20 कलेक्टरों पर लटकी तलवार
नरेगा में भ्रष्टाचार पर मुख्य सूचना आयुक्त हुए सख्त
रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के बीस से अधिक कलेक्टरों पर निलंबन की तलवार लटक गई है। जिस नरेगा योजना में भ्रष्टाचार के आरोप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनुसूचित जाति के आईएएस अधिकारी केपी राही व पिछड़े वर्ग की आईएएस अधिकारी अंजू सिंह बघेल को निलंबित किया था, उसी आरोप में मप्र के लगभग बीस ऐसे आईएएस अधिकारी लपेटे में आ सकते हैं जिन्होंने कलेक्टर की कुर्सी पर रहकर नरेगा योजना की राशि का जमकर दुरूपयोग किया है।
सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने मप्र के सामान्य प्रशासन विभाग से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी कि - कितने आईएएस अधिकारियों के विरुद्ध कलेक्टर के रुप नरेगा योजना की राशि के दुरूपयोग की शिकायतें शासन को मिली हैं। दुबे ने नरेगा योजना की राशि में किए गए दुरूपयोग की फाइलों की भी छाया प्रतियां मांगी थीं। राज्य सरकार ने दुबे को यह जानकारी नहीं दी तो उन्होंने ने मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी के यहां अपील की। दुबे की अपील पर मुख्य सूचना आयुक्त तिवारी ने सुनवाई करने के बाद फरवरी 2010 में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि - दुबे उक्त जानकारी उपलब्ध कराई जाए। लेकिन सराकर ने फिर भी यह जानकारी नहीं दी तो 8 अप्रेल 2010 को मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने सख्त कदम उठाते हुए सरकार को संबंधित सभी फाइलें सूचना आयोग भेजने के निर्देश दिए हैं।
आयुक्त के इस निर्देश से मंत्रालय में हड़कंप मच गया है क्योंकि यदि इन फाइलों पर कार्यवाही की गई तो कम से कम बीस कलेक्टरों को निलंबित करना पड़ सकता है और यदि मुख्यमंत्री ने यह कार्यवाही नहीं की तो कोई भी व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
1 टिप्पणी:
जिन्दा लोगों की तलाश!
आपको उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की इस तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को हो सकता है कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आपको उक्त टिप्पणी प्रासंगिक लगे या न लगे, लेकिन हमारा आग्रह है कि बूंद से सागर की राह में आपको सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी आपके अनुमोदन के बाद प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप को सारथी बनना होगा। इच्छा आपकी, आग्रह हमारा है। हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी जिनमें हो, क्योंकि भगत ने यही नासमझी की थी, जिसका दुःख आने वाली पढियों को सदैव सताता रहेगा। हमें सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे आजादी के दीवानों की भांति आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने वाले जिन्दादिल लोगों की तलाश है। आपको सहयोग केवल इतना भी मिल सके कि यह टिप्पणी आपके ब्लॉग पर प्रदर्शित होती रहे तो कम नहीं होगा। आशा है कि आप उचित निर्णय लेंगे।
समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है, बल्कि हो ही चुका है। सरकार द्वारा जनता से हजारों तरीकों से टेक्स (कर) वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया गया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा लोगों से पूछना चाहता हँू कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरों द्वारा सत्ता मनमाना दुरुपयोग करना और कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666, E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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