का 'पूर्णग्रहण' न लग जाए
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सत्ता के गलियारों से लेकर प्रशासनिक वीथिकाओं तक एक ही सर्वशक्तिमान और दरबार के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस का नाम गूंज रहा है।
सत्ता के गलियारों से लेकर प्रशासनिक वीथिकाओं तक एक ही सर्वशक्तिमान और दरबार के दमनकारी इकबाल सिंह बैंस का नाम गूंज रहा है। नाम क्यों गूंज रहा है? यह सवाल अहम है। कौन है यह इकबाल, जिसके बिना पूरे प्रदेश में पत्ता तक नहीं हिलता? क्यों नहीं हिलता? कोई भी काम, कोई भी फाइल इनके इशारे के बिना मूव नहीं होती। क्या 'कारण' है कि इकबाल से बिना पूछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह, उनके साले, भाई-भजीते कोई कदम नहीं उठाते? प्रशासनिक कार्य ही नहीं, कई महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले भी इकबाल सिंह की सहमति से ही होते हैं। आखिर शिव दरबार के इस दमनकारी में क्या खासियत है कि मुख्यमंत्री इसकी जेब में हैं? इसे जानिए... पहचानिए मुख्यमंत्री जी वरना आपके मंत्री और विधायक कहीं विद्रोह पर आमादा न हो जाएं। सत्ताई गलियों में फिजा बदलते समय नहीं लगता है।
शिव मंत्रिमंडल के अधिकतर मंत्री शिवराज का नाम सुनते ही छिटकते हैं। वे कहते हैं भाग्य कब तक साथ देगा। कुछ काम तो करना पड़ेगा। चंद अफसरों के साथ मीटिंग-मीटिंग खेलने से चुनावी नैया पार थोड़े होगी। एक मंत्री कहते हैं दिग्विजय सिंह कंधे पर हाथ रख कर निपटाते थे और शिवराज बातों-बातों में। शालीनता का लबादा ओढ़कर वे किसी काम के लिए किसी को 'ना' नहीं करते और काम किसी के करते नहीं।
प्रशासनिक वीथिकाओं में यह जुमला बड़ा प्रसिद्ध है कि शिवराज छींकने के लिए भी इकबाल सिंह की परमिशन लेते हैं। इकबाल सिंह के खिलाफ जो माहौल बन रहा है, उसकी वजह मंत्रियों, विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों की नाराजगी है। एक मंत्री का कहना है कि मैंने मुख्यमंत्री को सुझाव दिया है कि इकबाल सिंह के कमरे की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाएं। वे मंत्रियों, विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों से किस तरह का व्यवहार करते हैं, इसकी सच्चाई सामने आ जाएगी। शिवराज सिंह से प्रदेश के पचहत्तर फीसदी से ज्यादा अफसर इसलिए नाराज हैं, क्योंकि उन्होंने इकबाल सिंह को माथे पर बिठा रखा है। प्रदेश के सभी मंत्रियों को इस अफसर ने पिछले कई महीनों से रुला रखा है। कारण है मंत्रियों के निवास पर उनके पर्सनल स्टाफ की नियुक्ति। हर नियुक्ति को इस व्यक्ति ने रोके रखा। मंत्री हैरान-परेशान रहे, लेकिन हुआ वही जो इकबाल सिंह ने चाहा। मंत्री-विधायक मुख्यमंत्री से तो आसानी से मिल लेते हैं, लेकिन इकबाल से मिलना उनके लिए टेढ़ी खीर है।
बिना शपथ का सीएम
सर्वशक्तिमान इकबाल सिंह ने भले ही पद एवं गोपनीयता की शपथ नहीं ली हो, लेकिन वे ही असली मुख्यमंत्री हैं। इकबाल कैबिनेट में भी कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), राज्यमंत्री, उपमंत्री से लेकर संसदीय सचिवों तक की भागीदारी है। आईए, हम बताते हैं आपको, कौन हैं इकबाल सिंह की काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स में-
