गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

 कलेक्टर ने डकारे करोड़ों
    सर्वशिक्षा अभियान का सबसे बड़ा घोटाला

रवीन्द्र जैन
   
    झाबुआ/भोपाल। मध्यप्रदेश का आईएएस अधिकारी जो अपनी जड़े मुख्यमंत्री सचिवालय में बताता है, वह आदिवासी बहुल जिले झाबुआ की कलेक्टरी मिलते ही इतना भ्रष्ट कैसे हो जाता है कि गरीब आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए आने वाले सर्वशिक्षा अभियान की राशि में से पांच करोड़ की राशि नकली बिल लगाकर, अपने असली हस्ताक्षर करके कैसे निकाल लेता है? इतना ही नहीं यह कलेक्टर चार साल झाबुआ में कई गुल खिलाने के बाद शिवपुरी जैसे जिले में अपनी पदस्थापना भी करा लेता है। राज एक्सप्रेस की जाबांज रिपोटर्स की टीम ने इस महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक की काली करतूतों के पुख्ता प्रमाण हासिल कर लिए हैं।
    राजकुमार पाठक मप्र के प्रामोटी आईएएस अधिकारी हैं। मुख्यमंत्री के सचिव एसके मिश्रा उनके सगे साले हैं तो जाहिर है कि उन्हें बेहतर पोस्टिंग मिलनी ही हैं। राज कुमार पाठक लगभग चार तक झाबुआ में कलेक्टर रहे। उनकी नजर जिले के विकास पर कम और इस आदिवासी जिले के लिए केन्द्र व राज्य से आने वाली राशि पर ज्यादा टिकी रही। बताते हैं कि राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान के पैसे को अपने बुढ़ापे को सहारा बनाने के लिए जैसा चाहा, वैसा उपयोग किया। यहां बता दें कि पाठक अगले साल मई में सरकारी नौकरी से रिटायर हो जाएंगे, लेकिन झाबुआ में उन्होंने जो पाप किए हैं उनसे वे शायद अपनी अंतिम सांस तक छुटकारा न पा सकें।  यह तो रही खबर की भूमिका, अब असली मुद्दे पर आते हैं।
कैसे हुआ भ्रष्टाचार : हमने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत वर्ष 2007 एवं 2008 की जो जानकारी जुटाई है, वह आपके सामने पेश है। तत्कालीन कलेक्टर पाठक झाबुआ जिले के सर्वशिक्षा अभियान के पदेन मिशन संचालक भी थे। मार्च 2007 में सर्वशिक्षा अभियान की राशि में गोलमाल करने के नीयत से उन्होंने लगभग पांच करोड़ रुपए की राशि बीआरसी यानि खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ के खाते में जमा कराई ताकि जिले में इस भ्रष्टाचार के बारे में किसी को पता न चल जाए। इसके बाद इंदौर, भोपाल, धार आदि की फर्मों के नाम से कथित रुप से फर्जी बिल तैयार कराए गए और बिना सामान सप्लाई हुए करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया गया।
कैसे हुई सप्लाई : सबसे पहले इंदौर के अबेकस प्रा. लि. की फर्जी सप्लाई के बारे में जान लीजिए। गीता भवन चौराहा इंदौर की इस फर्म को कलेक्टर ने सीधे अबकस सप्लाई करने का ठेका दिया। अबेकस यानि छोटे बच्चों को गिनती सिखाने के लिए जिस छोटे से खिलौने का उपयोग किया जाता है, उसे अबेकस कहते हैं। भोपाल के मारवाडी रोड स्थित जय स्टेशनरी पर अबेकस किट की कीमत ढाई सौ रुपए है। लेकिन अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर ने अपने कथित फर्जी बिल में अबेकस किट की कीमत 3750 रुपए के अलावा किट के बैग की कीमत 792 रुपए दर्शाई है। उक्त बिल के अनुसार तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने अबेकस की 3600 किट गैग सहित सप्लाई का आदेश दिया था। अबेकस प्रा. लि. इंदौर ने बिना एक किट सप्लाई किए कलेक्टर पाठक के नाम दो बिल दिए। पहले बिल 95 लाख 38 हजार 200 रुपए का, दूसरा बिल 68 लाख 13 हजार रुपए का, साधे कागज पर बने इन बिलों पर न तो तारीख है और न ही बिल नंबर, सेल्स टेक्स नंबर आदि है। तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने इन बिलों को अपने कवरिंग लेटर के साथ खंड स्त्रोत समन्वयक को भेजते हुए सीधे भुगतान के निर्देश दे दिए। इस भुगतान के बारे में कैश बुक में स्पष्ट लिखा है कि कलेक्टर के निर्देश पर उक्त भुगतान किया गया। मजेदार बात यह है कि अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर के 68 लाख 13 हजार रुपए वाले बिल का भुगतान जिला सर्व शिक्षा केन्द्र से भी कराया गया है।
धड़ाधड़ छपवाए नकली बिल : केवल अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर इन फर्जी बिलों के आधार पर करोड़ों रुपए के भुगतान के बाद भी तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक का पेट नहीं भरा तो उन्होंने मप्र राज्य सहकारी उपभेक्ता संघ मर्यादित, इंदौर के कथित फर्जी बिलों के आधार पर एक करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। स्टॉक रजिस्टर के अनुसार संघ ने इस अवधि में कोई सामान ही सप्लाई नहीं किया है।

