भ्रष्ट कलेक्टरपर कार्यवाही क्यों नहीं?
रवीन्द्र जैन
भोपाल। शिवपुरी के महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक को कौन बचा रहा है? उन्हें बचाने के लिए फोन कौन कर रहा है? आईएएस अफसर की जांच के लिए नॉन आईएएस अधिकारियों को झाबुआ भेजने का निर्णय किसने और किसके इशारे पर लिया? जांच रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के प्रमाण सामने आने के बाद भी अभी तक किसी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई? उन सप्लायरों के खिलाफ आज तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई जिन्होंने आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर पांच करोड़ की शिक्षा सामग्री सप्लाई किए बिना ही भुगतान डकार लिया। सारे प्रमाण होने के बाद भी आखिर क्या बात है कि आईएएस अधिकारी राजकुमार पाठक ठप्पे से कुर्सी पर बैठकर पूरी सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं? आईएएस अधिकारी केपी राही और अंजूसिंह बघेल को निलंबित करने में जिस सरकार के हाथ नहीं कांपे, उस सरकार के हाथ पाठक के खिलाफ कार्यवाही करने से क्यों कांप रहे हैं? इस पूरे मामले में मप्र की शिक्षामंत्री अर्चना चिटनिस की रहस्यमय चुप्पी भी आश्चर्यजनक बनी हुई हैं।
कांग्रेस पार्टी ने राजकुमार पाठक के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करा दी है। पार्टी के प्रवक्ता केके मिश्रा ने शपथ पत्र के साथ की शिकायत में 102 पेज के वे दस्तावेज संलग्र किए हैं जो पांच करोड़ के भ्रष्टाचार के प्रमाण हैं। यह प्रकरण वर्ष 2007 का है। झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान की राशि के पांच करोड़ निकालकर झाबुआ ब्लाक में जमा कराए। फिर अपने हाथ से ही इंदौर, भोपाल, धार के सप्लायरों को शिक्षा सामग्री क्रय करने के सीधे आदेश दिए। जबकि सर्वशिक्षा अभियान में शिक्षा सामग्री क्रय करने का अधिकार पालक शिक्षक संघ को ही हैं। कलेक्टर जैसे अधिकारी ने इस बात की भी परवाह नहीं की कि 25 हजार से अधिक का सामान क्रय करने के लिए निवदाएं आंमत्रित की जाती हैं। सप्लायरों ने कलेक्टर की योजना के अनुरूप साधे कागज पर बिल बनाकर सीधे कलेक्टर को दिए और कलेक्टर ने इन बिलों के साथ अपना कवरिंग लेटर लगाकर खंड स्त्रोत समन्वयक को भुगतान के निर्देश देते हुए यह भी लिखा कि - यह भुगतान पांच करोड़ की राशि में से किया जाए। यानि कलेक्टर ने उक्त पांच करोड़ की राशि जानबूझकर ब्लाक में जमा कराई थी, ताकि कम लोगों की नजर इस पर पड़े। भोपाल में बैठे आईएएस अधिकारी इस पर आपत्ति न करें, इसलिए इसी राशि में से भोपाल में आईएएस एसोसिएशन द्वारा आयोजित फिल्म समारोह के लिए भी पच्चीस हजार रुपए दे दिए गए।
सूत्र बताते हैं कि - ऐसा केेवल झाबुआ में ही नहीं हुआ, बल्कि बड़वानी, धार, खरगौन में भी हुआ है। आदिवासी विभाग के दो अधिकारी बीजी मेहता व संतोष शुक्ला को ऐसे कारनामों का मास्टर माइंड माना जाता है। मेहता ने शाजापुर में करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति बना ली है। इन अफसरों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। तत्कालीन खंड स्त्रोत समन्वयक जीवनलाल शर्मा अचानक फरार हो गया है। आदिवासी विभाग के इस कर्मचारी को निलंबित करने की फाइल तैयार हो चुकी है।
सबसे बड़ा सप्लायर : इंदौर अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि.ने इस घपले में महती भूमिका अदा की है। राज्य सरकार के हाथ अभी तक इस सप्लायर तक नहीं पहुंचे हैं। झाबुआ घोटाले में सवा दो करोड़ रुपए का भुगतान अकेले इस कंपनी ने लिया है, जबकि स्टॉक रजिस्टर के अनुसार सामान कुछ भी सप्लाई नही हुआ है। इस कंपनी ने साधे कागज पर बिल बनाए। इन बिलों पर न तो बिल नंबर हैं और न ही तिथि डाली गई है। सबसे गंभीर बात यह है कि प्रा. लि. कंपनी होने के बाद भी इस कंपनी के पास सेल्स टैक्स नंबर तक नहीं है, जबकि मप्र वैट अधिनियम के तहत जो सामान कंपनी ने सप्लाई किया है, उस पर 12.5 प्रतिशत बैट कर लगाया जाना है। सवा करोड़ की सप्लाई में 28 लाख की कर चोरी तो इसी कंपनी ने की है। दूसरी ओर खंड स्त्रोत समन्वयक को कायदे से टीडीएस काटकर ही इस कंपनी को भुगतान करना था, वह भी नहीं काटा गया। सूत्रों का कहना है कि - इस कंपनी ने किसी बैंक में अवैध खाता खुलवाकर उक्त राशि आहरित कर ली है।
सात सौ के स्थान सैंतीस सौ पचास : अबेकस प्रा. लि. मप्र के कई शहरों में बच्चों की क्लास भी संचालित करती है। अबेकस की अधिकृत वेबसाइट के अनुसार उक्त क्लास में आने वाले बच्चों को कंपनी की ओर से अबेकस किट लेना अनिवार्य है। वेबसाइट पर अबेकस किट की कीमत 700 रुपए बताई गई है, जबकि इस कंपनी ने झाबुआ में अबेकस किट की सप्लाई सैंतीस सौ पचास रुपए में करते हुए भुगतान लेना बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने इस कंपनी को तत्काल ब्लैक लिस्टेट करने एवं इस कंपनी द्वारा मप्र शिक्षा विभाग में अभी तक की गई सप्लाई की जांच कराने की मांग की गई है। उन्होंने लोकायुक्त में की गई शिकायत में भी इस कंपनी को हुए भुगतान का ब्यौरा भी दिया है।
कहां गए कम्प्यूटर : भोपाल की स्वास्तिक एजेंसी को कम्प्युटर सप्लाई के नाम से साढ़े सात लाख का
भुगतान किया गया है। लेकिन इन कम्प्यूटरों का अभी तक पता नहीं है।
शिक्षामंत्री रहस्यमयी चुप्पी : एक अप्रेल को राज एक्सप्रेस में खबर छपने के बाद मप्र की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस एकदम हरकत में आईं। उन्होंने उसी दिन विभाग के अफसरों की आपात बैठक बुलाकर उन्हें राज एक्सप्रेस की प्रतियां थमाते हुए इस घपले के बारे में उनसे जबाव मांगा था। स्वयं शिक्षामंत्री ने राज एक्सप्रेस संवाददाता से चर्चा में कहा था कि - मैं इन धपलों को रोकने के लिए दीर्घकालीन योजना बना रहीं हूं, लेकिन सप्रमाण खबर छपने के पन्द्रह दिन हो गए हैं और शिक्षामंत्री ने रहस्यमय चुप्पी साध ली हैं। अबेकस ने अपनी बेवसाइट पर शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस का मुस्कारता हुआ चित्र डाल रखा है। यह चित्र राज्य की शिक्षा व्यवस्था को चिढ़ाता ैहुआ नजर आ रहा है।
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