1. अनुराग जैन : मृदुभाषी, सौम्य व्यवहार के धनी आईएएस अफसर अनुराग जैन वैसे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिव हैं, लेकिन वे असली जवाबदेह इकबाल सिंह बैस के प्रति हैं। इकबाल के कहने पर ही अनुराग पूरे समय मुख्यमंत्री को सिर्फ मीटिंग्स में उलझाए रखते हैं। चाहे मीटिंग स्वास्थ्य विभाग की हो, पंचायत की अथवा विकास के मुद्दे पर कोई भी विषय पर हो। मुख्यमंत्री को ये महाशय एक मीटिंग में घंटों व्यस्त कर देते हैं। मामला मंथन का ही क्यों न हो, आप खुद देख लें, सीएम ने अब तक कई घंटे उसमें खपा दिए। ये भी एक साजिश है। सीएम को मीटिंग में व्यस्त रखो और बाकी सारी फाइलें 'इकबाल भाई' निपटा लेंगे। कुल मिलाकर इकबाल की जादूगिरी के चलते ही अनुराग ने शिवराज को मीटिंग वाले मुख्यमंत्री बना दिया।
2. एसपीएस परिहार : परिहार साहब भी इकबाल सिंह के ही मेम्बर हैं। उनका भी वही दायित्व है सीएम को व्यस्त रखना। ये महाशय 24 घंटे सीएम को सिर्फ बिजली के मामलों में उलझाए रखते हैं। किसानों को भले बिजली के दर्शन न हो रहे हों, लेकिन परिहार साहब कागजों और मीटिंग में ऐसे आंकड़े पेश करते हैं कि लगता है प्रदेश में बिजली का संकट नहीं है।
3. विवेक अग्रवाल : अब नए सचिव विवेक अग्रवाल को ही लें, इंदौर में कलेक्टर थे तो एक शराब ठेकेदार से रिश्वत में एक करोड़ का फ्लैट अपने नाम करवा लिया। भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड इंदौर में तोड़े और अब इकबाल भाई की कृपा से मुख्यमंत्री सचिवालय में पहुंच गए। वह भी ईमानदार और मेहनती अफसर की छवि लेकर। अब ये महाशय भी 'भाई' की रणनीति के तहत मुख्यमंत्री को लेपटॉप के जाल में उलझाए हुए हैं। लेपटॉप के रंगारंग में सीएम को सूखी फसल भी हरी-भरी नजर आ रही है। प्रदेश में इस समय फर्टिलाइजर के लिए किसान एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हैं। 40 हजार मीट्रिक टन फर्टिलाइजर की मांग के बदले प्रदेश के पास पांच हजार मीट्रिक टन फर्टिलाइजर नहीं है। पहले विवेक ने फर्टिलाइजर इम्पोर्ट करने के सपने दिखाए, फिर कहा कि यहां आते-आते तक तो फसल पकने का समय आ जाएगा। मंडी बोर्ड संभाल रहे इन महाशय पर ही खेती को लाभ का धंधा बनाने की जिम्मेदारी है।
राज्यमंत्री : ये तो 'भाई' के कैबिनेट मंत्री हैं। अब बात करते हैं राज्यमंत्री और स्वतंत्र प्रभार वालों की। स्वतंत्र प्रभार कौन संभाल रहा है। इसमें वे अफसर हैं जो मुख्यमंत्री अथवा मंत्रियों के इर्दगिर्द रहते हैं।
1. नीरज वशिष्ठ : इस चेहरे को शायद लोग नहीं जानते हों। ये महोदय 'इकबाल भाई' के सबसे करीबी लोगों में से एक हैं। नीरज मुख्यमंत्री के अवर सचिव हैं और उनके पीए का काम देखते हैं। यानी 24 घंटे सीएम साहब के साथ रहते हैं। नीरज का काम है कि 'भाई' को सारी खबर देना। सीएम कहां गए, किससे मिले, आदि... आदि। कुल मिलाकर नीरज 'भाई' के निर्देश पर ही सीएम से लोगों की बात करवाता है, मुलाकात करवाता है। वैसे तो नीरज वशिष्ठ को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का माना जाता है, लेकिन वे अब 'भाई' के रैकेट के अंग हैं। नीरज अब 'भाई' के साथ मिलकर चारों तरफ अपने लोगों को बिठा रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो नए मंत्रियों के यहां निजी स्टाफ किसी मंत्री की मर्जी से तय नहीं हुआ, बल्कि नीरज शर्मा और 'भाई' की मर्जी से स्टाफ नियुक्त हुआ। सरताज सिंह शिवराज कैबिनेट में मंत्री तो बनाए गए, लेकिन उनका विशेष सहायक 'भाई' ने तैनात कर दिया। सरताज चाहते थे उनकी पसंद का आदमी नियुक्त हो। इसके लिए उन्होंने नोटशीट भी भेजी, लेकिन हुआ क्या? मुख्यमंत्री सचिवालय के निर्देश पर दिलीप कापसे को सरताज का विशेष सहायक नियुक्त कर दिया गया। सामान्य प्रशासन विभाग ने बाकायदा इसकी प्रतिलिपि सीएम सेक्रेटरिज को भी दी, जिसमें कहा गया कि उनकी नोटशीट पर कापसे की सेवाएं सरताज सिंह के यहां सौंपी गई है। अब आप जानिए दिलीप कापसे कौन हैं। डिप्टी कलेक्टर रैंक के इस अफसर पर गरीबों के अनाज खाने पर हरदा थाने में एफआईआर दर्ज है, जांच जारी है, लेकिन इस दागी को नीरज का साथी होने के चलते सरताज के यहां बिठा दिया गया ताकि वन विभाग में 'भाई' की दुकान चलती रहे।
