गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

सीएम हाउस और मंत्रालय में हुए खर्च का पर्दाफाश

सीएम हाउस और मंत्रालय

में हुए खर्च का पर्दाफाश










गज़ब का हाज़मा है इनका। एक साल में 1.86 करोड़ भोज की राजनीति पर खर्च। ढाई लाख का भोज कर गईं शिवराज की बहनें। सत्कार पर 32.48 लाख का खर्च। सीएम हाउस में दूध-घी की गंगा बही। मोबाइल, लैंडलाइन का खर्च बताने में आनाकानी।
महेश बागी
बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल । मध्यप्रदेश सरकार कर्ज में डूबी है। देनदारियां चुकाई नहीं जा रही हैं। केंद्रीय अनुदान की राशि दुगनी मिल रही है। फिर भी विकास कार्य ठप हैं। सरकार मितव्ययिता पर जोर दे रही है और इसी सरकार की नाक के नीचे तमाम नियम-कानूनों को ताक में रख कर आतिथ्य सत्कार और सरकारी बैठकों के नाम पर करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं। खास बात यह है कि जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार खत्म करने का राग अलापते हुए मितव्ययिता की बात कर रहे हैं, उन्हीं के निवास और सचिवालय में आतिथ्य सत्कार के नाम पर जन-धन फूंका जा रहा है। राज्य मंत्रालय में आतिथ्य सत्कार का एक घोटाला उजागर होने और उसके दफन होने के बावजूद सरकार की आंख नहीं खुली है।
किस बात की तनख्वाह लेते हैं सीएम
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार सभी जनप्रतिनिधियों को सरकारी खजाने से वेतनमान दिया जाता है, ताकि वे अपने घर-परिवार के दैनंदिनी खर्च वहन कर सकें। इस अधिनियम के अनुसार मुख्यमंत्री को भी एक निश्चित धनराशि दी जाती है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री निवास में आतिथ्य सत्कार के नाम पर जन-धन खर्च किया जाता है। अप्रैल 2004 से मार्च 2009 तक मुख्यमंत्री निवास में आगंतुकों के सत्कार पर 32,48,172 रुपए खर्च किए गए। ये आगंतुक कौन थे, उन पर खर्च करने की वजह क्या थी तथा उन पर किस मद में खर्च किया गया, इसकी जानकारी देने में मुख्यमंत्री सचिवालय मौन है। क्यों?
क्या कहते हैं नियम?
मप्र स्टेट गेस्ट रूल्स 1958 के अनुसार यदि मुख्यमंत्री निवास में कोई राजकीय अतिथि आता है तो उस पर सरकारी मद में सत्कार पर खर्च किया जा सकता है। इसी नियम में यह भी कहा गया है कि किसी भी निजी कारण से मिलने आने वाले पर सरकार सत्कार मद में कोई राशि खर्च नहीं करेगी। इसी नियम में यह भी प्रावधान है कि मुख्यमंत्री निवास में आने वाला व्यक्ति सरकारी टेलीफोन का उपयोग नहीं कर सकेगा और यदि वह ऐसा करता है तो रजिस्टर में इसका पूरा ब्यौरा भी देगा।
भोज की राजनीति
मुख्यमंत्री द्वारा 16 अगस्त 2008 से 23 जुलाई 2009 की अवधि में कुल छह भोज दिए गए। इसमें 25 जुलाई 2009 को नवनिर्वाचित विधायकों और 4 जुलाई 09 को लोकसभा अध्यक्ष के सम्मान में भोज दिए गए, जिनके लिए मुख्यमंत्री को पात्रता थी। शेष तीन भोज उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए दिए।
ढाई लाख का भोज कर गईं बहनें
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दिए गए भोजों में रक्षाबंधन पर दिए गया भोज उल्लेखनीय है। मुख्यमंत्री निवास में रक्षाबंधन पर राखी बांधने आईं बहनें 2,56,425 रुपए का भोज कर गईं। जन्माष्टमी के अवसर पर सीएम हाउस में फलाहारी भोज का आयोजन किया गया। जिस पर 4,82,662 रुपए खर्च हुए। उपरोक्त पांच भोजों की कैटरिंग होटल पलाश द्वारा की गई। इसी प्रकार होटल रंजीत की कैटरिंग में 4 जुलाई 09 को दिए गए भोज पर 7,19,688 रुपए खर्च आया। इन छह भोजों पर कुल 1 करोड़, 86 लाख, 534 रुपए व्यय हुआ।
32.48 लाख रुपए सत्कार पर खर्च
उपरोक्त भोजों के अलावा मुख्यमंत्री निवास में अप्रैल 2004 से मार्च 2009 तक 32 लाख, 48 हजार, 172 रुपए अतिथि सत्कार पर खर्च किए गए। गौरतलब तथ्य यह है कि इस अवधि में सीएम हाउस के हाउसकीपर ने समय-समय पर खरीदी की, इसके बावजूद इंडियन कॉफी हाउस, होटल पलाश, पर्यटन निगम, मनोहर डेरी, होटल द मार्क, सह्याद्रि किराना, होटल रंजीत, अजमेरा स्टोर्स, सांची पार्लर, प्रियदर्शिनी, होटल राजहंस, होटल मानसरोवर, लल्लन डेरी, जहांनुमा पैलेस, मोटल शिराज, छप्पनभोग, ब्रज इंटरप्राइजेस की सेवाएं लेकर उनका भुगतान किया गया।
