जी बिलों पर कई ऐसे आयटम खरीदना बताया गया है, जो उसे सप्लाई करने का अधिकार ही नहीं है।
        - राज्य भंडार क्रय नियमों के अनुसार 25 हजार रुपए से अधिक का सामान क्रय करने पर कम से कम तीन कुटेशन बुलाना जरूरी है।
        - लगभग पांच करोड़ से अधिक की इस खरीदी के लिए न तो टेंडर बुलाए गए और न ही अखबारों में विज्ञप्ति प्रकाशित की गई।
        - तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सीधे तौर नपर ठेकेदारों को सप्लाई के आदेश दे दिए और उनसे बिल भी अपने नाम बुलवाकर बीआरसी से भुगतान भी करवा दिया गया।