      



     भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी
    - राजकुमार पाठक तत्कालीन कलेकटर झाबुआ
    - बीजी मेहता, तत्कालीन जिला योजना समन्वयक
    - जीवनलाल शर्मा, खंंड स्त्रोत समन्वयक झाबुआ

    इन फर्मों को भुगतान किया गया, लेकिन सामान सप्लाई नहीं हुआ
    - अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर                    68,01,077.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर                     95,38,2000.00 दिनांक 23 अप्रेल 07
    - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर   47,68,838.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर   78,23,040.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - स्वास्तिक एजेंसी, मारवाडी रोड इंदौर                   7,67,306.00  दिनांक 7 अप्रेल 07
    - होलीपेथ इंटरनेशनल प्रा. लि. भोपाल                   7,86,800.00  दिनांक 16 अप्रेल 07
    - महावीर प्रिटिंग प्रेस, धार                                     5,54,700.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
    - द रिपब्लिकन प्रेस इलाहबाद                                 28,29,048.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
    - गोयनका आफसेट प्रिंटिंग, इंदौर                         8,95,600.00 दिनांक 18 मई 07

    अफसरों का कहना है
    - उस समय जिला योजना समन्वयक का चार्ज बीजी मेहता के पास था और वे प्रथम श्रेणी अधिकारी हैं। इसलिए उन्हें मेरे समक्ष समस्त दस्तावेज सतर्कता व सावधानी से प्रस्तुत करना चाहिए था। कलेक्टर के पास कार्यग् की अधिकता होती है अत: प्रथम श्रेणी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर हस्ताक्षर करते समय ज्यादा गहराई में नहीं जाते हैं।
    राजकुमार पाठक
    तत्कालीन कलेक्टर


    - मुझे जैसा कलेक्टर का लिखित निर्देश मिलता गया मैं भुगतान करता गया। सामग्री खरीदने के न तो मैंने आदेश दिए और न ही मैंने खरीदी है। कलेक्टर के निर्देश पर मेरे कार्यालय के खाते में पांच करोड़ रुपए जमा किए गए थे, और उनके निर्देश पर ही उक्त राशि व्यय की गई।
    - जीवनलाल शर्मा
       खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ

   
    - जिला योजना समन्वयक हमसे डीडी बनवाकर अपने पास बुला लेते थे। इसके बाद किसे भुगतान कर रहे हें किसे नहीं हमें कुछ नहीं मालूम।
    - राजेश वागरेचा
       लेखापाल, बीआरसी, झाबुआ

   
    - मेहता नदारत
    जिला योजना समन्वयक बीजी मेहता इस संबंध में किसी से बात करने को तैयार नहीं है, इस बारे में पूछने पर वे अपना मोबाईल बंद कर लेते हैं। यहां बता दें कि मेहता मूलरुप से आदिवासी विकास विभाग से हैं तथा उनकी छवि जादूगर की है जो उल्टा सीधा करके करोड़ों रुपए बनाना जानते हैं। बताते हैं कि इस नौकरी में मेहता ने लगभग तीस करोड़ से अधिक की सम्पत्ति जुटा ली है।

     वर्तमान अधिकारी परेशान
    - झाबुआ में पदस्थ वर्तमान जिला योजन समन्वयक बी सुभाष त्रिवेदी से जब अबेकस सप्लाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि अबेकस क्या होता है। उन्होंने इसका नाम ही पहली बार सुना है। त्रिवेदी का कहना है कि वर्ष 2007 में जो राशि बीआरसी में जमा की गई थी, वह शिक्षकों के वेतन की राशि थी।
    - खंढ स्त्रोत समन्वयक झाबुआ पद पर वर्तमान में पदस्थ बीआरसी सोमसिंह भूरिया ने बताया कि - उनकी जानकारी एवं स्टॉक रजिस्टर के अनुसार 2007 में जिस सामान का भुगतान किया गया है वह सामान विभाग में आया ही नहीं। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत आप भी स्टॉक रजिस्टर लेकर चेक कर सकते हैं।

     राज्य सरकार को मालूम है :
    संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा चांचोलकर का कहना है कि आडिट में उक्त गउग़डी पकड़ ली गई थी तथा इस गंभीर आर्थिक अनियमितता की शिकायत राज्य सरकार तक पहुंचा दी गई है।
   
  यह भी संदेह के दायरे में
        तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक के निर्देश पर संविदा शिक्षकों के मानदेय के नाम पर 6 अप्रेल 07 को डेढ़ करोड़ की राशि बीआरसी से निकाली गई है। यह भी संदेह के दायरे में है।


    संविदा शिक्षक वर्ग 2

    विकास खंड       शिक्षकों की संख्या             राशि
    जोबट                      20                         4,90,000
    अलीराजपुर             27                          6,15,000
    भाभरा                     25                          7,00,000
    थांदला                     22                          5,14,000
    कुल राशि                                         23,66,000

    संविदा शिक्षक वर्ग 3
    विकास खंड       शिक्षकों की संख्या             राशि
    पेटलावद               102                      18,55,000
    रामा                      8                          40,000
    उदयगढ़                116                      18,32,500
    जोबट                  151                       24,20,000
    अलीराजपुर              88                       14,25,000
    भाभरा                   95                       16,57,500
    सोण्डवा                 89                       14,17,500
    थांदला                 122                       20,05,000
    कुल राशि                                        1,26,525,00
   

          - सर्वशिक्षा अभियान योजना में शत प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार से मिलती है। इसके योजना के संचालन का जिम्मा सरकार ने कलेक्टरों को सौंपा है।
        - कलेक्टर भी इस योजना की राशि का दुरूपयोग न कर सकें, इसलिए इस योजना की राशि से सामग्री क्रय करने का अधिकार पालन शिक्षक संघ को दिया गया है।
        - मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित को केवल 25 आयटम ही सप्लाई करने का अधिकार है। लेकिन उसके कथित फर्जी बिलों पर कई ऐसे आयटम खरीदना बताया गया है, जो उसे सप्लाई करने का अधिकार ही नहीं है।
        - राज्य भंडार क्रय नियमों के अनुसार 25 हजार रुपए से अधिक का सामान क्रय करने पर कम से कम तीन कुटेशन बुलाना जरूरी है।
        - लगभग पांच करोड़ से अधिक की इस खरीदी के लिए न तो टेंडर बुलाए गए और न ही अखबारों में विज्ञप्ति प्रकाशित की गई।
        - तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सीधे तौर नपर ठेकेदारों को सप्लाई के आदेश दे दिए और उनसे बिल भी अपने नाम बुलवाकर बीआरसी से भुगतान भी करवा दिया गया।

   




   

   
   

4 टिप्‍पणियां:

R. Kaul ने कहा…

लगता है आप ने इस विषय में पूरा शोध किया है। आशा है कि घोटाले के दोषियों को सज़ा मिलेगी। क्या यह सूचना केवल इस ब्लॉग तक ही सीमित रहेगी या आगे भी कुछ करने का इरादा है? अपने पाठकों को सूचित करते रहिएगा।

RAJ SINH ने कहा…

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है !

jayanti jain ने कहा…

investigative journalism. congrats

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।