कितने गैस कनेक्शन?
सीएम हाउस में कितने गैस कनेक्शन हैं और कितनी टंकियां हैं, यह भी शोध का विषय हो सकता है। सीएम हाउस से दिए गए खर्च के ब्यौरे में क्रमांक 78 पर 4605 रुपए आरके गैस डिस्ट्रीब्यूटर्स को देना बताया गया है। इस हिसाब से वहां कम से कम 13 गैस टंकियां तो हैं। क्या सीएम हाउस में एक साथ इतनी टंकियां रखी जाना न्यायसंगत और सुरक्षा की दृष्टि से उचित है?
दूध-घी की गंगा बही
खर्च के ब्यौरे के अनुसार 28 मई 2007 को 16510 रुपए का दूध-घी खरीदा गया। इसी दिन में लल्लन डेरी से 13680 रुपए की खरीदी की गई। एक दिन में 30190 रुपए की डेरी सामाग्री खरीदी जाना क्या संदेहास्पद नहीं लगता? आखिर इस दिन सीएम हाउस में ऐसे कितने अतिथि आए, जिन पर इतनी बड़ी धनराशि सिर्फ डेरी मद में खर्च की गई?
मोबाइल और लैंडलाइन का खर्च कहां?
सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री निवास के मोबाइल और लैंडलाइन टेलीफोन कनेक्शन पर किए गए खर्च का ब्यौरा भी मांगा गया था, किंतु सामान्य प्रशासन विभाग ने यह जानकारी नहीं दी। इस पर विभाग की उपसचिव अरुणा गुप्ता के समक्ष प्रथम अपील की गई तो उन्होंने अपीलार्थी को ही धमकाया। द्वितीय अपील में जब यह मामला राज्य सूचना आयोग में पहुंचा। तो सूचना आयुक्त ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर उप सचिव पर कार्यवाही करने को कहा, किंतु इस दिशा में आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
नौकरशाह भी पीछे नहीं
जब मुख्यमंत्री निवास अपने आगंतुकों पर धन लुटाने में लगा रहा तो नौकरशाह भला पीछे कैसे रहते। विभागीय अफसरान और मंत्रियों की राज्य मंत्रालय में होने वाली बैठकों के खर्च का ब्यौरा देख कर भी आश्चर्य होता कि ये लोग मंत्रालय में बैठ कर सरकारी कामकाज निपटाते हैं या चाय-नाश्ता ही करते रहते हैं।
3.80 करोड़ का चाय-नाश्ता
राज्य मंत्रालय में 1 फरवरी 2009 से 31 अगस्त 2009 तक की गई विभिन्न बैठकों में मंत्रियों-अधिकारियों के चाय-नाश्ते पर 3 करोड़, 80 लाख, 716 रुपए खर्च किए गए। मात्र सात माह में हुई बैठकों पर इतनी बड़ी धनराशि खर्च होना अपने आप में आश्चर्य का विषय है। खास बात यह है कि इतना जन-धन हजम करने के बावजूद तमाम अधिकारी और मंत्री लंच टाइम में अपने-अपने निवास भी जाते  रहे। आम जनता जिन लोगों को भरे पेट वाला समझती है,  वे वास्तव में कितने भूखे हैं, यह इस उदाहरण से समझा जा सकता है।
पानी पर पानी की तरह खर्च
राज्य मंत्रालय में होने वाली बैठकों में पानी पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। उदाहरण के लिए किसी एक बैठक में प्रमुख सचिव, सचिव, अतिरिक्त सचिव और उप सचिव स्तर के 12 अधिकारी शरीक हुए तो सभी के लिए एक-एक मिनरल वाटर बोतल खरीदी गई। अब बैठक में इन्होंने भले ही दो-चार घूंट पानी पीया हो, लेकिन खर्च तो पूरी बोतल का ही होता है। जिस प्रदेश में धनाभाव में विकास न हो पा रहा हो, कुपोषण से मौतें हो रही हों, किसान खून के आंसू रो रहे हों, वहां अफसरान की यह अय्याशी क्या शर्म का विषय नहीं है?
घोटाले की आशंका
राज्य मंत्रालय में शिवराज सरकार के ही कार्यकाल में सत्कार घोटाला प्रकाश में आ चुका है, जिसमें तत्कालीन सत्कार अधिकारी राजेश मिश्रा को संदिग्ध माना गया था। इस प्रकरण की गहन जांच के बाद भी पुलिस को विभागीय दस्तावेज हाथ नहीं लग पाए थे। इस कारण आरोपी पर कार्यवाही करना तो दूर, उसे पुन: सम्मानजनक पदस्थापना दे दी गई। इतना बड़ा घोटाला सामने आने और उसमें कुछ भी हासिल न होने के बावजूद मंत्रालय में बैठकों के नाम पर भारी खर्च किए जाने से एक और कांड होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
जानकारी लेकर रहेंगे
आरटीआई एक्टिविस्ट सुश्री शेहला मसूद ने मुख्यमंत्री निवास में हुए कथित अतिथि सत्कार की जानकारी लेना चाही तो उन्हें बहुत बार टरकाया गया और मोबाइल टेलीफोन की जानकारी तो फिर भी नहीं दी जा रही है। उनका कहना है कि राज्य सूचना आयुक्त के यहां दायर अपील के बाद सरकार को सब कुछ बताना होगा और हम यह जानकारी लेकर ही रहेंगे। अलबत्ता राज्य मंत्रालय के खर्च की जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे को मिल गई।

कोई टिप्पणी नहीं: