रविवार, फ़रवरी 14, 2010

क्या अवधेश बजाज के यह शब्द ठीक  है !

राकेश साहनी और

इकबाल सिंह

के सामने

शिवराज सिंह

की कई औकात नहीं है .......































पत्रकार अवधेश बजाज की कलम ने फिर आग उगली है. इस  बार उन्होंने बिच्छू डोट कॉम में यहाँ तक लिख दिया है की राकेश सहनी और इकबाल सिंह के सामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोई औकात ही नहीं है.  हमने बजाज के लेख  को इसलिए लिया है ताकि आप पड़कर तय कर सके की क्या बजाज ने सही लिखा है !

रवींद्र जैन

बिच्छु डोट कॉम में अवधेश बजाज का लेख -

शिव की गौशाला में पल हे हैं कई महानंदी














अवधेश बजाज

जब शिवराज की अपनी ही गौशाला में इतने महानंदी (बिगबुल्स) हों तो उन्हें बाहर ताकने की जरूरत नहीं है। जनता को बेवकूफ बनाने की बजाय बेहतर होता कि शिवराज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदमों का अनुसरण करते, लेकिन करते कैसे? जब व्यक्ति का अंत:करण ही बेईमान हो तो वह ईमानदारी की बात कैसे कर सकता है? मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा पांखडी चरित्र हो तो सच का सामना कैसे किया जा सकता है? शिवराज ने अपने इर्द-गिर्द ऐसे अफसरान बैठा रखे हैं, जिनसे उन्हें खांसने और छींकने की भी परमिशन लेना पड़ती है।


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी यात्राओं में भ्रष्टाचार खत्म करने का ऐलान करते रहते हैं और उन्हीं की सत्ता-साकेत में दागी अफसरान बैठे हैं। भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा कर रहे शिवराज ने भ्रष्टों को क्यों पाल रखा है? भ्रष्टाचार पर इस दोहरी नीति का क्या अर्थ है? हम शुरू से ही शिवराज को चेता रहे हैं कि भ्रष्टों पर अंकुश लगाओ, किंतु भोले भंडारी शिव आंखें मूंदे रहते हैं। या तो वे सब जानते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे से घबराते हैं या वे भ्रष्टाचारियों के सामने नतमस्तक हैं। मुख्यमंत्री निवास में बैठे हुए तीन अफसरों के पास दो हजार करोड़ से ज्यादा की प्रापर्टी है। ये वे ही अधिकारी हैं, जो मुख्यमंत्री निवास से हुए हर फैसले पर अपनी मुहर लगाते हैं। ऐसे भ्रष्ट अफसरों ने मुख्यमंत्री की ऐसी कौन-सी नब्ज पकड़ रखी है जिसे चाह कर भी मुख्यमंत्री अपनी मन की बात नहीं कह सकते हैं। यह यक्षप्रश्न है। सबसे बड़ा सवाल तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कार्यपद्धति पर आता है। जब उन्होंने 750 करोड़ रुपए की बिना टेंडर किए हुए बिजली खरीदी के आरोपी पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी को पुनर्वास दे दिया। ऐसे क्या कारण थे जब राकेश साहनी को पुनर्वास देने की जरूरत पड़ गई? कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री निवास के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस ने शिवराज की कोई नब्ज दबा रखी है। वह चाहे मुख्यसचिव के चयन का मामला हो अथवा राकेश साहनी को पुनर्वास देने का। जो निर्णय होते हैं वह सब इकबाल ही तय करते हैं।

मेरा मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि जब अपरोक्ष रूप से वे भ्रष्टाचार को एवं भ्रष्टाचारियों को शिष्ट व्यक्तियों के रूप में देखना चाहते हैं तो उन्हें बहुरूपिया नहीं बनना चाहिए। सार्वजनिक तौर पर भोली-भाली जनता को 'कैपिटल सी' बनाने की बजाय खुलेतौर पर स्वीकार करना चाहिए कि वे भ्रष्टों के संरक्षणदाता हैं। पांच साल सरकार चलाने के लिए वोट बटोरू शिवराज अब जनता के बीच में यह कह रहे हैं कि बिजली देना मेरा काम नहीं है, पानी देना मेरा काम नहीं है, जो कुछ करना है वो आपको करना है। इससे बड़ा फरेब मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में कभी नहीं हुआ। अगर ऐसा ही करना था तो वे जनता के बीच में नहीं जाते। अब जनता को ही सब कुछ करना है तो फिर शिवराज जी आपकी क्या जरूरत है? मध्यप्रदेश के इस लिजलिजे रीढ़विहीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मेरा आग्रह है कि वे इनवेस्टर्स मीट के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपया क्यों बर्बाद कर रहे हैं? मेरा उन्हें सुझाव है कि जब उनके राजनीतिक पिंड ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मान लिया है तो उन्हें देश के किसी भी उद्योगपति से प्रदेश में निवेश की भीख नहीं मांगना चाहिए। बेहतर हो कि वे ईमानदार और अतिनैतिक इकबाल सिंह बैंस और राकेश साहनी के माध्यम से मप्र के तमाम भ्रष्टतम अधिकारियों से एक-एक अरब रुपया उद्योग लगाने के लिए मांगें। यह भीख मांगना प्रदेश के लिए बहुत बेहतर होगा। जब प्रदेश में भिखमंगे राजनेता और अफसर हों तो बहुत सहूलियत होगी। दरअसल हमारी राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था भिखमंगी ही है। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाओं में विराजे समस्त महानुभावों से मेरा निवेदन है कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से सलाह न लें, न उनकी बात मानें, बल्कि वे सीधे-सीधे इकबाल सिंह बैंस और राकेश साहनी जो कहें, वह करें। इससे प्रदेश को 'शिष्ट भ्रष्टोंÓ से अच्छा इनवेस्टमेंट मिलेगा।

जब शिवराज की अपनी ही गौशाला में इतने महानंदी (बिगबुल्स) हों तो उन्हें बाहर ताकने की जरूरत नहीं है। जनता को बेवकूफ बनाने की बजाय बेहतर होता कि शिवराज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदमों का अनुसरण करते, लेकिन करते कैसे? जब व्यक्ति का अंत:करण ही बेईमान हो तो वह ईमानदारी की बात कैसे कर सकता है? मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा पांखडी चरित्र हो तो सच का सामना कैसे किया जा सकता है? शिवराज ने अपने इर्द-गिर्द ऐसे अफसरान बैठा रखे हैं, जिनसे उन्हें खांसने और छींकने की भी परमिशन लेना पड़ती है। ऐसे हालात में तस्वीर बदलना नामुमकिन है। वह चाहे नीतीश कुमार हों या नरेंद्र मोदी। ये हिंदुस्तान की राजनीति के ऐसे केंद्रबिंदु हैं जिन्होंने जो ठाना वो किया। नीतीश कुमार ने बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी मुहिम छेड़ी है जो भारतवर्ष में अविस्मरणीय है। वे बिहार विशेष न्यायालय विधेयक 2009 लेकर आए हैं, जिसमें भ्रष्ट अफसरों को जेल भेजने से लगाकर भ्रष्टाचार से बनी हुई संपत्तियों का अधिग्रहण करने तक का अधिकार है। उन्होंने एक विकास यात्रा निकाली थी, जिसमें उन्होंने पाया कि ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार गले-गले तक है। तब उन्हें जाकर यह निर्णय लेना पड़ा। अब हालात ये हैं कि बिहार प्रगतिशील प्रदेशों में दूसरे नंबर पर है। नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। उनके अपने राजनैतिक सहयोगी उनका साथ छोड़ रहे हैं, लेकिन उनमें एक ईमानदार नेता की इच्छाशक्ति है, जो शिवराज जी तुम में नहीं है, क्योंकि तुम इकबाल सिंह बैंस, राकेश साहनी के हस्तिनापुर से बाहर नहीं निकल पा रहे हो। तुम्हारी औकात इन लोगों के सामने दो कौड़ी की है। यह मैं इसलिए कह सकता हूं, क्योंकि तुमने राकेश साहनी का पुनर्वास करके यह साबित कर दिया कि तुम स्वयं भ्रष्टों के संरक्षणदाता हो। तुमने जो आओ मध्यप्रदेश बनाएं आंदोलन शुरू किया है, यह आंदोलन आपके अंत:करण के पाखंड को उजागर करता है।

अगर वाकई आप मध्यप्रदेश बनाना चाहते हैं तो पहले-पहल आपको भ्रष्टाचारियों को कोड़े लगाना होंगे। वरना वह दिन दूर नहीं जब आपकी यह यात्रा आपकी अंतिम यात्रा होगी। आप यह सोच रहे हैं कि आप अटलबिहारी वाजपेयी, डॉ. शंकरदयाल शर्मा और शिवभानु सिंह सोलंकी की परंपरा के संवाहक हैं। दरअसल ये तीनों नेता पढ़े-लिखे थे। इसीलिए जनता को दिग्भ्रमित करने में सफल रहे। इन्होंने जीवनभर किसी भी आदमी की व्यक्तिश: मदद नहीं की। वैसे आप भी वैसे ही हैं। आप काम किसी का करते नहीं और मना भी किसी को नहीं करते। बौद्धिक स्तर पर चूंकि आपका कद इन तीनों नेताओं के बराबर नहीं है, लिहाजा आप बहुत जल्दी नीचे आ सकते हो। हालांकि भाग्य आपका साथ दे रहा है, लिहाजा आप चलायमान हैं। लेकिन झूठ, फरेब, पाखंड का कालखण्ड ज्यादा दिन तक नहीं चलता है। ये जनता है सब जानती है। जिन वादों पर आप सत्तासीन हुए उन्हीं वादों पर आप जनता से वह कार्य करने का कह रहे हैं। इससे बड़ा पाखंड क्या हो सकता है। हाल ही में वरिष्ठ आईएएस दंपति अरविंद जोशी और टीनू जोशी के यहां पड़े आयकर विभाग के छापे ने जाहिर कर दिया है कि नौकरशाही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। राज्य मंत्रालय में छह आईएएस ऐसे हैं, जिन पर आयकर विभाग की नजर है। इनमें से तीन अफसर सीएम हाउस में बैठे हैं, जो फावड़े और बोरों से घरों में नोट भर रहे हैं। भ्रष्टाचार पर शिवराज सरकार का दोहरा रवैया इससे भी जाहिर होता है कि 750 करोड़ का बिजली घोटाला करने वाले अफसर को उन्होंने अपनी गौशाला में पाल लिया। भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प क्या भ्रष्ट अफसरान से घिर कर पूरा होगा? विधानसभा में कांग्रेस दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने जब अफसरान की संपत्ति सार्वजनिक करने का मामला उठाया तो नौकरशाही आड़े आ गई। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाही तो जानकारी नहीं दी गई। यह मामला राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष विचाराधीन है।

इसी बीच केंद्र सरकार ने निर्देश दे दिए कि अफसरान की संपत्ति सार्वजनिक की जाए, पर नौकरशाह नहीं मान रहे हैं। इस पर सरकार की खामोशी क्या यह जाहिर नहीं करती कि वह भ्रष्टों और भ्रष्टाचार का बचाव कर रहे हैं? राज्य सूचना आयुक्त ने जब अफसरान को नोटिस देकर संपत्ति की जानकारी देने को कहा तो उन्होंने असहमति जताई। इनमें अरविंद-टीनू जोशी भी शामिल हैं। सवाल यह है कि जब न्यायाधीश और राजनेता अपनी संपत्ति का खुलासा करते हैं तो नौकरशाह इससे सहमत क्यों नहीं हैं? इसका जवाब यही है कि वे भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति का खुलासा नहीं करना चाहते हैं। अरविंद-टीनू के यहां पड़े छापे में करोड़ों रुपए मिलना इसका प्रमाण है।

स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सब्जबाग दिखाने वाले शिवराज सिंह इन भ्रष्टों के आगे नतमस्तक क्यों हैं? लोकायुक्त ने 18 भ्रष्ट आईएएस के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति मांगी है। सरकार यह अनुमति क्यों नहीं दे रही है? आर्थिक अपराध अनसुंधान ब्यूरो ने तो एक हजार भ्रष्ट अफसरान की सूची सौंपी है, जिस पर सरकार कुंडली मार कर बैठी है। क्या इसी तरह भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प पूरा होगा? शिवराज सिंह के साथ दिक्कत यह है कि उन्हें उनके पैर के माप से बड़ा जूता दे दिया गया है, इसलिए लंगड़ा कर चलना उनकी आदत में शुमार हो गया है। यही वजह है कि वे मंत्रालय में बैठकर प्रशासन पर नकेल कसने की बजाय डमरू लिए मदारी की तरह जगह-जगह घूमते फिरते हैं। इधर नौकरशाह बेलगाम होकर वही काम कर रहे हैं, जिनसे उनके हित जुड़े हैं।

नौकरशाहों की हरामखोरी प्रवृत्ति का यह आलम है कि 67 हजार 887 करोड़, 24 लाख रुपयों की केंद्रीय मदद का कोई उपयोग नहीं हो सका। इसी तरह 1 हजार 515 करोड़, 72 लाख की भारी भरकम राशि सरकार ने केंद्र को यह कहते हुए लौटा दी कि वह इसे खर्च करने में असमर्थ है। शिवराज सरकार की पंचायतों, इन्वेस्टर्स मीट और कागजी योजनाओं पर इतना धन फूंका गया कि खजाना तो खाली हो ही गया, ऊपर से 58 हजार करोड़ का कर्ज भी हो गया। प्रदेश को आर्थिक रूप से दिवालिया कर प्रशासन में बैठे अफसरान अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और मुख्यमंत्री चंद अफसरान की कठपुतली बनकर 'अपना मध्यप्रदेश' बना रहे हैं।

इतने जिम्मेदार पद पर बैठे शिव को यह समझ में क्यों नहीं आ रहा कि गांव में खटिया पर बैठकर अमरूद काटने, बच्चों को योग सिखाने और झाड़ू लगाने से प्रदेश का विकास नहीं होगा? प्रदेश के विकास के लिए भ्रष्ट नौकरशाही पर अंकुश लगाना पहली शर्त होना चाहिए और यहीं शिव कमजोर पड़ जाते हैं। इसी कारण प्रदेश गर्त में जा रहा है और शिव नीरो की तर्ज पर बंसी बजाते घूम रहे हैं। अगर अब भी शिव का तीसरा नेत्र नहीं खुलता है तो इस प्रदेश का बंटाढार होना तय है।

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