2. राकेश श्रीवास्तव : ये रेशम विभाग के अधिकारी हैं। कुछ समय पहले तक संस्कृति और जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के विशेष सहायक थे। यहां भी ये मंत्री की इच्छा के चलते पदस्थ नहीं किए गए थे, बल्कि मुख्यमंत्री सचिवालय ने जबरिया उन्हें थोप दिया था। इनकी भी 'भाई' से नजदीकियां चर्चा में हैं। जब 'भाई' एक जिले के कलेक्टर थे, तब ये जिला रेशम अधिकारी थे। तब के रिश्ते अब तक चल रहे हैं। 'भाई' अब इनका जल्दी ही पुनर्वास करवाने वाले हैं।
3. नरेश पाल : ये महाशय एडीशनल कलेक्टर कटनी के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले मंत्रालय में नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव जैसे मलाईदार पद पर रहे हैं। ये साहब भी 'भाई' के एकदम करीबी हैं, सो इस नजदीकी के चलते पाल साहब को स्वतंत्र प्रभार वाले पॉवरफुल राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल का विशेष सहायक बना दिया गया। मंत्री की निजी पदस्थापना के लिए सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी की, लेकिन विभागीय जांच से घिरे होने के बावजूद पाल को मंत्री का विशेष सहायक बना दिया गया। अब पाल के चलते 'भाई' की बिजली और माइनिंग दोनों महकमों में पकड़ बरकरार है।
4. राजेंद्र सिंह : ये महोदय परिवहन, जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक हैं, लेकिन 'भाई' की कृपा से। वैसे तो महोदय कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर राजपत्रित हुए हैं, लेकिन देवड़ा जी के यहां ये ही सर्वशक्तिमान हैं। इनके हाल ये हैं कि मंत्री जी के निर्देशों का भी राजेंद्र सिंह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि जब तक 'भाई' की हरी झंडी नहीं मिलती, कोई काम नहीं हो सकता है। परिवहन विभाग में एक साल में जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनका एक पैसा मंत्री को नहीं मिला, क्योंकि राजेंद्र को सारा हिसाब 'भाई' को देना पड़ता है।
5. अजय श्रीवास्तव : ये महोदय बाबूलाल गौर के विशेष सहायक हैं। कहने को तो गौर साहब कद्दावर नेता हैं, लेकिन उनकी जान अजय श्रीवास्तव में अटकी है और ये महाशय 'भाई' के खास आदमी हैं।
यूं तो नाम गिनाते-गिनाते हम थक जाएंगे और आप पढ़ते-पढ़ते थक जाएंगे, लेकिन इकबाल कैबिनेट खत्म नहीं होगी। 'भाई' इतना चतरा है कि शिवराज कैबिनेट के जितने देवड़ा टाइप मंत्री है उनके पास पॉवरफुल विभाग होने का सिर्फ और सिर्फ इतना कारण है कि वे विभाग 'भाई' के डायरेक्शन में चलते हैं।
और अंत में -
चेहरे बदलने का हुनर मुझ में नहीं,
दर्द दिल में हो तो हँसने का हुनर मुझ में नहीं,
मैं तो आईना हूँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करूं,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझ में नहीं।
चलते चलते थम जाने का हुनर मुझ में नहीं,
एक बार मिल के छोड़ जाने का हुनर मुझ में नहीं,
मैं तो दरिया हूँ, बहता ही रहा,
तूफान से डर जाने का हुनर मुझ में नहीं
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